Friday, March 1, 2019

शनिदेव की पौराणिक कथा |


जनसामान्य में फैली मान्यता के अनुसार नवग्रह परिवार में सूर्य राजा व शनिदेव भृत्य हैं लेकिन महर्षि कश्यप ने शनि स्तोत्र के एक मंत्र में सूर्य पुत्र शनिदेव को महाबली और ग्रहों का राजा कहा है- ‘सौरिग्रहराजो महाबलः।’

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शनिदेव ने शिव भगवान की भक्ति व तपस्या से नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है।

एक समय सूर्यदेव जब गर्भाधान के लिए अपनी पत्नी छाया के समीप गए तो छाया ने सूर्य के प्रचंड तेज से भयभीत होकर अपनी आंखें बंद कर ली थीं। कालांतर में छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के श्याम वर्ण (काले रंग) को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर यह आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नहीं है तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुता रखते हैं।

शनिदेव ने अनेक वर्षों तक भूखे-प्यासे रहकर शिव आराधना की तथा घोर तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया था, तब शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने शनिदेव से वरदान मांगने को कहा। शनिदेव ने प्रार्थना की- युगों-युगों से मेरी मां छाया की पराजय होती रही है, उसे मेरे पिता सूर्य द्वारा बहुत अपमानित व प्रताड़ित किया गया है इसलिए मेरी माता की इच्छा है कि मैं (शनिदेव) अपने पिता से भी ज्यादा शक्तिशाली व पूज्य बनूं।

तब भगवान शिवजी ने उन्हें वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ रहेगा। तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या- देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर और नाग भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे। ग्रंथों के अनुसार शनिदेव कश्यप गोत्रीय हैं तथा सौराष्ट्र उनका जन्मस्थल माना जाता है।

For medical and educational help, we are a helping hand. For more info, visit us at www.radhemaa.com

                                                                                                                                                                                       Source:https://bit.ly/2VvE7ts

No comments: