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Thursday, March 14, 2019

भगवन श्री विष्णु का पौराणिक संदर्भ | Story of Lord Vishnu |




  • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान श्रीविष्णु ही परमार्थ तत्त्व हैं। वे ही ब्रह्मा और शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी हैं।
  • वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युतकृष्ण, शाश्वत, शिव, ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। नर अर्थात जीवों के समुदाय को नार कहते हैं।
  • कल्प के प्रारम्भ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अन्त में सबका संहार करते हैं। इसलिये भगवान श्रीविष्णु का नाम हरि है। मत्स्यकूर्मवराहवामनहयग्रीव तथा श्रीराम-कृष्ण आदि भगवान विष्णु के ही अवतार हैं।
  • भगवान श्रीविष्णु अत्यन्त दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करुणा-वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है।
  • जो भक्त भगवान श्रीविष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।
  • यद्यपि भगवान विष्णु के अनन्त गुण हैं, तथापि उनमें भक्त वत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं |
    • ध्रुव, प्रह्लादअजामिलद्रौपदी, गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ।
    • भक्त वत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करनें में यदि विलम्ब हो जाय तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिये क्षमा-याचना करते हैं। धन्य है उनकी भक्त वत्सलता।
    • मत्स्य, कूर्म, वराह, श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि अवतारों की कथाओं में भगवान श्रीविष्णु की भक्त वत्सलता के अनेक आख्यान आये हैं। ये जीवों के कल्याण के लिये अनेक रूप धारण करते हैं।
    • वेदों में इन्हीं भगवान श्रीविष्णु की अनन्त महिमा का गान किया गया है।
    • विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वर्णन मिलता है कि लवण समुद्र के मध्य में विष्णु लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है। उसमें भगवान श्रीविष्णु वर्षा ऋतु के चार मासों में लक्ष्मी द्वारा सेवित होकर शेषशय्या पर शयन करते हैं।
    • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड के 228वें अध्याय में भगवान विष्णु के निवास का वर्णन है।
    • वैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत अयोध्यापुरी में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहाँ उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्यभाग में अग्नि, सूर्य और चंद्रमा रहते हैं। कूर्म, नागराज तथा सम्पूर्ण वेद वहाँ पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्टदल कमल है; जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरुष भगवान श्रीविष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं।
    • भक्त वत्सल भगवान श्रीविष्णु की प्रसन्नता के लिये जप का प्रमुख मन्त्र- ॐ नमो नारायणाय तथा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय है।
    • भगवान श्रीविष्णु जी की पूजा के समय की जाने वाली आरती है।
    • भृगु द्वारा त्रिदेवपरीक्षा से देवताओं ने माना कि विष्णु ही सर्वश्रेष्ठ हैं।

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                                                                                                                                                                                                          Source:https://bit.ly/2VYCapG

Thursday, February 14, 2019

Shri Vishnu Puran | श्री विष्णु पुराण ।


श्री विष्णु-पुराण


प्राचीन काल में महर्षि मैत्रेय ने श्री पाराशर मुनि के आश्रम में जाकर उन्हें प्रणाम किया फिर स्वस्थ चित्त से सत्संग प्रारंभ हुआ। मैत्रेय ने कहा, हे महात्मन् ! मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं उन्हीं के उत्तर की अकांक्षा से मैं आपके दर्शन करने चला आया। आप अपने श्री मुख से अमृत वर्षा करके मुझे कृतार्थ करने की कृपा करें। इस संसार की उत्पत्ति कैसे हुई। पहले यह किसमें लीन था। प्रलय काल में किसमें लीन होगा। पंच महाभूत, भूमि, वन, पर्वत, देव, मानव तथा मन्वन्तर के विषयों पर आप प्रकाश डाल कर मेरी जिज्ञासा शान्त कीजिये।

तब प्रसन्न होकर महर्षि पाराशर बोले हे, महात्मन् ! यह प्रसंग मेरे पितामह वशिष्ठ जी तथा पुलस्त्य जी से मैंने सुना था। मैं आपकी जिज्ञासा यथासम्भव शान्त करूँगा। आप पूर्णमनोयोग से सुनें। प्राचीन काल में विश्वामित्र की प्रेरणा से मेरे पिता को एक राक्षस ने खा डाला था जिससे मेरा क्रोध बढ़ गया था। शोक एवं क्रोधावेश में आकर मैंने राक्षसों का विनाश करने के लिये एक यज्ञ अनुष्ठित किया। यज्ञाहुतियों के साथ सैकड़ों राक्षस जल कर भष्म होने लगे। तब मेरे दादा वशिष्ठ जी ने मुझसे समझाते हुए कहा हे वत्स ! क्रोध का त्याग करो। इन राक्षसों का क्या दोष ? तुम्हारे पिता के भाग्य का लेख ही ऐसा था। ज्ञानी को क्रोध शोभा नहीं देता। मारना जिलाना ईश्वर के आधीन है भले ही निमित्त कोई भी बन जाय। यज्ञ को यहीं विराम दो ! क्षमा साधु का भूषण होता है।

उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैंने यज्ञ बन्द कर दिया। मेरे दादा वशिष्ठ जी मुझ पर प्रसन्न हुए। उसी समय पुलस्त्य जी भी वहाँ आ गए। वशिष्ठ जी ने उनका अभिवादन करते हुए उन्हें अर्ध्य देकर आसन प्रदान किया। फिर बातों-बातों में मेरे विषय में भी बता दिया। तब पुलस्त्य जी ने प्रसन्न होकर मुझसे कहा कि तुमने अपने पितामह की आज्ञा मानकर क्षमा का आश्रय लिया। मैं प्रसन्न होकर तुम्हें आशीर्वाद दे रहा हूँ कि सम्पूर्ण सास्त्रों का ज्ञान तुम्हें सहज ही हो जाएगा और तुम पुराण संहिता की रचना करोगे तथा तुम्हें ईश्वर के यथार्थ रूप का ज्ञान हो जायेगा। पूर्वर्ती काल में उन दोनों ऋषियों के वर के प्रभाव से मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया। यह संसार विष्णु के द्वारा उत्पन्न किया गया वही इसके पालक हैं तथा प्रलय में यह उन्हीं में लय हो जाता है।

सृष्टि का उद्भव


महर्षि पाराशार ने कहा हे मुनीश्वर ! ब्रह्मा रूप में सृष्टि विष्णु रूप में पालन तथा रुद्र रूप में संहार करने वाले भगवान विष्णु को नमन करता हूँ। एक रूप होते हुए भी अनेक रूपधारी, अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त रूप वाले, घट घट वासी अविनाशी पुरुषोत्तम को नमस्कार करते हुए मैं आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के विषय में कहने जा रहा हूँ।

भगवान नारायण त्रिगुण प्रधान तथा विष्ण के मूल है। वह अनादि हैं। उत्पत्ति लय से रहित हैं। वह सर्वत्र तथा सबमें व्याप्त हैं। प्रलय काल में दिन था न रात्रि, न पृथ्वी न आकाश, न प्रकाश और न अन्धकार ही था। केवल ब्रह्म पुरुष ही था। विष्णु के निरूपाधि रूप से दो रूप हुए। पहला प्रधान और दूसरा पुरुष। विष्णु के जिस अन्य रूप द्वारा वह दोनों सृष्टि तथा प्रलय में संयुक्त अथवा वियुक्त होते हैं उस रूपान्तर को ही काल कहा जाता है। बीत चुके प्रलय काल में इस व्यक्त प्रपंच की स्थित प्रकृति में ही थी।

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Wednesday, January 30, 2019

विष्णु भगवान की कहानी |




एक नगर में एक सेठ व सेठानी रहते थे और सेठानी रोज विष्णु भगवान की पूजा करती थी. सेठ को उसका पूजा करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. इसी वजह से एक दिन सेठ ने सेठानी को घर से निकाल दिया. घर से निकलने पर वह जंगल की ओर गई तो देखा चार आदमी मिट्टी खोदने का काम कर रहे थे. उसने कहा कि मुझे नौकरी पर रख लो. उन्होंने उसे रख लिया लेकिन मिट्टी खोदने से सेठानी के हाथों में छाले पड़ गए और उसके बाल भी उड़ गए. वह आदमी कहते हैं कि बहन लगता है तुम किसी अच्छे घर की महिला हो, तुम्हें काम करने की आदत नहीं है. तुम ये काम रहने दो और हमारे घर का काम कर दिया करो.
वह चारों आदमी उसे अपने साथ घर ले गए और वह चार मुट्ठी अनाज लाते और सभी बाँटकर खा लेते. एक दिन सेठानी ने कहा कि कल से आठ मुठ्ठी अनाज लाना. अगले दिन वह आठ मुठ्ठी अनाज लाए और सेठानी पड़ोसन से आग माँग लाई. उसने भोजन बनाया, विष्णु भगवान को भोग लगाया फिर सभी को खाने को दिया. सारे भाई बोले कि बहन आज तो भोजन बहुत स्वादिष्ट बना है. सेठानी ने कहा कि भगवान का जूठा है तो स्वाद तो होगा ही.
सेठानी के जाने के बाद सेठ भूखा रहने लगा और आस-पड़ोस के सारे लोग कहने लगे कि ये तो सेठानी के भाग्य से खाता था. एक दिन सेठ अपनी सेठानी को ढूंढने चल पड़ा. उसे ढूंढते हुए वह भी उस जंगल में पहुंच गया जहाँ वह चारों आदमी मिट्टी खोद रहे थे. सेठ ने उन्हें देखा तो कहा कि भाई मुझे भी काम पर रख लो. उन आदमियों ने उसे काम पर रख लिया लेकिन मिट्टी खोदने से उसके भी हाथों में छाले पड़ गए और बाल उड़ने लगे. उसकी यह हालत देख चारों बोले कि तुम्हे काम की आदत नहीं है, तुम हमारे साथ चलो और हमारे घर में रह लो.
सेठ उन चारों आदमियों के साथ उनके घर चला गया और जाते ही उसने सेठानी को पहचान लिया लेकिन सेठानी घूँघट में थी तो सेठ को देख नही पाई. सेठानी ने सभी के लिए भोजन तैयार किया और हर रोज की भाँति विष्णु भगवान को भोग लगाया. उसने उन चारों भाईयों को भोजन परोस दिया लेकिन जैसे ही वह सेठ को भोजन देने लगी तो विष्णु भगवान ने उसका हाथ पकड़ लिया. भाई बोले कि बहन ये तुम क्या कर रही हो़? वह बोली – मैं कुछ नहीं कर रही हूँ, मेरा हाथ तो विष्णु भगवान ने पकड़ लिया है. भाई बोले – हमें भी विष्णु भगवान के दर्शन कराओ? उसने भगवान से प्रार्थना की तो विष्णु जी प्रकट हो गए, सभी ने दर्शन किए.
सेठ ने सेठानी से क्षमा माँगी और सेठानी को साथ चलने को कहा. भाईयों ने अपनी बहन को बहुत सा धन देकर विदा किया. अब सेठानी के साथ सेठ भी भगवान विष्णु की पूजा करने लगा और उनके परिणाम से उनका घर अन्न-धन से भर गया.

इस कहानी को कहने के लिए संक्रांति से इसका आरंभ करना चाहिए और एक साल तक इसे कहना चाहिए. उसके बाद उद्यापन कर दे. विष्णु भगवान का पीला पीताम्बर, पाव भर गुड़, सवा पाँच रुपये और लक्ष्मी जी का श्रृंगार का सामान, साड़ी व दक्षिणा दें |

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                                                                                                                                                                                                            Source: https://bit.ly/2GerfUf

Wednesday, July 1, 2015

Lord Vishnu - Mantra


ll ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम: ll
Power of this Mantra‬ – Chanting Vishnu Mantra clears your heart of negative emotions and helps atone for past karma‬. It wards off evil and blesses you with prosperity‬wealth‬wisdom‬ and success‬ in all aspects of life‬.
Note:
To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.
(Photo Courtesy – google.com)
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