महाभारत कथाएँ
व्यक्ति के कर्मो पर किसी का वश नहीं होता | व्यक्ति को केवल सही या गलत मार्गदर्शन दिया जा सकता है |
उसे अपने जीवन मार्गो के विकल्प दिए जा सकते है और सत्य तो यह है कि ईश्वर भी कभी किसी प्राणी के कर्मो और उसकी नियति में हस्तक्षेप नहीं करते ||
हम में से बहुतो के लिए अभिमन्यु प्रेरणा है , इस योद्धा ने अकेले एक पुरे दिन उन योद्धाओ को रोक कर रखा जो अकेले कई सेनाओ के बराबर थे , किन्तु साथ में हम यह भी सोचते है अभिमन्यु जैसा वीर उस दिन वीरगति को प्राप्त न हुआ होता||
बहुतो के मन में यह प्रश्न भी उठता है की यदि वासुदेव कृष्ण चाहते तो अभिमन्यु को बचा सकते थे क्यों की वे
ईश्वर थे , त्रिकालदर्शी थे किन्तु उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया और फिर भी हम श्री कृष्ण के हस्तक्षेप न करने के कारण को महाभारत की इस छोटी से कथा से जानने का प्रयत्न कर सकते है -
हम जानते है की धर्म की रक्षा के लिए भगवान् विष्णु अवतार लेते है तथा उनकी सहायता के लिए दूसरे देवतागण भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लेते है | द्धापर युग में जब भगवान् विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया तब ब्रह्मा के आदेश से देवताओ ने भी जन्म लिया ताकि धर्म स्थापना में श्री कृष्ण के सहायक हो सके ||
अभिमन्यु के रूप में चन्द्रमा के पुत्र वर्चा ने जन्म लिया था | वर्चा को भेजते समय चन्द्रमा ने देवताओ से कहा "मै अपने प्राणप्यारे पुत्र को नहीं भेजना चाहता" फिर भी इस काम से पीछे हटना उचित नहीं जान पड़ता |इसलिए वर्चा मनुष्य बनेगा तो सही , परन्तु वहाँ अधिक दिनों तक नहीं रहेगा | इंद्र के अंश नरावतार होगा जो |
श्री कृष्ण से मित्रता करेगा | मेरा पुत्र अर्जुन का ही पुत्र होगा | नर-नारायण की अनुपस्थिति में मेरा पुत्र चक्रव्यूह का भेदन करेगा और घमासान युद्ध करके बड़े-बड़े महारथियों को चकित कर देगा | दिन भर युद्ध करने के बाद सायंकाल में मुझसे आ मिलेगा | इसी कारण अभिमन्यु दिनभर युद्ध करने के उपरांत कौरवो के हाथो चक्रव्यूह के भीतर मारे गए ||
यही कारण था कि भगवान् कृष्ण ने अभिमन्यु की नियति में हस्तक्षेप नहीं किया ||
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Source:https://bit.ly/2HnE2WS
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