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Thursday, February 14, 2019

Shri Vishnu Puran | श्री विष्णु पुराण ।


श्री विष्णु-पुराण


प्राचीन काल में महर्षि मैत्रेय ने श्री पाराशर मुनि के आश्रम में जाकर उन्हें प्रणाम किया फिर स्वस्थ चित्त से सत्संग प्रारंभ हुआ। मैत्रेय ने कहा, हे महात्मन् ! मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं उन्हीं के उत्तर की अकांक्षा से मैं आपके दर्शन करने चला आया। आप अपने श्री मुख से अमृत वर्षा करके मुझे कृतार्थ करने की कृपा करें। इस संसार की उत्पत्ति कैसे हुई। पहले यह किसमें लीन था। प्रलय काल में किसमें लीन होगा। पंच महाभूत, भूमि, वन, पर्वत, देव, मानव तथा मन्वन्तर के विषयों पर आप प्रकाश डाल कर मेरी जिज्ञासा शान्त कीजिये।

तब प्रसन्न होकर महर्षि पाराशर बोले हे, महात्मन् ! यह प्रसंग मेरे पितामह वशिष्ठ जी तथा पुलस्त्य जी से मैंने सुना था। मैं आपकी जिज्ञासा यथासम्भव शान्त करूँगा। आप पूर्णमनोयोग से सुनें। प्राचीन काल में विश्वामित्र की प्रेरणा से मेरे पिता को एक राक्षस ने खा डाला था जिससे मेरा क्रोध बढ़ गया था। शोक एवं क्रोधावेश में आकर मैंने राक्षसों का विनाश करने के लिये एक यज्ञ अनुष्ठित किया। यज्ञाहुतियों के साथ सैकड़ों राक्षस जल कर भष्म होने लगे। तब मेरे दादा वशिष्ठ जी ने मुझसे समझाते हुए कहा हे वत्स ! क्रोध का त्याग करो। इन राक्षसों का क्या दोष ? तुम्हारे पिता के भाग्य का लेख ही ऐसा था। ज्ञानी को क्रोध शोभा नहीं देता। मारना जिलाना ईश्वर के आधीन है भले ही निमित्त कोई भी बन जाय। यज्ञ को यहीं विराम दो ! क्षमा साधु का भूषण होता है।

उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैंने यज्ञ बन्द कर दिया। मेरे दादा वशिष्ठ जी मुझ पर प्रसन्न हुए। उसी समय पुलस्त्य जी भी वहाँ आ गए। वशिष्ठ जी ने उनका अभिवादन करते हुए उन्हें अर्ध्य देकर आसन प्रदान किया। फिर बातों-बातों में मेरे विषय में भी बता दिया। तब पुलस्त्य जी ने प्रसन्न होकर मुझसे कहा कि तुमने अपने पितामह की आज्ञा मानकर क्षमा का आश्रय लिया। मैं प्रसन्न होकर तुम्हें आशीर्वाद दे रहा हूँ कि सम्पूर्ण सास्त्रों का ज्ञान तुम्हें सहज ही हो जाएगा और तुम पुराण संहिता की रचना करोगे तथा तुम्हें ईश्वर के यथार्थ रूप का ज्ञान हो जायेगा। पूर्वर्ती काल में उन दोनों ऋषियों के वर के प्रभाव से मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया। यह संसार विष्णु के द्वारा उत्पन्न किया गया वही इसके पालक हैं तथा प्रलय में यह उन्हीं में लय हो जाता है।

सृष्टि का उद्भव


महर्षि पाराशार ने कहा हे मुनीश्वर ! ब्रह्मा रूप में सृष्टि विष्णु रूप में पालन तथा रुद्र रूप में संहार करने वाले भगवान विष्णु को नमन करता हूँ। एक रूप होते हुए भी अनेक रूपधारी, अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त रूप वाले, घट घट वासी अविनाशी पुरुषोत्तम को नमस्कार करते हुए मैं आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के विषय में कहने जा रहा हूँ।

भगवान नारायण त्रिगुण प्रधान तथा विष्ण के मूल है। वह अनादि हैं। उत्पत्ति लय से रहित हैं। वह सर्वत्र तथा सबमें व्याप्त हैं। प्रलय काल में दिन था न रात्रि, न पृथ्वी न आकाश, न प्रकाश और न अन्धकार ही था। केवल ब्रह्म पुरुष ही था। विष्णु के निरूपाधि रूप से दो रूप हुए। पहला प्रधान और दूसरा पुरुष। विष्णु के जिस अन्य रूप द्वारा वह दोनों सृष्टि तथा प्रलय में संयुक्त अथवा वियुक्त होते हैं उस रूपान्तर को ही काल कहा जाता है। बीत चुके प्रलय काल में इस व्यक्त प्रपंच की स्थित प्रकृति में ही थी।

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                                                                                                                                                                                                               Source:https://bit.ly/2BC8B5y

Thursday, February 7, 2019

भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी जी की एक कहानी |

एक बार भगवान विष्णु जी शेषनाग पर बेठे बेठे बोर होगये, ओर उन्होने धरती पर घुमने का विचार मन मै किया, वेसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर आये, ओर वह अपनी यात्रा की तेयारी मे लग गये, स्वामी को तेयार होता देख कर लक्ष्मी मां ने पुछा !
आज सुबह सुबह कहा जाने कि तेयारी हो रही है?? विष्णु जी ने कहा हे लक्ष्मी मै धरती लोक पर घुमने जा रहा हुं, तो कुछ सोच कर लक्ष्मी मां ने कहा ! हे देव क्या मै भी आप के साथ चल सकती हुं???? भगवान विष्णु ने दो पल सोचा फ़िर कहा एक शर्त पर, तुम मेरे साथ चल सकती हो तुम धरती पर पहुच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना, इस के साथ ही माता लक्ष्मी ने हां कह के अपनी मनवाली।
ओर सुबह सुबह मां लक्ष्मी ओर भगवान विष्णु धरती पर पहुच गये, अभी सुर्य देवता निकल रहे थे, रात बरसात हो कर हटी थी, चारो ओर हरियाली ही हरियाली थी, उस समय चारो ओर बहुत शान्ति थी, ओर धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, ओर मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी, ओर भुल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है?ओर चारो ओर देखती हुयी कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी पता ही नही चला।
उत्तर दिशा मै मां लक्ष्मी को एक बहुत ही सुन्दर बगीचा नजर आया, ओर उस तरफ़ से भीनी भीनी खुशबु आ रही थी,ओर बहुत ही सुन्दर सुन्दर फ़ुल खिले थे,यह एक फ़ुलो का खेत था, ओर मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत मे गई ओर एक सुंदर सा फ़ुल तोड लाई, लेकिन यह क्या जब मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापिस आई तो भगवान विष्णु की आंखो मै आंसु थे, ओर भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को कहा कि कभी भी किसी से बिना पुछे उस का कुछ भी नही लेना चाहिये, ओर साथ ही अपना वचन भी याद दिलाया।
ओर मां लक्ष्मी एक गरीब ओरत का रुप धारण करके , उस खेत के मालिक के घर गई, घर क्या एक झोपडा था, ओर मालिक का नाम माधव था, माधब की बीबी, दो बेटे ओर तीन बेटिया थी , सभी उस छोटे से खेत मै काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे,
मां लक्ष्मी जब एक साधारण ओर गरीब ओरत बन कर जब माधव के झोपडे पर गई तो माधव ने पुछा बहिन तुम कोन हो?ओर इस समय तुम्हे क्या चाहिये? तब मां लक्ष्मी ने कहा ,मै एक गरीब ओरत हू मेरी देख भाल करने वाला कोई नही, मेने कई दिनो से खाना भी नही खाया मुझे कोई भी काम देदॊ, साथ मै मै तुम्हरे घर का काम भी कर दिया करुगी, बस मुझे अपने घर मै एक कोने मै आसरा देदो? माधाव बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था, उसे दया आ गई, लेकिन उस ने कहा, बहिन मै तो बहुत ही गरीब हुं, मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च मुस्किल से चलता है, लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटिया होती तो भी मेने गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जेसा रुखा सुखा हम खाते है उस मै खुश रह सकती हो तो बेटी अन्दर आ जाओ।
माधाव ने मां लक्ष्मी को अपने झोपडे मए शरण देदी, ओर मां लक्ष्मी तीन साल उस माधव के घर पर नोकरानी बन कर रही;
जिस दिन मां लक्ष्मी माधव के घर आई थी उस से दुसरे दिन ही माधाव को इतनी आमदनी हुयी फ़ुलो से की शाम को एक गाय खरीद ली,फ़िर धीरे धीरे माधव ने काफ़ी जमीन खारीद ली, ओर सब ने अच्छे अच्छे कपडे भी बनबा लिये, ओर फ़िर एक बडा पक्का घर भी बनबा लिया, बेटियो ओर बीबी ने गहने भी बनबा लिये, ओर अब मकान भी बहुत बडा बनाबा लिया था।
माधव हमेशा सोचता था कि मुझे यह सब इस महिला के आने के बाद मिला है, इस बेटी के रुप मे मेरी किस्मत आ गई है मेरी, ओर अब २-५ साल बीत गये थे, लेकिन मां लक्ष्मी अब भी घर मै ओर खेत मै काम करती थी, एक दिन माधव जब अपने खेतो से काम खत्म करके घर आया तो उस ने अपने घर के सामने दुवार पर एक देवी स्वरुप गहनो से लदी एक ओरात को देखा, ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुहं बोली चोथी बेटी यानि वही ओरत है, ओर पहचान गया कि यह तो मां लक्ष्मी है.
अब तक माधव का पुरा परिवार बाहर आ गया था, ओर सब हेरान हो कर मां लक्ष्मी को देख रहै थे,माधव बोला है मां हमे माफ़ कर हम ने तेरे से अंजाने मै ही घर ओर खेत मे काम करवाया, है मां यह केसा अपराध होगया, है मां हम सब को माफ़ कर दे|
अब मां लक्ष्मी मुस्कुराई ओर बोली है माधव तुम बहुत ही अच्छे ओर दयालु व्यक्त्ति हो, तुम ने मुझे अपनी बेती की तरह से रखा, अपने परिवार के सदस्या की तरह से, इस के बदले मै तुम्हे वरदान देती हुं कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियो की ओर धन की कमी नही रहै गी, तुम्हे सारे सुख मिलेगे जिस के तुम हक दार हो, ओर फ़िर मां अपने स्वामी के दुवारा भेजे रथ मे बेठ कर बेकुण्ठ चली गई
इस कहानी मै मां लक्ष्मी का संदेशा है कि जो लोग दयालु ओर साफ़ दिल के होते है मै वही निवास करती हुं, हमे सभी मानवओ की मदद करनी चाहिये, ओर गरीब से गरीब को भी तुच्छ नही समझना चाहिये।
शिक्षा….. इस कहानी मै लेखक यहि कहना चाहता है कि एक छोटी सी भुल पर भगवान ने मां लक्ष्मी को सजा देदी हम तो बहुत ही तुच्छ है, फ़िर भी भगवान हमे अपनी कृपा मे रखता है, हमे भी हर इन्सान के प्र्ति दयालुता दिखानि ओर बरतनि चाहिये, ओर यह दुख सुख हमारे ही कर्मो का फ़ल है | 
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                                                                                                                                                                                           Source:https://bit.ly/2SiBwpR

Wednesday, January 30, 2019

विष्णु भगवान की कहानी |




एक नगर में एक सेठ व सेठानी रहते थे और सेठानी रोज विष्णु भगवान की पूजा करती थी. सेठ को उसका पूजा करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. इसी वजह से एक दिन सेठ ने सेठानी को घर से निकाल दिया. घर से निकलने पर वह जंगल की ओर गई तो देखा चार आदमी मिट्टी खोदने का काम कर रहे थे. उसने कहा कि मुझे नौकरी पर रख लो. उन्होंने उसे रख लिया लेकिन मिट्टी खोदने से सेठानी के हाथों में छाले पड़ गए और उसके बाल भी उड़ गए. वह आदमी कहते हैं कि बहन लगता है तुम किसी अच्छे घर की महिला हो, तुम्हें काम करने की आदत नहीं है. तुम ये काम रहने दो और हमारे घर का काम कर दिया करो.
वह चारों आदमी उसे अपने साथ घर ले गए और वह चार मुट्ठी अनाज लाते और सभी बाँटकर खा लेते. एक दिन सेठानी ने कहा कि कल से आठ मुठ्ठी अनाज लाना. अगले दिन वह आठ मुठ्ठी अनाज लाए और सेठानी पड़ोसन से आग माँग लाई. उसने भोजन बनाया, विष्णु भगवान को भोग लगाया फिर सभी को खाने को दिया. सारे भाई बोले कि बहन आज तो भोजन बहुत स्वादिष्ट बना है. सेठानी ने कहा कि भगवान का जूठा है तो स्वाद तो होगा ही.
सेठानी के जाने के बाद सेठ भूखा रहने लगा और आस-पड़ोस के सारे लोग कहने लगे कि ये तो सेठानी के भाग्य से खाता था. एक दिन सेठ अपनी सेठानी को ढूंढने चल पड़ा. उसे ढूंढते हुए वह भी उस जंगल में पहुंच गया जहाँ वह चारों आदमी मिट्टी खोद रहे थे. सेठ ने उन्हें देखा तो कहा कि भाई मुझे भी काम पर रख लो. उन आदमियों ने उसे काम पर रख लिया लेकिन मिट्टी खोदने से उसके भी हाथों में छाले पड़ गए और बाल उड़ने लगे. उसकी यह हालत देख चारों बोले कि तुम्हे काम की आदत नहीं है, तुम हमारे साथ चलो और हमारे घर में रह लो.
सेठ उन चारों आदमियों के साथ उनके घर चला गया और जाते ही उसने सेठानी को पहचान लिया लेकिन सेठानी घूँघट में थी तो सेठ को देख नही पाई. सेठानी ने सभी के लिए भोजन तैयार किया और हर रोज की भाँति विष्णु भगवान को भोग लगाया. उसने उन चारों भाईयों को भोजन परोस दिया लेकिन जैसे ही वह सेठ को भोजन देने लगी तो विष्णु भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया. भाई बोले कि बहन ये तुम क्या कर रही हो़? वह बोली – मैं कुछ नहीं कर रही हूँ, मेरा हाथ तो विष्णु भगवान ने पकड़ लिया है. भाई बोले – हमें भी विष्णु भगवान के दर्शन कराओ? उसने भगवान से प्रार्थना की तो विष्णु जी प्रकट हो गए, सभी ने दर्शन किए.
सेठ ने सेठानी से क्षमा माँगी और सेठानी को साथ चलने को कहा. भाईयों ने अपनी बहन को बहुत सा धन देकर विदा किया. अब सेठानी के साथ सेठ भी भगवान विष्णु की पूजा करने लगा और उनके परिणाम से उनका घर अन्न-धन से भर गया.

इस कहानी को कहने के लिए संक्रांति से इसका आरंभ करना चाहिए और एक साल तक इसे कहना चाहिए. उसके बाद उद्यापन कर दे. विष्णु भगवान का पीला पीताम्बर, पाव भर गुड़, सवा पाँच रुपये और लक्ष्मी जी का श्रृंगार का सामान, साड़ी व दक्षिणा दें |

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                                                                                                                                                                                                            Source: https://bit.ly/2GerfUf

Wednesday, January 23, 2019

विष्णु पुराण की कुछ महत्वपूर्ण बातें ।


विष्णु पुराण
सदियों से भारतीय पुराणों और ग्रंथों में लिखी बातें व्यक्ति के जीवन को सफल और सुखमय बनाने में अपनी भूमिका निभाती आई हैं। प्राचीन ऋषियों और महाज्ञानियों ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा या लिखा जो अव्यवहारिक दिखता। आज हम आपको विष्णु पुराण में लिखी कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण जानकारियां देने वाले हैं जो वाकई जीवन को उत्तम बनाती हैं। विष्णु पुराण में कुछ ऐसे कार्यों का उल्लेख है जिन्हें कभी भी व्यक्ति को अधिक देर तक नहीं करना चाहिए।

ज्यादा देर तक नहीं करना चाहिए स्नान
स्वास्थ्य की दृष्टि से स्नान करना बहुत उपयोगी है, स्नान करने के लिए कई लाभ भी है लेकिन अगर यही स्नान ज्यादा समय तक के लिए किया जाता है तो फायदे की जगह नुकसान पहुंचाता है। ज्यादा समय तक स्नान करने से शरीर को कई बीमारियां, जैसे सर्दी, जुखाम या बुखार जकड़ लेती है। इसलिए स्नान करने का काम जल्दी से जल्दी कर लेना चाहिए।

सोना और जागना
ज्यादा समय तक सोना और ज्यादा देर तक जागना, दोनों ही कार्य व्यक्ति के लिए घातक साबित होते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार सोने का समय कम या ज्यादा होने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। व्यक्ति को हमेशा ब्रह्ममुहुर्त में उठ जाना चाहिए।

विष्णु पुराण के अनुसार निर्वस्त्र होकर न सोएं
यदि आप निर्वस्त्र होकर सोते हैं तो इससे आपको ही नुकसान होता है। क्योंकि रात में कीट-पतंगे घूमते रहते हैं। और वह कीट-पतंगे आपको काट सकते हैं। दूसरा यह भी माना जाता है कि रात के समय में आपके पूर्वज आपसे मिलने आते हैं और यदि निर्वस्त्र होकर सोएंगे तो वे आपसे मिलेंगे नहीं।

विष्णु पुराण के अनुसार संभोग
विष्णु पुराण के अनुसार ज्यादा लंबे समय तक शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। इससे शारीरिक दुर्बलता आने लगती है और शरीर कमजोर पड़ने लगता है।

विष्णु पुराण के अनुसार व्यायाम करना
शरीर के लिए व्यायाम करना बहुत जरूरी है। लेकिन ये व्यायाम कितना और कब तक किया जाना चाहिए, यह बात बहुत मायने रखती है। व्यायाम हमेशा उतना ही करना चाहिए जितना हमारा शरीर सहन कर सके।

विष्णु पुराण के अनुसार लाल रंग के कपड़े
विष्णु पुराण वह ग्रंथ है जिसमें जीवन को कैसे जिया जाए इसके बारे में बताया गया है। इसी पुराण में यह भी बताया गया है कि मनुष्य को किन चीजों को बेचना चाहिए और किन चीजों को नहीं बेचना चाहिए। इसी के अनुसार लाल रंग के कपड़ों को बेचने की मनाही है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति लाल रंग के कपड़े बेचता है तो वह पाप माना जाता है क्योंकि लाल रंग पूजा में शामिल होता है। और इस रंग के कपड़ों को दान में देना चाहिए।

विष्णु पुराण के अनुसार मांस बेचना
विष्णु पुराण में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मांस बेचता है तो वह अपराध माना जाता है। विष्णु पुराण में ही कहा गया है कि मांस बेचने वाले व्यक्ति को अगले जन्म किसी जानवर का जन्म मिलता है।

निर्वस्त्र होकर स्नान ना करें
विष्णु पुराण के अनुसार जो स्त्री-पुरुष निर्वस्त्र होकर स्नान करते हैं वे जल देवता का अपमान करते हैं। और इसे कृष्ण के जलकांड से भी जाना जाता है। एक बार गोपियों के पानी में स्नान करते हुए उन्होंने उनके वस्त्र हर लिए थे। वे गोपियां निर्वस्त्र थीं। इस वजह से कहा जाता है कि किसी को भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए।

रात में पेड़ों के नीचे सोने से बचें
हम यह जानते हैं कि पेड़ ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। यदि आप रात में पेड़ों के नीचे सोते हैं तो आपको सांस की समस्या हो सकती है। इसके अलावा अधिक मात्रा में कार्बनडाई ऑक्साइड लेने से दम घुटने लगता है।

सूनसान जगहों से बचें
विष्णु पुराण के अनुसार रात में ऐसी जगहों पर खड़े नहीं होना चाहिए जहां सूनापन हो। क्योंकि ऐसी जगहों का वातावरण नकारात्मक होता है। जिससे आपको समस्याएं हो सकती हैं।

गरीबों को सताना पाप
विष्णु पुराण में ऐसे कर्म को पाप माना गया है जिससे गरीबों को नुकसान हो। मसलन महंगाई के इस दौर में ऐसी वस्तुएं भी अधिक महंगी हो गई हैं जो किसी के जीवन के लिए अनिवार्य हैं। जैसे दूध, फल, अनाज आदि। गरीबों को अधिक महंगा पड़ता है। इस वजह से यह उन्हें सताना हुआ। और विष्णु पुराण में इसे पाप माना गया है।

विष्णु पुराण के अनुसार गाय का दूध
हम जानते हैं कि गाय एक ऐसा पशु है जिसे माता की संज्ञा दी गई है। विष्णु पुराण में गाय के दूध को बेचना भी पाप माना गया है।

अधार्मिक व्यक्ति से दूर रहे हैं
जिस व्यक्ति का चरित्र ठीक नहीं होता वह अधार्मिक होता है। इसलिए ऐसे अधार्मिक व्यक्ति से किसी सज्जन व्यक्ति को दूर रहना चाहिए। क्योंकि ऐसा खऱाब चरित्र वाला व्यक्ति कुछ गड़बड़ करता है तो उसमें आपको भी परेशान होना पड़ सकता है।

विष्णु पुराण के अनुसार नकारात्मक ऊर्जा से दूर रहे है

ऐसे स्थान जहां नकारात्मक वातावरण हो उस जगह पर मनुष्य को नहीं जाना चाहिए। खासकर श्मसान में रात के समय किसी भी व्यक्ति को नहीं जाना चाहिए। क्योंकि रात के समय श्मसान से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है

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                                                                                                                                                        Source:https://bit.ly/2Rbjr7x

Wednesday, January 2, 2019

भगवान विष्‍णु से जुड़ी ऐसी 5 ख़ास बातें ।

 
ऐसा माना गया है कि गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से गुरु ग्रह को शांत करने में मदद मिलती है. क्योंकि विष्णु जी सौरमंडल के गृह गुरु का प्रतिनिधित्व करते हैं. साथ ही पीला रंग विष्णु जी का अति प्रिय है. इस दिन पीले कपड़े पहनने चाहिए और पीली चीज़ों से ही इनकी पूजा की जानी चाहिए. जैसे केला, पीले फूल, बेसन के लड्डू या पीले मीठे चावल. यहां हम भगवान विष्णु जी से जुड़ी 5 बातें बता रहे हैं जिन्हें विष्णु जी के साधक को ज़रूर जानना चाहिए |

1. विष्णु जी के चार हाथ जीवन के इन चार चरणों को दर्शातें हैं पहला- ज्ञान की खोज, दूसरा- पारिवारिक जीवन, तीसरा- वन में वापसी और चौथा संन्यास.
2. उनके कानों के दो कुंडल दो विपरित चीज़ों के जोड़ को दर्शाते हैं. जैसे ज्ञान और अज्ञान, सुख और दुख आदि. 

3. उनके मुकुट पर लगा मोर पंख, उनके कृष्ण अवतार को दर्शाता है. ऐसा माना भी जाता है कि ये विष्णु जी ने कृष्ण भगवान से लिया है.
4. विष्णु जी की छाती पर बना श्रीवस्ता उनका लक्ष्मी जी के लिए प्रेम को दर्शाता है.

5. ऐसा माना जाता है कि विष्णु जी की नाग पर लेटे हुए रूप का अर्थ है कि मनुष्यों को सुख और खुशियों के साथ-साथ कई समस्याओं से भी उसी वक्त गुज़रना पड़ता है. यानि सुख के साथ दर्द भी. इसीलिए जीवन के इस सच को वो सांपों के ऊपर लेटकर मुस्कुराते हुए दर्शाते हैं |
                                                                                                                                 Source:https://bit.ly/2VqPe80

Tuesday, July 14, 2015

Shree guru dev datta

|| Shree Guru Dev Datta||

Shree Datta is considered as an Adiguru. He is Shree Vishnu, Paramatma, who has come down on earth to guide his devotees and lead them to moksha.

Note:To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.

(Photo Courtesy – google.com)


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Thursday, July 9, 2015

Lord Harihara



Lord Harihara is the name of a combined deity form of both Vishnu (Hari) and Shiva (Hara) from the Hindu tradition. Also known as Shankaranarayana 
Harihara is thus worshipped by both Vaishnavites and Shaivities as a form of the Supreme God.

Note:
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