|| ज्ञान की चाँदनी फैलाती है बुद्ध पूर्णिमा ||
भिक्षाम् देहि' की पुकार सुनकर जैसे ही यशोधरा द्वार पर आईं , तो देखती हैं कि सामने बुद्ध खड़े हैं-कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ और वह भी हाथ में भिक्षा का पात्र लिए हुए।उस समय पत्नी यशोधरा पति सिद्धार्थ से बुद्ध बने इस भिक्षुक से एक बहुत ही प्रखर एवं शाश्वत महत्व का प्रश्न पूछती हैं।वे पूछती हैं- 'आर्य जो ज्ञान आपको वन में जाने से प्राप्त हुआ, क्या वही ज्ञान यहां प्राप्त नहीं हो सकता था ?'बुद्ध ने तत्काल उत्तर दिया, 'हो सकता था।' यशोधरा के लिए यह उत्तर चौंकाने के साथ ही अत्यतं व्यतिथ करने वाला भी था। ' तो फिर यहां से क्यों गए स्वामी ?' यह यशोधरा का अगला प्रश्न था।इसके उत्तर में बुद्ध ने जो कहा , वह बहुत ही महत्वपूर्ण है।बुद्ध ने कहा , 'वह यहां भी प्राप्त हो सकता था , इस तथ्य का ज्ञान मुझे वहीं जाकर प्राप्त हो सका।'
गौतम बुद्ध के जीवन का अत्यतं ही भावप्रवण यह प्रसंग हमारी चेतना और आचरण का हिस्सा होना चाहिए ।दुख ही अशांति का कारण है।यह जानने के लिए वे भटके थे कि इन दुखों से छुटकारा कैसे पाया जा सके।जैसे ही उन्होंने जाना , वे सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए।
जिस प्रकार हर तार में संगीत निहित होता है,हर पत्थर में प्रतिमा मौजूद रहती है।जरूरत ऐसे हाथों की होती है जो छिपे इस स्वरूप साकार कर सके।
बात सीधी सी है कि कर्म में ही शांति है और उसे उदात्त चेतना के साथ करना ही आध्यात्मिक जीवन जीने का उपक्रम है।यदि आपको काम में रस आ रहा है , आनंद मिल रहा है, तो निश्चित रूप से वहां शांति भी मिलेगी।
गौतम बुद्ध के संदेश "अप्प दीपो भव।" अर्थात ' हम सभी अपना दीपक स्वयं बनें ' को अपने जीवन में अमल करते हुए जीवन को सार्थक करें।
बुद्ध पूर्णिमा ज्ञान की चांदनी फैलाकर मानवता में शांति और समृद्धि का संचार कर रही है।जरूरत है हम खुले मन से बांहें फैला कर उसे अंगीकार करें।
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