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Thursday, April 25, 2019

भगवन शिव की अद्भुत कहानी । Story of Lord Shiva |


कई पुराणों की बात करें अगर हम तो भगवान शिव के जन्म के बारे में कोई साक्षात् हमारे पास उपलब्ध नहीं है न इस दुनिया के किसी कोने में है ! पुराणों से हमे पता चलता है की भगवान शिव निरंकार है ! भगवान शिव कोई रूप नहीं ! हम सब जिन्हें भगवान जानते है ! वो सभी एक ही है ! भगवान शिव जी का रूप कैसा है किस तरह का कोई नहीं जनता है ! भगवान शिव एक ज्ञान हैं ! दुनिया का निर्माण भगवान शिव ने किया शिव के जन्म की कहानी - वैसे तो हमारे प्राचीन वेदों में भगवान शिव जी को एक निराकार रूप बताया गया है पुराणों से हमे पता चलता है की उन्होंने भगवान विष्णु को जन्म दिया और विष्णु भगवान की नाभि से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ ! 

भगवान विष्णु और ब्रह्मा दोनों को जन्म के बाद, तब उन्हें ये भी नहीं पता था की वो इस लोक में कैसे आये कहा से आये उन्हें कौन लाया है ! इस संसार में दोनों को बहुत शक्तिशाली मना गया है ! पुराणी कथाओं की मानें तो बात-बात पर दोनों में बहस सुरु हो गयी थी की कौन हम दोनों में महान हैं कौन किससे ज्यादा शक्तिशाली है ज्यादा शक्तिशाली है या कोन बड़ा है ! वो दोनों आपस में ही लड़ने लगे ! एक बार इन दोनों के बिच युद्ध करीबन दस हजार सालो तक चला ! अलग अलग धारणाओं की मानें तो शिव पुराण और विष्णु पुराण की अलग अलग मान्यताएं हैं शिव पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए, जबकि शिव माथे के तेज से उत्पन्न बताये गए है. 

सर्वशक्तिमान भगवान शिव हिंदू धर्म के सबसे देवताओं में से एक है, जो मूर्तिपूजा है क्योंकि भगवान शिव के शैवती संप्रदायों के प्रमुख प्रभु यह है कि "बुराई के विध्वंसक", हिंदू त्रिमूर्ति जिसमें ब्रह्मा और हिंदू देवता हैं शैव धर्म की परंपरा में, शिव यह है कि सभी का ईश्वर, ब्रह्मांड को संरक्षित और बदलता है। हिंदुत्व की दिव्यता परंपरा के भीतर शक्तिवाद के रूप में संदर्भित, देवत्व सर्वोच्च के रूप में चित्रित किया गया है, फिर भी शिव हिंदू देवता और ब्रह्मा के बखूबी सम्मानित है। 

हम सब जानते हैं शिव शक्तिमान हैं संसार चलाने के लिए शिव जी अपना विस्तार किया और विष्णु जी को इस संसार का पालक बनाया ! श्री ब्रह्मा जी को जन्म देने वाले भगवान् शिव ने और जरुरत पढ़ने पर विष भी पिने वाले भगवान बने ! भगवा न्विष्णू शिव की पूजा करते है ! शिव जी विष्णु की पूजा करते है ! पर तीनो ही सर्वश्रेस्ठ है ! कोई बड़ा या छोटा नहीं है ! भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ – इस बात का जवाब यही है ! 

शिव की नहीं कोई शुरुआत है और नाही अंत जो शुरू होता है उसे खत्म भी होना होता है ! पर भगवान शिव इन सबसे परे है ! उनका कोई जन्म नहीं हुआ और नाही कोई अंत होगा ! भगवान शिव सबसे पहले है और भगवान शिव सबसे अंत तक रहेंगे ! भगवान शिवशंकर जिन्हें हम जानते है ! ये बस एक आकार ग्रहण करण था!

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                                                                                                                                                                                                                  Source:http://bit.ly/2Vx7WOh

Monday, April 1, 2019

शिव पुराण | Shiv Puran in Hindi |



'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।

भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से 'जीवन' और 'मृत्यु' का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र –जीवन एवं कला के द्योतम हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।

'रामचरितमानस' में तुलसीदास ने जिन्हें 'अशिव वेषधारी' और 'नाना वाहन नाना भेष' वाले गणों का अधिपति कहा है, वे शिव जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करने वाले हैं। वे 'नीलकंठ' कहलाते हैं। क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवं असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत करने के लिए मरे जा रहे थे, तब कालकूट विष के बाहर निकलने से सभी पीछे हट गए। उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। तब शिव ने ही उस महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से शिव नीलकंठ कहलाए। क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।

ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। यह पुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है। पुराणों के मान्य पांच विषयों का 'शिव पुराण' में अभाव है। इस पुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को 'मुक्ति' के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म शिव को अर्पित कर देने चाहिए। वेदों और उपनिषदों में 'प्रणव - ॐ' के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है। प्रणव के अतिरिक्त 'गायत्री मन्त्र' के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है। परन्तु इस पुराण में आठ संहिताओं सका उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं। ये संहिताएं हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग)।
इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम 'शिव पुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है। इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो 'शिव पुराण' सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है। यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है। तदुपरान्त शिव पूजा की विधि बताई गई है। शिव कथा सुनने वालों को उपवास आदि न करने के लिए कहा गया है। क्योंकि भूखे पेट कथा में मन नहीं लगता। साथ ही गरिष्ठ भोजन, बासी भोजन, वायु विकार उत्पन्न करने वाली दालें, बैंगन, मूली, प्याज, लहसुन, गाजर तथा मांस-मदिरा का सेवन वर्जित बताया गया है।

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Source:https://bit.ly/2FNII5x

Monday, March 11, 2019

आइए जानें, शिव के जन्म की कहानी |


हिंदू धर्म में 18 पुराण हैं। सभी पुराण हिंदू भगवानों की कहानियां बताते हैं। कुछ समान बातों के अलावे सभी कुछ हद तक अलग-अलग कहानियां बयां करते हैं। इसमें त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के जन्म के साथ ही देवताओं की भी कहानियां सम्मिलित हैं। वेदों में भगवान को निराकार रूप बताया है जबकि पुराणों में त्रिदेव सहित सभी देवों के रूप का उल्लेख होने के साथ ही उनके जन्म की कहानियां भी हैं
भगवान शिव को ‘संहारक’ और ‘नव का निर्माण’ कारक माना गया है। अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव और विष्णु के जन्म के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू (सेल्फ बॉर्न) माना गया है जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं। शिव पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं
शिव के जन्म की कहानी हर कोई जानना चाहता है। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से जिसका कोई भी ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, भगवान शिव प्रकट हुए
विष्णु पुराण में वर्णित शिव के जन्म की कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है। यह कहानी बेहद मनभावन है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है. तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए। इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार ये नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे
शिव के इस प्रकार ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णु पुराण की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के सिवा कोई भी देव या प्राणी नहीं था। तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग …..पर लेटे नजर आ रहे थे। तब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा-विष्णु जब सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे तो शिव जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई। ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। शिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया। कालांतर में विष्णु के कान के मैल से पैदा हुए मधु-कैटभ राक्षसों के वध के बाद जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया। अत: ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए
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Surce:https://bit.ly/2EOmYEK

Sunday, January 20, 2019

क्यों की जाती है शिव के लिंग रूप की पूजा?


शिव शंभु आदि और अंत के देवता है और इनका न कोई स्वरूप है और न ही आकार वे निराकार हैं. आदि और अंत न होने से लिंग को शिव का निराकार रूप माना जाता है, जबकि उनके साकार रूप में उन्हें भगवान शंकर मानकर पूजा जाता है.

सिर्फ भगवान शिव ही इस रूप में पूजे जाते हैं
केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं. लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं. इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं. 'शिव' का अर्थ है– 'परम कल्याणकारी' और 'लिंग' का अर्थ है – ‘सृजन’. शिव के वास्तविक स्वरूप से अवगत होकर जाग्रत शिवलिंग का अर्थ होता है प्रमाण.
वेदों में मिलता है उल्लेख
वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है. यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु. वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं. इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है.
पौराणिक कथा के अनुसार
जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया. उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ‘नीलकण्ठ’ कहलाए. समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया. उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है.
गहनों से चमक सकती है आपकी किस्मत
श्री शिवमहापुराण के सृष्टिखंड अध्याय 12 श्लोक 82 से 86 में ब्रह्मा जी के पुत्र सनत्कुमार जी वेदव्यास जी को उपदेश देते हुए कहते है कि हर गृहस्थ को देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर पंचदेवों (श्री गणेश, सूर्य, विष्णु, दुर्गा, शंकर) की प्रतिमाओं में नित्य पूजन करना चाहिए क्योंकि शिव ही सबके मूल है, मूल (शिव) को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते है परन्तु सभी देवताओं को तृप्त करने पर भी प्रभु शिव की तृप्ति नहीं होती.
जानें शरीर के तिलों का रहस्य...
इस बात का प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड में मिलता है इस पुराण के अनुसार सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार, सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार-अजन्मा ब्रह्म(शिव) से प्रार्थना कि ‘आप कैसे प्रसन्न होते है.’प्रभु शिव बोले, 'मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो. जब जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है.जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को श्राप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बताई.
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                                                                                                                                                               Source: https://bit.ly/2CxDgRp

Monday, January 14, 2019

पार्वती और शिव के विवाह की कथा |


भगवान शिव और पार्वती की शादी बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित हुई। पार्वती की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के राजा-महाराजा और शाही रिश्तेदार इस शादी में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। आइये जानते हैं आगे क्या हुआ।

भगवान शिव और पार्वती की शादी बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित हुई। पार्वती की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के राजा-महाराजा और शाही रिश्तेदार इस शादी में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। आइये जानते हैं आगे क्या हुआ...

                          भगवान शिव की शादी में आए हर तरह के प्राणी

जब शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था, तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। उनकी शादी बहुत ही भव्य पैमाने पर हो रही थी। इससे पहले ऐसी शादी कभी नहीं हुई थी। शिव - जो दुनिया के सबसे तेजस्वी प्राणी थे - एक दूसरे प्राणी को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले थे। उनकी शादी में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग शामिल हुए। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर भी वहां पहुंचे। आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे।
उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। मगर यह तो शिव का विवाह था, इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक बार एक साथ आने का मन बनाया। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे। यह एक शाही शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी, इसलिए विवाह समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था।

                         भगवान शिव और देवी पार्वती की वंशावली के बखान की रस्म

वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। यह कुछ देर तक चलता रहा। आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर शिव बैठे हुए थे।
सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर शिव के वंश के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा। वधू का परिवार ताज्जुब करने लगा, ‘क्या उसके खानदान में कोई ऐसा नहीं है जो खड़े होकर उसके वंश की महानता के बारे में बता सके?’ मगर वाकई कोई नहीं था। वर के माता-पिता, रिश्तेदार या परिवार से कोई वहां नहीं आया था क्योंकि उसके परिवार में कोई था ही नहीं। वह सिर्फ अपने साथियों, गणों के साथ आया था जो विकृत जीवों की तरह दिखते थे। वे इंसानी भाषा तक नहीं बोल पाते थे और अजीब सी बेसुरी आवाजें निकालते थे। वे सभी नशे में चूर और विचित्र अवस्थाओं में लग रहे थे।

                                                         भगवान शिव ने धारण किया मौन

फिर पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया, ‘कृपया अपने वंश के बारे में कुछ बताइए।’ शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। वह न तो दुल्हन की ओर देख रहे थे, न ही शादी को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर आ रहा था।
वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे और शून्य में घूरते रहे। वधू पक्ष के लोग बार-बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से नहीं करना चाहेगा, जिसके वंश का अता-पता न हो। उन्हें जल्दी थी क्योंकि शादी के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था। मगर शिव मौन रहे।
समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा और पंडित बहुत घृणा से शिव की ओर देखने लगे और तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई, ‘इसका वंश क्या है? यह बोल क्यों नहीं रहा है? हो सकता है कि इसका परिवार किसी नीची जाति का हो और इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म आ रही हो।’

                       नारद मुनि ने इशारे से बात समझानी चाही

फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे, ने यह सब तमाशा देखकर अपनी वीणा उठाई और उसकी एक ही तार खींचते रहे। वह लगातार एक ही धुन बजाते रहे – टोइंग टोइंग टोइंग। इससे खीझकर पार्वती के पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे, ‘यह क्या बकवास है? हम वर की वंशावली के बारे में सुनना चाहते हैं मगर वह कुछ बोल नहीं रहा। क्या मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से कर दूं? और आप यह खिझाने वाला शोर क्यों कर रहे हैं? क्या यह कोई जवाब है?’ नारद ने जवाब दिया, ‘वर के माता-पिता नहीं हैं।’ राजा ने पूछा, ‘क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानता?’

                     नारद ने सभी को बताया कि भगवान स्वयंभू हैं

नहीं, इनके माता-पिता ही नहीं हैं। इनकी कोई विरासत नहीं है। इनका कोई गोत्र नहीं है। इसके पास कुछ नहीं है। इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है।’ पूरी सभा चकरा गई। पर्वत राज ने कहा, ‘हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। मगर हर कोई किसी न किसी से जन्मा है। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता या मां ही न हो।’ नारद ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह स्वयंभू हैं। इन्होंने खुद की रचना की है। इनके न तो पिता हैं न माता। इनका न कोई वंश है, न परिवार। यह किसी परंपरा से ताल्लुक नहीं रखते और न ही इनके पास कोई राज्य है। इनका न तो कोई गोत्र है, और न कोई नक्षत्र। न कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। यह इन सब चीजों से परे हैं। यह एक योगी हैं और इन्होंने सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। इनके लिए सिर्फ एक वंश है – ध्वनि। आदि, शून्य प्रकृति ने जब अस्तित्व में आई, तो अस्तित्व में आने वाली पहली चीज थी – ध्वनि। इनकी पहली अभिव्यक्ति एक ध्वनि के रूप में है। ये सबसे पहले एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए। उसके पहले ये कुछ नहीं थे। यही वजह है कि मैं यह तार खींच रहा हूं।’

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                                                                                                                                                                             Source:https://bit.ly/2Rto9mi

Monday, December 31, 2018

भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मंदिरों के बारे में जानकारी |

1.) सोमनाथ मंदिर 
सुंदर राज्य गुजरात में स्थित सोमनाथ के मंदिर का सबसे शुभ और सुंदर ज्योतिर्लिंग 12 से बाहर माना जाता है। यह पहली तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है और पूरे देश में महान महत्व रखती है। सोमनाथ मंदिर के इतिहास में अमीर है और 16 बार पुन: निर्मित किया गया है करने के लिए कहा है और इसलिए दैवीय और महान माना जाता है।
2.)महाकालेश्वर मंदिर
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के सुंदर शहर में मध्य प्रदेश में स्थित है और जिज्ञासा का विषय हो सकता है क्योंकि यह स्वयं मौजूदा या “स्वयंभू मूर्ती एक चबुतरेपर” माना जाता है माना जाता है। शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ यहाँ देखा जा सकता है और यह दक्षिण का सामना केवल मंदिर है। यह माना जाता है कि भगवान शिव यहाँ अवतीर्ण असामयिक मौतों से अपने भक्तों को बचाने के लिए।

3.) मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर 
आंध्र प्रदेश, श्रीसैलम  के शहर में स्थित मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर एक खूबसूरती से मूर्ति मंदिर, वास्तुकला और डिजाइन में समृद्ध है। शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ इस मंदिर में हैं। यह सदियों से तीर्थ यात्रा के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। श्रीसैलम पहाड़ी अत्यंत पवित्र माना जाता है और लोगों का मानना है कि एक बस इस स्थान पर जन्म लेने के द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ब्रह्मराम्बा  देवी और ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में स्वयं प्रकट होने के लिए विश्वास कर रहे हैं।

4.) ममलेश्वर मंदिर 
मंदिर मध्य परदेश में स्थित है और इसकी संस्कृति, इतिहास और विरासत में समृद्ध माना जाता है। यह मंदिर हिन्दू भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर कुंण्डली ओंकारेश्वर मंदिर नदी नर्मदा के तट पर स्थित है। हालांकि ओंकारेश्वर दोनों से बाहर और अधिक प्रसिद्ध है लेकिन  ममलेश्वर  वास्तविक ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर के रूप में केवल एक हॉल और गर्भगृह से युक्त अन्य ज्योतिर्लिंग के रूप में बड़ा नहीं है | महाशक्ति  मूर्ति (देवी पार्वती) भी शिव मूर्ति के पीछे स्थित है और  ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास कई छोटे मंदिर हैं।

5.केदारनाथ
यह रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय रूप में अच्छी तरह से भक्तों को आकर्षित करने का सबसे प्रसिद्ध और देखी गई शिव मंदिरों में से एक है केदारनाथ कोई परिचय की जरूरत है। उत्तराखंड की खूबसूरत घाटी में स्थित, केदारनाथ भगवान शिव का पवित्र कैलाश पर्वत पर निवास करने के लिए निकटतम मंदिर है। यह चार धाम यात्रा, हिंदू धर्म में प्रसिद्ध का हिस्सा है। यह कहा जाता है कि भगवान शिव एक जंगली सूअर का रूप ले लिया और केदारनाथ में पृथ्वी में डुबकी लगाई और बाहर पशुपतिनाथ में उभरा। यहाँ शुद्ध घी केदारनाथ में विश्वास है कि जंगली सूअर घायल हो गया था पर की पेशकश की है।

6.)काशी विश्वनाथ मंदिर
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, में स्थित मंदिर शायद हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थ है। हिंदू पवित्र तीर्थ यात्रा के लिए कम से कम करने के लिए वाराणसी जाने की संभावना है लोगों को अपने जीवनकाल में। मुख्य देवता भगवान विश्वनाथ और पवित्रतम सभी शिव मंदिरों की है। यह पश्चिमी पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित है। मंदिर जहां शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ कर रहे हैं जगह है। काशी विश्वनाथ मंदिर में डिजाइन सुंदर और इतिहास और विरासत में समृद्ध है और वाराणसी के सबसे पुराने शहर में स्थित होने का विशेषाधिकार रखती है।

7.)भीमाशंकर मंदिर
मंदिर महाराष्ट्र में स्थित है और भी कई कारणों के लिए बहस का एक केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल से पता चलता है। इस तीर्थ स्थान है सबसे सुंदर घने जंगलों और वन्य जीवन से घिरा हुआ और करने के लिए स्वर्ग के रूप में संदर्भित किया जाता है। मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय अगस्त और फ़रवरी है।

8.) त्र्यंबकेश्वर मंदिर
मंदिर में महाराष्ट्र के राज्य, त्र्यंबक के शहर में स्थित है और भगवान शिव के पवित्र मंदिरों में से एक है। ज्योतिर्लिंग की रचना ही मनोरंजक, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र embodying तीन चेहरे रही है। मंदिर काले पत्थरों के साथ पूरी तरह से बनाया गया है। मंदिर गुरुकुल  और गणित पर मकान और अष्टांग योग के लिए एक केंद्र भी है। भगवान शिव की मूर्ति नास्सक  हीरा है जो अंग्रेजों द्वारा लूट लिया गया था का उपयोग कर बनाया गया था। जगह अपने नैसर्गिक सौंदर्य और रसीला हरी वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।

9.)नागेश्वरा मंदिर 
सुंदर मंदिर महाराष्ट्र में स्थित है और 12 वीं सदी में बनाया गया था। सबसे सुंदर सुविधा कि नागेश्वरा ज्योतिर्लिंग शिव पुराण में उल्लेख किया जाना करने के लिए विशेषाधिकार रखता है। 25 भगवान शिव की प्रतिमा और एक सुंदर तालाब बैठा हूँ इस जगह के मुख्य आकर्षण हैं। दुनिया भर में सभी तीर्थयात्रियों के हजारों हर साल मंदिर को आकर्षित करती है।

10.)वैद्यनाथ मंदिर
सुंदर मंदिर बचतगट, महाराष्ट्र में स्थित है। बाबा वैद्यनाथ धाम और वैद्यनाथ धाम मंदिर रूप में भी जाना जाता है। मंदिर बाबा वैद्यनाथ के मंदिर के रूप में अच्छी तरह के 21 अन्य मंदिरों के होते हैं। एक धारणा के अनुसार यह इस मंदिर जहां रावण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस्तेमाल किया था। भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रभावित उसे (कोई वैद्य या डॉक्टर की तरह) के रूप में रावण घायल हो गया था और इसलिए इसका नाम मंदिर निकला ठीक हो।

11.)रामेश्वरम मंदिर 
मंदिर तमिल नाडु राज्य में स्थित है और विशाल शिव मंदिरों में से एक है। यह रामेश्वरम स्तंभ है। यह माना जाता है कि किसी को भी, जो चाहता है बंद उसके पापों को धोता स्थित मंदिर के पास कम से कम एक बार पवित्र जल में डुबकी लेने चाहिए। 15 एकड़ में फैला हुआ यह माना जाता है कि प्रभु राम खुद यहाँ लिंग स्थापित किया। मंदिर उच्च और उदात्त गोपुरम  और खूबसूरती से मूर्ति दीवारों और एक नंदी की प्रतिमा है। यह कहा जाता है कि जो कोई भी चला जाता है और भगवान शिव २.३४ में हमेशा पूजा शिवलोक  में रहता है।
12.)घुमेश्वर मंदिर 
अंतिम सूची में राजस्थान के राज्य में स्थित घुमेश्व मंदिर आता है। यह मंदिर अपने नाम अनंत काल तक शिव पुराण में उल्लेख किया है। यह प्रसिद्ध रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित है। मंदिर बहुत सुंदर है शानदार देवगिरि पर्वत से युक्त है। मंदिर स्थित है आकर्षक एल्लोरा   गुफाओं के पास। भगवान शिव से जगह के आसपास घूमने के लिए इस्तेमाल किया उनके अनुयायियों की बीमारी का इलाज करने के लिए जगह के लिए। आज हम शिवलिंग के कई मात्रा है लेकिन सबसे शुभ लोगों ज्योतिर्लिंग  कहा जाता हैं।

                                                                                                                                                                             Source: https://bit.ly/2rY56Bi

Saturday, December 29, 2018

Radhe Maa - शिव महापुराण |

दैत्यों का स्वभाव तो सदैब से शक्तिसम्पन्न होते ही देवतावों और मनुष्यो को पीड़ित  करना रहा है |
ब्रह्मा जी से वर पाने के बाद तरकसुर के ३ पुत्रों ने मयदानव के द्वारा ३ नगर बनवाए | उसमे एक सोने का एक चांदी का एक लोहे का था | ये नगर आकाश में इधर उधर घूम सकते थे | इसमें बढे बढे भवन थे बाग़ , सड़के थी | करोडो दानव उसमे निवास करते | सुख  सुविधा तो उन नगरों में इतनी थी की कोई भी दवन जो भी इच्छा करता उसे वह  मिल जाता | इतना ही नहीं तरकसुर के पुत्र ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वर मांगकर मुर्दो को भी जीवित कर देने वाली बाबड़ी बनवाई | कोई भी दानव अगर मर जाता तो उसे उस बाबड़ी में ले जाया जाता | वह पुनः जीवित हो जाता और पहले से ज़्यदा शक्तिशाली हो जाता | फिर क्या था दानव निर्भय होकर देवतओं को डराने लगे | वे जगह जगह देवतओं को भगाकर इधर उधर विचरने लगे | वे मर्यादाहीन दनाव देवतओं के उद्यानों को तहस नहस करदेते और ऋषियों के पवित्र आश्रमों को भी नष्ट कर देते | इनके अत्याचारों से चारो तरफ हाहाकार मच गया |
इस प्रकार जब सब लोक पीड़ित हो गए तो साभी देवता  इंद्रा के साथ मिलकर उन नगरों पर प्रहार करने लगे | किन्तु बर्ह्मा जी के वर के प्रभाव से सबअसुर पुनः जीवित हो जाते थे |
सभी देवता मिलकर बह्मा जी के पास गए | बह्मा जी ने देवतओं को बताया की भगवान् शिव के अलावा आपको कोई भी इस समस्या से नहीं निकाल सकता | तदन्तर बर्ह्मा जी के नेतृत्व में सभी देवता भगवान् शिव के पास गए | भगवान् शिव शरनपन्नो को अभयदान देने वाले है . तेजराशी पारवती जी के पति भगवान् शिव  के दर्शन पाकर सभी देवतओं ने सर झुककर प्रणाम किया | भगवान् शिव  ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कहिये आप सब की क्या इच्छा है |
भगवान् शिव की आज्ञा पाकर देवतओं ने भगवान् शिवकी स्तुति की और कहा हम मन वाणी , कर्म से आपकी शरण में हैं आप हमपर कृपा करे | भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर कहा आप सब भय रहित होकर कहिये मैं आपका क्या कार्य करू |
इस प्रकार जब महादेव जी ने देवतओं को अभयदान दे दिया तब बर्ह्मा जी ने हाथ जोड़कर कहा- सर्वेशर आपकी कृपा से प्रजापति के पद पर प्रतिष्ठित होकर मैंने दानवो को एक वर दे दिया  था | जिससे उन्होंने सब मर्यादायों को तोड़ दिया आपके सिवा  उनका कोई वध नहीं कर सकता |
तब भगवान् शिव ने कहा – देवताओं ! में धनुष – बाण धारण करके रथ में सवार हो उनके वध शीध्र ही करूँगा | देवतागण संतुष्ट होकर भगवान् शिव की जय जय कार करने लगे |
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                                                                                                                                 Source: https://bit.ly/2zriAcZ

Sunday, December 23, 2018

केदारनाथ मंदिर वास्तुकला, इतिहास |


इतिहास 


केदारनाथ मन्दिर के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ का दर्शन करना अधूरा माना जाता है। इसके दर्शन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और मुक्ति मिलती है। यह मंदिर कब बना इसे लेकर विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए हैं। प्रमुख साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह 12वीं- 13वीं शताब्दी में बना होगा। दूसरे मत के अनुसार इस मंदिर को आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में बनवाया था।
ग्वालियर के राजा भोज स्तुति के अनुसार यह मंदिर 1076 – 1099 ई० के दौरान बनाया था। यह मंदिर 400  सालों तक पूरी तरह बर्फ में ढका रहा, उसके बाद यह प्रकाश में आया। यह मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के बीच में स्थित है। मंदिर के अंदर प्राचीन काल मैं बनी देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां हैं।

कहानी

इस मंदिर से जुड़ी अनेक कहानियां हैं। मुख्य कथा के अनुसार केदारपर्वत की चोटी पर महातपस्वी नर और नारायण ऋषि भगवान शिव की तपस्या करते थे। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने दर्शन दिए और केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में सदैव के लिए वास करने का वरदान दिया।

दूसरी कथा के अनुसार पांडवों ने यह मंदिर बनाया था। अपने ही भाई बंधुओं की युद्ध में हत्या करने के कारण पांडव बहुत ही हताश और आत्मग्लानि से भरे हुए थे। वे भगवान शिव से मिलना चाहते थे जिससे उनको मुक्ति का मार्ग मिल सके। परंतु महाभारत के युद्ध के कारण भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे और उनसे नहीं मिलना चाहते थे। भगवान शिव की खोज में पांडव काशी गए जहां पर उन्हें दर्शन प्राप्त नहीं हुआ। शिव की खोज करते करते पांडव केदारनाथ पर्वत आ गए। भगवान शिव ने वृषभ बैल का रूप धारण कर लिया।
पांडवों में सबसे बलशाली भीम ने भगवान शिव को खोजने की अनोखी युक्ति निकाली। उन्होंने अपना आकार बड़ा किया और विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों पर पैर रख दिया। भगवान दूसरे जानवरों के साथ बैल रूप में थे। ऐसा होने पर सभी जानवर तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए परंतु भगवान शिव नहीं निकले। भीम समझ गये कि यह बैल कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव हैं।
भीम उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गये। अंत में भीम ने भगवान शिव को खोज लिया। अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पांडवो को दर्शन दिया और पाप मुक्ति का मार्ग बताया।

केदारनाथ मंदिर की बनावट और वास्तुशिल्प

इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। यह मंदिर 6 फुट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। 3593 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। इतनी ऊंचाई पर इसे कैसे बनाया गया होगा इस बात की कल्पना करना भी कठिन है। इसे कत्यूरी शैली में बनाया गया है। इसे बनाने में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी से बनाई गई है।

शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाहरी परिसर में भगवान शिव का सबसे प्रिय नंदी की विशाल प्रतिमा बनी हुई है। यह मंदिर तीन भागों में बटा हुआ है – गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप (जहां पर भक्त एक प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा भाग सभामंडप का है जहां पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं।

                                                                                                                               Source: https://bit.ly/2LEg6wV

Wednesday, May 11, 2016

Thousand of Shiv lingas was carved by king Sadashivaraya



Pilgrim place Sahasralinga located at a distance of 17 km from Sirsi in Uttara kannada district which is on the banks of the river Shalmala near Bhairumbe village. More than 1000 Shiva lingas carved on the rocks –some on the river bank and some present in the river it is believed that
Bholenath Bhakt King Sadashivaraya, king of Karnataka (1678-1718) created 1001 Shivalingas by carving them on rocks He used to worship Lord Shiva as he was childless. He made vow to the Lord Shiva that the moment he would have a child, he would carve thousand lingas on the Shalmala river bank.  Soon after his vow, a daughter was born; hence the Sahsralingas were created on the bank of Shalmala River.  There are also bulls and other artistic forms carved on the rocks of the river

Monday, July 13, 2015

Trishul is a three-headed weapon of Lord Shiva



Trisula means “trident.” The Trisula (or, trishula) is the three-pronged sacred weapon of the Hindu deity Shiva. In a general sense, the trisula represents the deity in his three aspects of Creator, Preserver, and Destroyer. 

Note:
To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.

(Photo Courtesy – google.com)

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Monday, May 19, 2014

Jai Bolo Madhyamaheshwar Mahadev ki!



Encircled by the snow-capped Gadhwal Himalayas, Madhyamaheswar stands at the spot where the belly or madhya of Lord Shiva manifested who took the form of a bull to escape the Pandavas.

It is said that the bull was held by Bhima. Shiva had taken a form so huge that he manifested across Uttarakhand and part of Nepal. Madhmaheshwar is where his belly manifested itself and is therefore holy to all worshipers of Lord Shiva.

It is situated in the village Mansuna in the Gadhwal region of Uttarakhand and is the fourth among the five Kedars or shiva shrines that are worshipped by those who wish to do a pilgrimage of the panch-kedars.

May ever compassionate Lord Madhyamaheswar Mahadev bless us with buddhi, viveka and a desire to seek the reality beyond all appearances! Har Har Mahadev!  


 
Watch a traditional Gadhwali folk song narrating the story of Pandavas and Ppanch Kedars in Gadhwali on this link https://www.youtube.com/watch?v=CGqW20FJT24



 Mamtamai Shri Radhe Guru Maa Charitable Trust

Note

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