Monday, December 31, 2018

सफला एकादशी -जानिए संपूर्ण पूजन विधि, कथा व महत्व |


पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 18 दिसंबर, गुरुवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं। इस व्रत की विधि इस प्रकार है- 

सफला एकादशी के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहन कर माथे पर चंदन लगाकर कमल अथवा वैजयंती फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत व धूप-दीप से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा एवं आरती करें। भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करें। पूरे दिन निराहार रहें, शाम को दीपदान के बाद फलाहार कर सकते हैं।

इस रात्रि को वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन करते हुए जागते हैं। सफला एकादशी की रात जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता, ऐसा धर्मग्रंथों में लिखा है।

द्वादशी (19 दिसंबर, शुक्रवार) के दिन भगवान की पूजा के पश्चात कर्मकाण्डी ब्राह्मण को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात भोजन करें।

                                                                                                                                  Source: https://bit.ly/2St7L1D

भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मंदिरों के बारे में जानकारी |

1.) सोमनाथ मंदिर 
सुंदर राज्य गुजरात में स्थित सोमनाथ के मंदिर का सबसे शुभ और सुंदर ज्योतिर्लिंग 12 से बाहर माना जाता है। यह पहली तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता है और पूरे देश में महान महत्व रखती है। सोमनाथ मंदिर के इतिहास में अमीर है और 16 बार पुन: निर्मित किया गया है करने के लिए कहा है और इसलिए दैवीय और महान माना जाता है।
2.)महाकालेश्वर मंदिर
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के सुंदर शहर में मध्य प्रदेश में स्थित है और जिज्ञासा का विषय हो सकता है क्योंकि यह स्वयं मौजूदा या “स्वयंभू मूर्ती एक चबुतरेपर” माना जाता है माना जाता है। शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ यहाँ देखा जा सकता है और यह दक्षिण का सामना केवल मंदिर है। यह माना जाता है कि भगवान शिव यहाँ अवतीर्ण असामयिक मौतों से अपने भक्तों को बचाने के लिए।

3.) मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर 
आंध्र प्रदेश, श्रीसैलम  के शहर में स्थित मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर एक खूबसूरती से मूर्ति मंदिर, वास्तुकला और डिजाइन में समृद्ध है। शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ इस मंदिर में हैं। यह सदियों से तीर्थ यात्रा के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है। श्रीसैलम पहाड़ी अत्यंत पवित्र माना जाता है और लोगों का मानना है कि एक बस इस स्थान पर जन्म लेने के द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ब्रह्मराम्बा  देवी और ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में स्वयं प्रकट होने के लिए विश्वास कर रहे हैं।

4.) ममलेश्वर मंदिर 
मंदिर मध्य परदेश में स्थित है और इसकी संस्कृति, इतिहास और विरासत में समृद्ध माना जाता है। यह मंदिर हिन्दू भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर कुंण्डली ओंकारेश्वर मंदिर नदी नर्मदा के तट पर स्थित है। हालांकि ओंकारेश्वर दोनों से बाहर और अधिक प्रसिद्ध है लेकिन  ममलेश्वर  वास्तविक ज्योतिर्लिंग है। इस मंदिर के रूप में केवल एक हॉल और गर्भगृह से युक्त अन्य ज्योतिर्लिंग के रूप में बड़ा नहीं है | महाशक्ति  मूर्ति (देवी पार्वती) भी शिव मूर्ति के पीछे स्थित है और  ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के आसपास कई छोटे मंदिर हैं।

5.केदारनाथ
यह रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय रूप में अच्छी तरह से भक्तों को आकर्षित करने का सबसे प्रसिद्ध और देखी गई शिव मंदिरों में से एक है केदारनाथ कोई परिचय की जरूरत है। उत्तराखंड की खूबसूरत घाटी में स्थित, केदारनाथ भगवान शिव का पवित्र कैलाश पर्वत पर निवास करने के लिए निकटतम मंदिर है। यह चार धाम यात्रा, हिंदू धर्म में प्रसिद्ध का हिस्सा है। यह कहा जाता है कि भगवान शिव एक जंगली सूअर का रूप ले लिया और केदारनाथ में पृथ्वी में डुबकी लगाई और बाहर पशुपतिनाथ में उभरा। यहाँ शुद्ध घी केदारनाथ में विश्वास है कि जंगली सूअर घायल हो गया था पर की पेशकश की है।

6.)काशी विश्वनाथ मंदिर
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, में स्थित मंदिर शायद हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थ है। हिंदू पवित्र तीर्थ यात्रा के लिए कम से कम करने के लिए वाराणसी जाने की संभावना है लोगों को अपने जीवनकाल में। मुख्य देवता भगवान विश्वनाथ और पवित्रतम सभी शिव मंदिरों की है। यह पश्चिमी पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित है। मंदिर जहां शक्ति पीठ  और ज्योतिर्लिंग एक साथ कर रहे हैं जगह है। काशी विश्वनाथ मंदिर में डिजाइन सुंदर और इतिहास और विरासत में समृद्ध है और वाराणसी के सबसे पुराने शहर में स्थित होने का विशेषाधिकार रखती है।

7.)भीमाशंकर मंदिर
मंदिर महाराष्ट्र में स्थित है और भी कई कारणों के लिए बहस का एक केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल से पता चलता है। इस तीर्थ स्थान है सबसे सुंदर घने जंगलों और वन्य जीवन से घिरा हुआ और करने के लिए स्वर्ग के रूप में संदर्भित किया जाता है। मंदिर की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय अगस्त और फ़रवरी है।

8.) त्र्यंबकेश्वर मंदिर
मंदिर में महाराष्ट्र के राज्य, त्र्यंबक के शहर में स्थित है और भगवान शिव के पवित्र मंदिरों में से एक है। ज्योतिर्लिंग की रचना ही मनोरंजक, भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान रुद्र embodying तीन चेहरे रही है। मंदिर काले पत्थरों के साथ पूरी तरह से बनाया गया है। मंदिर गुरुकुल  और गणित पर मकान और अष्टांग योग के लिए एक केंद्र भी है। भगवान शिव की मूर्ति नास्सक  हीरा है जो अंग्रेजों द्वारा लूट लिया गया था का उपयोग कर बनाया गया था। जगह अपने नैसर्गिक सौंदर्य और रसीला हरी वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।

9.)नागेश्वरा मंदिर 
सुंदर मंदिर महाराष्ट्र में स्थित है और 12 वीं सदी में बनाया गया था। सबसे सुंदर सुविधा कि नागेश्वरा ज्योतिर्लिंग शिव पुराण में उल्लेख किया जाना करने के लिए विशेषाधिकार रखता है। 25 भगवान शिव की प्रतिमा और एक सुंदर तालाब बैठा हूँ इस जगह के मुख्य आकर्षण हैं। दुनिया भर में सभी तीर्थयात्रियों के हजारों हर साल मंदिर को आकर्षित करती है।

10.)वैद्यनाथ मंदिर
सुंदर मंदिर बचतगट, महाराष्ट्र में स्थित है। बाबा वैद्यनाथ धाम और वैद्यनाथ धाम मंदिर रूप में भी जाना जाता है। मंदिर बाबा वैद्यनाथ के मंदिर के रूप में अच्छी तरह के 21 अन्य मंदिरों के होते हैं। एक धारणा के अनुसार यह इस मंदिर जहां रावण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस्तेमाल किया था। भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रभावित उसे (कोई वैद्य या डॉक्टर की तरह) के रूप में रावण घायल हो गया था और इसलिए इसका नाम मंदिर निकला ठीक हो।

11.)रामेश्वरम मंदिर 
मंदिर तमिल नाडु राज्य में स्थित है और विशाल शिव मंदिरों में से एक है। यह रामेश्वरम स्तंभ है। यह माना जाता है कि किसी को भी, जो चाहता है बंद उसके पापों को धोता स्थित मंदिर के पास कम से कम एक बार पवित्र जल में डुबकी लेने चाहिए। 15 एकड़ में फैला हुआ यह माना जाता है कि प्रभु राम खुद यहाँ लिंग स्थापित किया। मंदिर उच्च और उदात्त गोपुरम  और खूबसूरती से मूर्ति दीवारों और एक नंदी की प्रतिमा है। यह कहा जाता है कि जो कोई भी चला जाता है और भगवान शिव २.३४ में हमेशा पूजा शिवलोक  में रहता है।
12.)घुमेश्वर मंदिर 
अंतिम सूची में राजस्थान के राज्य में स्थित घुमेश्व मंदिर आता है। यह मंदिर अपने नाम अनंत काल तक शिव पुराण में उल्लेख किया है। यह प्रसिद्ध रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित है। मंदिर बहुत सुंदर है शानदार देवगिरि पर्वत से युक्त है। मंदिर स्थित है आकर्षक एल्लोरा   गुफाओं के पास। भगवान शिव से जगह के आसपास घूमने के लिए इस्तेमाल किया उनके अनुयायियों की बीमारी का इलाज करने के लिए जगह के लिए। आज हम शिवलिंग के कई मात्रा है लेकिन सबसे शुभ लोगों ज्योतिर्लिंग  कहा जाता हैं।

                                                                                                                                                                             Source: https://bit.ly/2rY56Bi

Saturday, December 29, 2018

Radhe Maa - शिव महापुराण |

दैत्यों का स्वभाव तो सदैब से शक्तिसम्पन्न होते ही देवतावों और मनुष्यो को पीड़ित  करना रहा है |
ब्रह्मा जी से वर पाने के बाद तरकसुर के ३ पुत्रों ने मयदानव के द्वारा ३ नगर बनवाए | उसमे एक सोने का एक चांदी का एक लोहे का था | ये नगर आकाश में इधर उधर घूम सकते थे | इसमें बढे बढे भवन थे बाग़ , सड़के थी | करोडो दानव उसमे निवास करते | सुख  सुविधा तो उन नगरों में इतनी थी की कोई भी दवन जो भी इच्छा करता उसे वह  मिल जाता | इतना ही नहीं तरकसुर के पुत्र ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वर मांगकर मुर्दो को भी जीवित कर देने वाली बाबड़ी बनवाई | कोई भी दानव अगर मर जाता तो उसे उस बाबड़ी में ले जाया जाता | वह पुनः जीवित हो जाता और पहले से ज़्यदा शक्तिशाली हो जाता | फिर क्या था दानव निर्भय होकर देवतओं को डराने लगे | वे जगह जगह देवतओं को भगाकर इधर उधर विचरने लगे | वे मर्यादाहीन दनाव देवतओं के उद्यानों को तहस नहस करदेते और ऋषियों के पवित्र आश्रमों को भी नष्ट कर देते | इनके अत्याचारों से चारो तरफ हाहाकार मच गया |
इस प्रकार जब सब लोक पीड़ित हो गए तो साभी देवता  इंद्रा के साथ मिलकर उन नगरों पर प्रहार करने लगे | किन्तु बर्ह्मा जी के वर के प्रभाव से सबअसुर पुनः जीवित हो जाते थे |
सभी देवता मिलकर बह्मा जी के पास गए | बह्मा जी ने देवतओं को बताया की भगवान् शिव के अलावा आपको कोई भी इस समस्या से नहीं निकाल सकता | तदन्तर बर्ह्मा जी के नेतृत्व में सभी देवता भगवान् शिव के पास गए | भगवान् शिव शरनपन्नो को अभयदान देने वाले है . तेजराशी पारवती जी के पति भगवान् शिव  के दर्शन पाकर सभी देवतओं ने सर झुककर प्रणाम किया | भगवान् शिव  ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कहिये आप सब की क्या इच्छा है |
भगवान् शिव की आज्ञा पाकर देवतओं ने भगवान् शिवकी स्तुति की और कहा हम मन वाणी , कर्म से आपकी शरण में हैं आप हमपर कृपा करे | भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर कहा आप सब भय रहित होकर कहिये मैं आपका क्या कार्य करू |
इस प्रकार जब महादेव जी ने देवतओं को अभयदान दे दिया तब बर्ह्मा जी ने हाथ जोड़कर कहा- सर्वेशर आपकी कृपा से प्रजापति के पद पर प्रतिष्ठित होकर मैंने दानवो को एक वर दे दिया  था | जिससे उन्होंने सब मर्यादायों को तोड़ दिया आपके सिवा  उनका कोई वध नहीं कर सकता |
तब भगवान् शिव ने कहा – देवताओं ! में धनुष – बाण धारण करके रथ में सवार हो उनके वध शीध्र ही करूँगा | देवतागण संतुष्ट होकर भगवान् शिव की जय जय कार करने लगे |
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Friday, December 28, 2018

Radhe Maa -जानिये हनुमानजी के ये 10 रहस्य |

हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे। आओ जानते हैं उनके बारे में कुछ चमत्कारिक बातें। 

1.हनुमानजी का जन्म स्थान : 
कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।

2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी 

इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।
 
3.कपि नामक वानर
हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।
रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4.हनुमान परिवार
हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।
कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं। हनुमानजी के पसीने की बूंद से उनके एक पुत्र का जन्म हुआ जिसे मकरध्वज कहा गया। पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।

5.इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी
रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

6.हनुमानजी के पराक्रम
हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। हनुमानजी उड़कर समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।
अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।

इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था। हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।

7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ
तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।

8.माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी
रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास
हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।

9.सर्वशक्तिमान हनुमानजी
हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।

सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

10. इन्होंने देखा हनुमानजी को
13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं।

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                                                                                                    Source: https://bit.ly/2TbKeSC

माँ दुर्गा शक्ति का स्वरुप |

दुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त सम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है) वेदों में तो दुर्गा का कोई ज़िक्र नहीं है, मगर उपनिषद में देवी 'उमा हैमवती' उमा, हिमालय की पुत्री का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति देवताओं की प्रार्थना पर राक्षसों का नाश करने के लिये हुई थी। इस तरह दुर्गा युद्ध की देवी हैं। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। मुख्य रूप उनका 'गौरी' है अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं। कुछ दुर्गा मन्दिरों में पशुबलि भी चढ़ती है। भगवती दुर्गा की सवारी शेर है।

दुर्गा जी की पूजा में दुर्गा जी की आरती और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है.

नवरात्र में देवी पूजन

हिन्दू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय नवरात्र होता है। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। वर्ष के चार नवरात्रों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन के नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। इनका आरम्भ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होता है। अतः यह प्रतिपदा ’सम्मुखी’ शुभ होती है।
दुर्गा जी के सोलह नाम

ब्रह्म वैवर्त पुराण से उद्धृत:

नारदजी बोले- ब्रह्मन्! मैंने अत्यन्त अद्भुत सम्पूर्ण उपाख्यानों को सुना। अब दुर्गाजी के उत्तम उपाख्यान को सुनना चाहता हूँ। वेद की कौथुमी शाखा में जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी- ये सोलह नाम बताये गये हैं, वे सब के लिये कल्याणदायक हैं। वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ नारायण! इन सोलह नामों का जो उत्तम अर्थ है, वह सबको अभीष्ट है। उसमें सर्वसम्मत वेदोक्त अर्थ को आप बताइये। पहले किसने दुर्गाजी की पूजा की है? फिर दूसरी, तीसरी और चौथी बार किन-किन लोगों ने उनका सर्वत्र पूजन किया है?
श्रीनारायण ने कहा- देवर्षे! भगवान् विष्णु ने वेद में इन सोलह नामों का अर्थ किया है, तुम उसे जानते हो तो भी मुझसे पुन: पूछते हो। अच्छा, मैं आगमों के अनुसार उन नामों का अर्थ कहता हूँ।
दुर्गा दुर्गा शब्द का पदच्छेद यों है- दुर्ग+आ। 'दुर्ग' शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान भय तथा अत्यन्त रोग के अर्थ में आता है तथा 'आ' शब्द 'हन्ता' का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे 'दुर्गा' कहा गया है।
नारायणी
यह दुर्गा यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान है तथा नारायण की ही शक्ति है। इसलिये 'नारायणी' कही गयी हैं
ईशाना
ईशाना का पदच्छेद इस प्रकार है- ईशान+आ। 'ईशान' शब्द सम्पूर्ण सिद्धियों के अर्थ में प्रयुक्त होता है और 'आ' शब्द दाताका वाचक है। जो सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, वह देवी 'ईशाना' कही गयी है।
विष्णुमाया
पूर्वकाल में सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि की थी और अपनी उस मायाद्वारा सम्पूर्ण विश्व को मोहित किया। वह मायादेवी विष्णु की ही शक्ति है, इसलिये 'विष्णुमाया' कही गयी है।
शिवा
'शिवा' शब्द का पदच्देद यों है- शिव+आ। 'शिव' शब्द शिव एवं कल्याण अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा 'आ' शब्द प्रिय और दाता-अर्थ में। वह देवी कल्याणस्वरूपा है, शिवदायिनी है और शिवप्रिया है, इसलिये 'शिवा' कही गयी है।
सती
देवी दुर्गा सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं, प्रत्येक युग में विद्यमान हैं तथा पतिव्रता एवं सुशीला हैं। इसीलिये उन्हें 'सती' कहते हैं।
नित्या

जैसे भगवान् नित्य हैं, उसी तरह भगवती भी 'नित्या' हैं। प्राकृत प्रलय के समय वे अपनी माया से परमात्मा श्रीकृष्ण में तिरोहित रहती हैं।

सत्या

ब्रह्मासे लेकर तृण अथवा कीटपर्यन्त सम्पूर्ण जगत् कृत्रिम होने के कारण मिथ्या ही है, परंतु दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं। जैसे भगवान् सत्य हैं, उसी तरह प्रकृतिदेवी भी 'सत्या' हैं।
भगवती
सिद्ध, ऐश्वर्य आदि के अर्थ में 'भग' शब्द का प्रयोग होता है, ऐसा समझना चाहिये। वह सम्पूर्ण सिद्ध, ऐश्वर्यादिरूप भग प्रत्येक युग में जिनके भीतर विद्यमान है, वे देवी दुर्गा 'भगवती' कही गयी हैं।
सर्वाणी
जो विश्व के सम्पूर्ण चराचर प्राणियों को जन्म, मृत्यु, जरा आदि की तथा मोक्षकी भी प्राप्ति कराती हैं, वे देवी अपने इसी गुण के कारण 'सर्वाणी' कही गयी हैं।
सर्वमंगला
'मंगल' शब्द मोक्ष का वाचक है और 'आ' शब्द दाताका। जो सम्पूर्ण मोक्ष देती हैं, वे दी देवी 'सर्वमंगला' हैं। 'मंगल' शब्द हर्ष, सम्पत्ति और कल्याण के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जो उन सबको देती हैं, वे ही देवी 'सर्वमंगला' नामसे विख्यात हैं।
अम्बिका
'अम्बा' शब्द माता का वाचक है तथा वन्दन और पूजन-अर्थ में भी 'अम्ब' शब्द का प्रयोग होता है। वे देवी सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकों की माता हैं, इसलिये 'अम्बिका' कहलाती हैं
वैष्णवी
देवी श्रीविष्णु की भक्ता, विष्णुरूपा तथा विष्णु की शक्ति हैं। साथ ही सृष्टकाल में विष्णु के द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है। इसलिये उनकी 'वैष्णवी' संज्ञा है।
गौरी
'गौर' शब्द पीले रंग, निर्लिप्त एवं निर्मल परब्रह्म परमात्मा के अर्थ में प्रयुक्त होता है। उन 'गौर' शब्दवाच्य परमात्मा की वे शक्ति हैं, इसलिये वे 'गौरी' कही गयी हैं। भगवान् शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी सती-साध्वी प्रिया शक्ति हैं। इसलिये 'गौरी' कही गयी हैं। श्रीकृष्ण ही सबके गुरु हैं और देवी उनकी माया है। इसलिये भी उनको 'गौरी' कहा गया है।
पार्वती
'पर्व' शब्द तिथिभेद (पूर्णिमा), पर्वभेद, कल्पभेद तथा अन्यान्य भेद अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा 'ती' शब्द ख्याति के अर्थ में आता है। उन पर्व आदि में विख्यात होने से उन देवी की 'पार्वती' संज्ञा है। 'पर्वन्' शब्द महोत्सव-विशेष के अर्थ में आता है। उसकी अधिष्ठात्री देवी होने के नाते उन्हें 'पार्वती' कहा गया है। वे देवी पर्वत (गिरिराज हिमालय)- की पुत्री हैं। पर्वत पर प्रकट हुई हैं तथा पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिये भी उन्हें 'पार्वती' कहते हैं।'

सनातनी


'सना' का अर्थ है सर्वदा और 'तनी' का अर्थ है विद्यमाना। सर्वत्र और सब काल में विद्यमान होने से वे देवी 'सनातनी' कही गयी हैं।

                                                                                                                                                                       Source : https://bit.ly/2Vd9xpk


Thursday, December 27, 2018

तिरुपति बालाजी की कहानी ।


अगर धन के आधार पर देखा जाए तो वर्तमान में सबसे धनवान भगवान बालाजी हैं। एक आंकड़े के अनुसार बालाजी मंद‌िर ट्रस्ट के खजाने में 50 हजार करोड़ से अध‌िक की संपत्त‌ि है। लेक‌िन इतने धनवान होने पर भी बालाजी सभी देवताओं से गरीब ही हैं 


आप सोच रहे होंगे क‌ि इतना पैसा होने पर भी भगवान गरीब कैसे हो सकते हैं। और दूसरा सवाल यह भी आपके मन में उठ सकता है क‌ि जो सबकी मनोकामना पूरी करता है वह खुद कैसे गरीब हो सकता है।


लेक‌िन त‌िरुपत‌ि बालाजी के बारे में ऐसी प्राचीन कथा है ज‌िसके अनुसार बालाजी कल‌ियुग के अंत तक कर्ज में रहेंगे। बालाजी के ऊपर जो कर्ज है उसी कर्ज को चुकाने के ल‌िए यहां भक्त सोना और बहुमूल्य धातु एवं धन दान करते हैं।
शास्‍त्रों के अनुसार कर्ज में डूबे व्यक्त‌ि के पास क‌ितना भी धन हो वह गरीब ही होता है। इस न‌ियम के अनुसार यह माना जाता है क‌ि धनवान होकर भी गरीब हैं बालाजी।
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार महर्ष‌ि भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगन‌िद्रा में लेटे भगवान व‌िष्‍णु की छाती पर एक लात मारी। भगवान व‌िष्‍णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ ल‌िए और पूछने लगे क‌ि ऋष‌िवर पैर में चोट तो नहीं लगी।
भगवान व‌िष्‍णु का इतना कहना था क‌ि भृगु ऋष‌ि ने दोनों हाथ जोड़ ल‌िए और कहने लगे प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं इसल‌िए यज्ञ भाग के प्रमुख अध‌िकारी आप ही हैं। लेक‌िन देवी लक्ष्मी को भृगु ऋष‌ि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वह व‌िष्‍णु जी से नाराज हो गई। नाराजगी इस बात से थी क‌ि भगवान ने भृगु ऋष‌ि को दंड क्यों नहीं द‌िया।
नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान व‌िष्‍णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु क‌िया तो पता चला क‌ि देवी ने पृथ्‍वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म ल‌िया है। भगवान व‌िष्‍णु ने भी तब अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने व‌िवाह का प्रस्ताव रखा ज‌िसे देवी ने स्वीकार कर ल‌िया।
लेक‌िन प्रश्न सामने यह आया क‌ि व‌िवाह के ल‌िए धन कहां से आएगा।
व‌िष्‍णु जी ने समस्या का समाधान न‌िकालने के ल‌िए भगवान श‌िव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज ल‌िया। इस कर्ज से भगवान व‌िष्‍णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने व‌िवाह क‌िया।
कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन द‌िया था क‌ि कल‌ियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह सूद चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताक‌ि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।
भक्तों से म‌िले दान की बदौलत आज यह मंद‌िर करीब 50 हजार करोड़ की संपत्त‌ि का माल‌िक बन चुका है। 
                                                                                                                                                                                                                                                                                             Source: https://bit.ly/2TbkB4k

Wednesday, December 26, 2018

बाल श्री कृष्णा की रोचक कथा |

          बाल श्री कृष्णा की रोचक कथा

श्री कृष्णा जन्म : बाल कृष्णा का जन्म जन्माष्टमी के शुभ पर्व से जाना जाता है | श्री कृष्णा भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे | जब कृष्णा का जन्म हुआ तब जेल के सभी सनतरी माया से सो गए | जेल के दरवाजे स्वत: ही खुल गये | उस वक़्त भारी बारिश हो रही थी | यमुना नदी में उफान मचा हुआ था | एसे में वासुदेव बाल क्रिशन को टोकरी में रखकर जेल से बहार निकल गए | पर उनको गोकुल जाने के लिए यमुना नदी को पार करना था वो काफी मुश्किल लग रहा था |और तभी जाने कोई चमत्कार हुआ की अचानक ही यमुना नदी के जल दो हिस्सों में बंट गए और अपने आप रास्ता बन गया | वासुदेव कृष्णा को अपने मित्र नंदजी के वहां ले गए जहाँ पे नन्द की पत्नी यशोदा को भी एक संतान ( कन्या ) हुई थी | वासुदेव ने  कृष्णा को  वहीँ सुला दिया और उस कन्या को लेकर जेल में आ गए | कृष्णा को जन्म भले देवकी माता ने दिया था पर उनकी पालक माता तो यशोदाजी थी |

पूतना का वध : जब कृष्णा के मामा कंस को पता चल जाता है की छल से देवकी और वासुदेव ने अपने पुत्र को कहीं भेज दिया है तो वो चारों और अपने अनुचरो को सूचित करता है की कृष्णा जन्म के समय पे जितने भी बालकों का जन्म हुआ है उनका वध कर दिया जाये | कंस के अनुचरो को पता चल जाता है की कृष्णा गोकुल मैं है यमुना के उसपार | और श्री कृष्णा का मामा कंस अपने राक्षसों को भेजकर उसको मारने का प्रयास करता है | पर उन सब को बाल कृष्णा ने मार गिराया | पूतना का आतंक उस समय बहुत ज्यादा था | और कंस ने पूतना को कृष्णा को मारने के लिए भेजा पर पूतना को वोह नहीं पता था की बाल कृष्णा भगवान विष्णु का रूप थे | और श्री कृष्णा ने पूतना का वध किया और सभी मनुष्यों को उनके आतंक से मुक्त किया |

बाल कृष्णा की लीलाएँ :  
(1) बाल कृष्णा को माखन बहुत ज्यादा पसंद था | इसीलिए वह हररोज सब गोपियों के घर जाकर माखन चुराके भी खाते थे | 

(2) एक दिन बाल कृष्णा ने मिटटी खाई | और माता यशोदा मिटटी देखने के लिए उनके मुख को खोलती है तो माता यशोदा को बाल कृष्णा के मुख में ब्रह्मांड और तीनों लोको का दर्शन होता है |

(3) श्री कृष्णा को रास लीला बहुत पसंद थी | इसीलिए श्री कृष्णा अपने मित्रों के साथ मिल कर हर पर्व पे रासलीला का आयोजन करते थे |

(4) कदम्ब वन में उन्होंने बलराम के साथ मिलकर कालिया नाग का वध किया था |

(5) बाल कृष्णा की शरारत बढ़ जाने से माता यशोदा उनको एक पेड़ पर रस्सी से बांध कर रखती थी | 


जन्माष्टमी के शुभ पर्व पर भारत में दहीं हांड़ी का आयोजन होता है | जिसको गोविन्दा बने छोटे बच्चे एक पिरामिड बनाकर फोड़ते है | हर मंदिर में हिंडोडा दर्शन का आयोजन किया जाता है | और जन्माष्टमी के रात 12 बजे श्री कृष्णा का जन्म बड़े धामधूम से मनाया जाता है |  

                                                                                                                                                               Source : https://bit.ly/2V97wKO

Sunday, December 23, 2018

केदारनाथ मंदिर वास्तुकला, इतिहास |


इतिहास 


केदारनाथ मन्दिर के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ का दर्शन करना अधूरा माना जाता है। इसके दर्शन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और मुक्ति मिलती है। यह मंदिर कब बना इसे लेकर विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए हैं। प्रमुख साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह 12वीं- 13वीं शताब्दी में बना होगा। दूसरे मत के अनुसार इस मंदिर को आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में बनवाया था।
ग्वालियर के राजा भोज स्तुति के अनुसार यह मंदिर 1076 – 1099 ई० के दौरान बनाया था। यह मंदिर 400  सालों तक पूरी तरह बर्फ में ढका रहा, उसके बाद यह प्रकाश में आया। यह मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के बीच में स्थित है। मंदिर के अंदर प्राचीन काल मैं बनी देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां हैं।

कहानी

इस मंदिर से जुड़ी अनेक कहानियां हैं। मुख्य कथा के अनुसार केदारपर्वत की चोटी पर महातपस्वी नर और नारायण ऋषि भगवान शिव की तपस्या करते थे। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने दर्शन दिए और केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में सदैव के लिए वास करने का वरदान दिया।

दूसरी कथा के अनुसार पांडवों ने यह मंदिर बनाया था। अपने ही भाई बंधुओं की युद्ध में हत्या करने के कारण पांडव बहुत ही हताश और आत्मग्लानि से भरे हुए थे। वे भगवान शिव से मिलना चाहते थे जिससे उनको मुक्ति का मार्ग मिल सके। परंतु महाभारत के युद्ध के कारण भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे और उनसे नहीं मिलना चाहते थे। भगवान शिव की खोज में पांडव काशी गए जहां पर उन्हें दर्शन प्राप्त नहीं हुआ। शिव की खोज करते करते पांडव केदारनाथ पर्वत आ गए। भगवान शिव ने वृषभ बैल का रूप धारण कर लिया।
पांडवों में सबसे बलशाली भीम ने भगवान शिव को खोजने की अनोखी युक्ति निकाली। उन्होंने अपना आकार बड़ा किया और विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों पर पैर रख दिया। भगवान दूसरे जानवरों के साथ बैल रूप में थे। ऐसा होने पर सभी जानवर तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए परंतु भगवान शिव नहीं निकले। भीम समझ गये कि यह बैल कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव हैं।
भीम उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गये। अंत में भीम ने भगवान शिव को खोज लिया। अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पांडवो को दर्शन दिया और पाप मुक्ति का मार्ग बताया।

केदारनाथ मंदिर की बनावट और वास्तुशिल्प

इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। यह मंदिर 6 फुट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। 3593 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। इतनी ऊंचाई पर इसे कैसे बनाया गया होगा इस बात की कल्पना करना भी कठिन है। इसे कत्यूरी शैली में बनाया गया है। इसे बनाने में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी से बनाई गई है।

शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाहरी परिसर में भगवान शिव का सबसे प्रिय नंदी की विशाल प्रतिमा बनी हुई है। यह मंदिर तीन भागों में बटा हुआ है – गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप (जहां पर भक्त एक प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा भाग सभामंडप का है जहां पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं।

                                                                                                                               Source: https://bit.ly/2LEg6wV

Saturday, December 22, 2018

भगवान सूर्य की पौराणिक कथा और महिमा


सूर्य और चंद्र इस पृथ्वी के सबसे साक्षात देवता हैं जो हमें प्रत्यक्ष उनके सर्वोच्च दिव्य स्वरूप में दिखाई देते हैं। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। वेदों की ऋचाओं में अनेक स्थानों पर  सूर्य देव की स्तुति की गई है। पुराणों में सूर्य की उत्पत्ति,प्रभाव,स्तुति, मन्त्र इत्यादि विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है।  

कैसे हुई सूर्य देव की उत्पत्ति
 
मार्कंडेय पुराण के अनुसार  पहले यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश रहित था। उस समय कमलयोनि ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उनके मुख से प्रथम शब्द ॐ निकला जो सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप था। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद प्रकट हुए जो ॐ के तेज में एकाकार हो गए। 
 
यह वैदिक तेज ही आदित्य है जो विश्व का अविनाशी कारण है। ये वेद स्वरूप सूर्य ही सृष्टि की उत्पत्ति,पालन व संहार के  कारण हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने महातेज को समेट कर स्वल्प तेज को ही धारण किया। 
 
सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए जिनके पुत्र ऋषि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ। अदिति ने घोर तप द्वारा भगवान् सूर्य को प्रसन्न किया जिन्होंने उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश किया। गर्भावस्था में भी अदिति चान्द्रायण जैसे कठिन व्रतों का पालन करती थी। ऋषि राज कश्यप ने क्रोधित हो कर अदिति से कहा-'तुम इस तरह उपवास रख कर गर्भस्थ शिशु को क्यों मरना चाहती हो”> > यह सुन कर देवी अदिति ने गर्भ के बालक को उदर से बाहर कर दिया जो अपने अत्यंत दिव्य तेज से प्रज्वल्लित हो रहा था। भगवान् सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रगट हुए। अदिति को मारिचम- अन्डम कहा जाने के कारण यह बालक मार्तंड नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मपुराण में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया है।
                                                                                                                               Source : https://bit.ly/2rOHor5

दत्तात्रेय जयंती कथा |

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती के रूप में भी मनाई जाती है. इस वर्ष 22 दिसंबर 2018 को मनाई जाएगी. मान्यता अनुसार इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है. दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है.
मान्यता अनुसार दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था. श्रीमद्भगावत ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ  दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं. मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

दत्तात्रेय स्वरूप | Dattatreya Appearance

दत्तात्रेय जयन्ती प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है. दत्तात्रेय के संबंध में प्रचलित है कि इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएँ हैं. इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रुप से अंश मौजूद है. इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री जी को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होता है अत: नारद जी को जब इनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह इनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों की परीक्षा लेते हैं जिसके परिणाम स्वरूप दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव होता है.

दत्तात्रेय जयंती कथा | Dattatreya Jayanti Katha

नारद जी देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाते हैं और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं. लगे. देवी ईर्ष्या से भर उठी और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगी. सर्वप्रथम नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे.
देवीयों को सती अनुसूया की प्रशंसा सुनना कतई भी रास नहीं आया. घमण्ड के कारण वह जलने-भुनने लगी. नारद जी के चले जाने के बाद वह देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगी. ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियो के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए. जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की.
देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई. लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेगें. देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठी. लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली.
उसके बाद देवी ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया. जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया. बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया. देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी. धीरे-धीरे दिन बीतने लगे. जब काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नही लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी.

देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगी. तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया. माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना ही होगा. यह सुनकर तीनों देवों ने अपने - अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया. इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया. इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने. तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया |
                                                                                                                           Source : https://bit.ly/2R8FrEl