Showing posts with label Bajrang bali. Show all posts
Showing posts with label Bajrang bali. Show all posts

Saturday, February 23, 2019

भगवान हनुमान की कहानी | (Hanuman Story in Hindi)


हनुमान के जन्म की कहानी  Hanuman Ji Birth Story in Hindi

राम को अपना देवता मानते हुए भगवान शिव ने घोषित किया और शिव ने उनकी सेवा करने के लिए पृथ्वी पर अवतार की इच्छा जाहिर की। जब सती ने इसका विरोध प्रदर्शन किया और कहा कि वह उन्हें स्मरण करेंगी तो शिव ने केवल खुद का एक हिस्सा पृथ्वी पर भेजने का वादा किया और इसलिए कैलाश पर उनके साथ रहे।
वे सोच रहे थे कि क्या करना चाहिए, इस समस्या पर चर्चा करने लगे; यदि वह मनुष्य के आकार को लेते है, तो वह सेवा के धर्म का उल्लंघन करेगें, क्योंकि नौकर मालिक से बड़ा नहीं होना चाहिए। शिव ने आखिरकार एक बंदर का रूप धारण करने का निर्णय लिया, क्योंकि यह विनम्र होता है, इसकी जरूरतें और जीवनशैली सरल होती है: कोई आश्रय नहीं, कोई पका हुआ भोजन नहीं, और जाति और जीवन स्तर के नियमों का कोई पालन नहीं होती है। इससे सेवा के लिए अधिकतम दायरे की अनुमति होगी।

भगवान श्री राम ने शरीर त्यागने के लिए हनुमान का मन विचलित किया Lord Rama’s death and Hanuman Story in Hindi

मृत्यु के देवता यम, हनुमान से डरते थे, हनुमान जी राम के महल के दरवाजे की रक्षा करते थे और स्पष्ट था कि कोई भी राम को उनसे दूर नहीं ले जा सकता है। यम को प्रवेश करवाने के लिए हनुमान का मन भटकाना ज़रूरी था।
तो राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श में एक दरार में गिरा दिया और अनुरोध किया कि हनुमान इसे लाने के लिए जाएँ, बाद में, हनुमान को एहसास हो गया कि नाग-लोक में प्रवेश और अंगूठी के साथ यह समय कोई दुर्घटना नहीं थी। यह राम के यह कहने का तरीका था कि वह आने वाली मृत्यु को नहीं रोक सकते थे। राम मर जाएगे, दुनिया मर जाएगी।
For medical and educational help, we are a helping hand. For more info, visit us at www.radhemaa.com

Friday, February 1, 2019

जानिये भगवान हनुमान के जन्‍म का रहस्‍य |


भगवान हनुमान के जन्‍म की कथा, माता अंजना से जुड़ी हुई है। भगवान हनुमान माता अंजना और केसरी नन्‍दन के पुत्र थे, जो अंजनागिरि पर्वत के थे। पहले अंजना, भगवान ब्रह्मा के कोर्ट में एक अप्‍सरा थी, उसे एक ऋषि ने शाप देकर बंदरिया बना दिया। अपने बचपन में अंजना ने एक बंदर को पैरों पर खड़े होकर ध्‍यान लगाते देखा, तो उसने उस बंदर को फल फेंक कर मार दिया। वह बंदर एक ऋषि में बदल गया और उसकी तपस्‍या भंग होने पर वह क्रोधित हो गया। उसने अंजना को शाप दिया कि जिस दिन उसे किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी।

अंजना ने बहुत माफी मांगी और ऋषि से उसे क्षमा करने को कहा। पर ऋषि ने एक नहीं सुनी और अंजना को शाप देकर कहा कि वह प्रेम में पड़ने के बाद बंदरिया बन जाएगी लेकिन उसका पुत्र भगवान शिव का रूप होगा।

कुछ समय बाद, अंजना जंगलों में रहने लगी। वहां उसकी भेंट केसरी से हुई, जिससे प्रेम होने पर वह बंदरिया बन गई और केसरी ने अपना परिचय देते हुए अंजना को बताया कि वह बंदरों का राजा है। अंजना ने गौर से देखा तो पाया कि केसरी के पास ऐसा मुख था जिसे वह मानव से बंदर या बंदर से मानव कर सकता था। केसरी की ओर से प्रस्‍ताव रखने पर अंजना मान गई और दोनों का विवाह हो गया। अंजना ने घोर तपस्‍या की और भगवान शिव से उनके समान एक पुत्र मांगा। भगवान ने तथास्‍तु कहा।

वहीं दूसरी ओर, अयोध्‍या के राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रकामेस्‍थी यज्ञ आयोजित किया। अग्नि देव को प्रसन्‍न करने के बाद उन्‍होने दैवीय गुणों वाले पुत्रों की कामना की। अग्निदेवता ने प्रसन्‍न होकर दशरथ को एक पवित्र हलवा दिया, जिसे तीनों पत्नियों में बांटने को कहा। राजा ने बड़ी रानी तक हलवे को पंतग से पहुंचाया, वहीं बीच में कहीं माता अंजना प्रार्थना कर रही थी, हवन की कटोरी में वह हलुवा जा गिरा, माता अंजना ने उस हलवे को ग्रहण कर लिया। उसे खाने के बाद उन्‍हे लगा जैसे गर्भ में भगवान शिव का वास हो गया हो।

इसके पश्‍चात उन्‍होने हनुमान जी को जन्‍म दिया। भगवान हनुमान को वायुपुत्र इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि हवा चलने के कारण ही वह हलुवा, माता अंजनी की कटोरी में आकर गिरा था। भगवान हनुमान के जन्‍म लेते ही माता अंजना अपने शाप से मुक्‍त होकर वापस स्‍वर्ग चली गई। भगवान हनुमान सात चिरंजीवियों में से एक हैं और भगवान श्रीराम के भक्‍त थे। रामायण की गाथा में उनका स्‍थान हम सभी को पता है।

For medical and educational help, we are a helping hand.. for more info, visit us at www.radhemaa.com

Thursday, January 24, 2019

हनुमान पौराणिक कथा ।


श्रीरामचरित मानस लिखने के दौरान तुलसीदासजी ने लिखा- सिय राम मय सब जग जानी;
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी!

अर्थात 'सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।'

यह लिखने के उपरांत तुलसीदासजी जब अपने गांव की तरफ जा रहे थे तो किसी बच्चे ने आवाज दी- 'महात्माजी, उधर से मत जाओ। बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है।'

तुलसीदासजी ने विचार किया कि हूं, कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है। अभी तो लिखा था कि सब में राम हैं। मैं उस बैल को प्रणाम करूंगा और चला जाऊंगा।
पर जैसे ही वे आगे बढ़े, बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े। किसी तरह से वे वापस वहां जा पहुंचे, जहां श्रीरामचरित मानस लिख रहे थे। सीधे चौपाई पकड़ी और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि श्री हनुमानजी ने प्रकट होकर कहा- तुलसीदासजी, ये क्या कर रहे हो?

तुलसीदासजी ने क्रोधपूर्वक कहा, यह चौपाई गलत है और उन्होंने सारा वृत्तांत कह सुनाया।

हनुमानजी ने मुस्कराकर कहा- चौपाई तो एकदम सही है। आपने बैल में तो भगवान को देखा, पर बच्चे में क्यों नहीं? आखिर उसमें भी तो भगवान थे। वे तो आपको रोक रहे थे, पर आप ही नहीं माने।
तुलसीदास जी को एक बार और चित्रकूट पर श्रीराम ने दर्शन दिए थे तब तोता बन कर हनुमान जी ने दोहा पढ़ा था:

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसी दास चंदन घीसे तिलक करें रघुबीर।

For medical & Educational Help, we are a helping hand. For more info visit our website on www.radhemaa.com

                                                                                                                                                                                       Source:https://bit.ly/2R8Y4nq

Friday, January 11, 2019

कैसे बाल मारुती का नाम हनुमान रख दिया गया |

                                 जानिये कैसे बाल मारुती का नाम हनुमान रख दिया गया |


दोस्तों श्री हनुमान जी की माता अंजनी और केसरी के पुत्र थे। कथा के अनुसार, अंजनी और केसरी को विवाह के बहुत समय बाद तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। तब दोनों पति-पत्नी ने मिलकर पवन देव की तपस्या की थी। पवन देव जी के आशीर्वाद से श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी बचपन से ही बहुत अधिक ताकतवर नटखट और विशाल शरीर वाले थे। हनुमान जी के बचपन का नाम मारुती था। एक बार मारुती  ने सूर्य देवता को फल समझकर उन्हें खाने के लिए सूर्यदेव के आगे बढ़े,और उनके पास पहुंचकर सूर्यदेव को निगलने के लिए अपना मुंह बड़ा कर लिया। इंद्रदेव ने मारुती को ऐसा करते देखा तो इंद्रदेव ने मारुती पर अपने बज्र से प्रहार कर दिया। इंद्र देव का बज्र मारुती की हनु यानी कि ठोड़ी पर लगी। इंद्र देव का बज्र नन्हे मारुती  को लगते ही मारुती  बेहोश हो गए। यह देख उनके पालक पिता पवनदेव को बहुत ही गुस्सा आ गया। पवन देव अपने पुत्र मारुती  की हालत देखकर इतने गुस्से में आ गए कि उन्होंने सारे संसार में पवन का बहना रोक दिया। प्राण वायु के बिना सारे पृथ्वी लोक के वासी त्राहि-त्राहि करने लगे। यह सब देख कर इंद्रदेव ने पवनदेव को तुरंत मनाया। और मारुती  को पहले जैसा कर दिया।  सभी देवताओं ने नन्हे मारुती  को बहुत सारी शक्तियां प्रदान की। सूर्य देव के तेज अंश प्रदान करने के कारण ही श्री हनुमान जी का बुद्धि संपन्न हुआ। इंद्रदेव का बज्र मारुती  के हनु पर लगा था जिसके कारण ही नन्हे मारुती  का नाम हनुमान  हुआ।

For any medical and Educational Help, we are a helping hand. For more info, visit our website on www.radhemaa.com

                                                                                                                             Source:https://bit.ly/2FtRSEc

Friday, June 22, 2018

जानिए बजरंग-बली को क्यों कहते हैं हनुमान?

हनुमान जी शक्ति और बुद्धी के देवता कहे जाते हैं, किसी भी मुसीबत में लोग उन्हीं को याद करते हैं। भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। बाल्मिकी की रामायण के अनुसार इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। ऐसा अनुमान है कि हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़े में हुआ था।इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं| वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


कुछ पौराणिक कथाओं में हुनमान जी को वानर का वंशज कहा गया है जिसके कारण ही विराट नगर (राजस्थान) के वज्रांग मन्दिर में उनके वानर रूप की पूजा की जाती है।परन्तु गोभक्त महात्मा रामचन्द्र वीर ने एक ऐसा मंदिर बनावाया जिसमें हनुमान जी की बिना बन्दर वाले मुख की मूर्ति स्थापित की है। रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी जाति वानर बताई है, शरीर नहीं।वीर के हिसाब से हुनुमान जी ने लंका-दहन करने के लिए वानर रूप धरा था।

ठुड्डी यानी हनु टूट गई

हनुमान जी को गुस्सा नहीं आता है इसलिए जो लोग बहुत ज्यादा गुस्सा करते हैं उन्हें हनुमान जी की उपासना करने को कहा जाता है। पुराणों के  मुताबिक सूर्य को फल समझकर जब हनुमान जी खाने जा रहे थे तो इंद्र ने उन पर वज्र से पहाड़ किया जिसके कारण उनकी ठुड्डी यानी हनु टूट गई इस कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाता है। कुछ पुराणों में उल्लेख है कि भगवान हुनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी नहीं थे, उनकी पत्नी का नाम सुवरचला (Suvarchala) था जो कि सूर्य की पुत्री थी, क्योंकि सुवरचला ने योनी से जन्म नहीं लिया था इसलिए उनके स्वरूप का वर्णन कहीं नहीं मिलता।

वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष

रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेउ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पुँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।

Source :- https://bit.ly/2IiX1g8

Monday, January 29, 2018

द्रोणागिरी – यहां वर्जित है हनुमान जी की पूजा

हम सब जानते है हनुमान जी हिन्दुओं के प्रमुख आराध्य देवों में से एक है, और सम्पूर्ण भारत में इनकी पूजा की जाती है।  लेकिन बहुत काम लोग जानते है की हमारे भारत में ही एक जगह ऐसी है जहां हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है।  ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ के रहवासी हनुमान जी द्वारा किए गए एक काम से आज तक नाराज़ हैं। यह जगह है उत्तराखंड स्तिथ द्रोणागिरि गांव।


द्रोणागिरि गांव –
द्रोणागिरि गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ प्रखण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर है। यह गांव लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां के लोगों का मानना है कि हनुमानजी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गए थे, वह यहीं स्थित था। चूंकि द्रोणागिरि के लोग उस पर्वत की पूजा करते थे, इसलिए वे हनुमानजी द्वारा पर्वत उठा ले जाने से नाराज हो गए। यही कारण है कि आज भी यहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती। यहां तक कि इस गांव में लाल रंग का झंडा लगाने पर पाबंदी है।

द्रोणागिरि गांव के निवासियों के अनुसार –
द्रोणागिरि गांव के निवासियों के अनुसार जब हनुमान बूटी लेने के लिये इस गांव में पहुंचे तो वे भ्रम में पड़ गए। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी बूटी हो सकती है। तब गांव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उन्होंने पूछा कि संजीवनी बूटी किस पर्वत पर होगी? वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया। हनुमान उड़कर पर्वत पर गये पर बूटी कहां होगी यह पता न कर सके। वे फिर गांव में उतरे और वृद्धा से बूटीवाली जगह पूछने लगे। जब वृद्धा ने बूटीवाला पर्वत दिखाया तो हनुमान ने उस पर्वत के काफी बड़े हिस्से को तोड़ा और पर्वत को लेकर उड़ते बने। बताते हैं कि जिस वृद्धा ने हनुमान की मदद की थी उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। आज भी इस गांव के आराध्य देव पर्वत की विशेष पूजा पर लोग महिलाओं के हाथ का दिया नहीं खाते हैं और न ही महिलायें इस पूजा में मुखर होकर भाग लेती हैं।

इस घटना से जुड़ा प्रसंग –
यूँ तो राम के जीवन पर अनेकों रामायण लिखी गई है पर इनमे से दो प्रमुख है एक तो वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और एक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस। इनमे से जहाँ वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है वही तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस सबसे अधिक पढ़ा जाता है। पर जैसा की हमने हमारे एक पिछले लेख में आप सब को बताया था की रामायण और रामचरितमानस में कई घटनाओं में, कई प्रसंगो में अंतर है। ऐसा ही कुछ अंतर दोनों किताबों में इस प्रसंग के संबंध में भी है।  यहाँ हम आपको दोनों किताबो में वर्णित प्रसंग के बारे में बता रहे है।

वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार - 
हनुमानजी द्वारा पर्वत उठाकर ले जाने का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाकर श्रीराम व लक्ष्मण सहित समूची वानर सेना को घायल कर दिया। अत्यधिक घायल होने के कारण जब श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए तो मेघनाद प्रसन्न होकर वहां से चला गया। उस ब्रह्मास्त्र ने दिन के चार भाग व्यतीत होते-होते 67 करोड़ वानरों को घायल कर दिया था।

हनुमानजी, विभीषण आदि कुछ अन्य वीर ही उस ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से बच पाए थे। जब हनुमानजी घायल जांबवान के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा – इस समय केवल तुम ही श्रीराम-लक्ष्मण और वानर सेना की रक्षा कर सकते हो। तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत पर जाओ और वहां से औषधियां लेकर आओ,  जिससे कि श्रीराम-लक्ष्मण व वानर सेना पुन: स्वस्थ हो जाएं।

जांबवान ने हनुमानजी से कहा कि- हिमालय पहुंचकर तुम्हें ऋषभ तथा कैलाश पर्वत दिखाई देंगे। उन दोनों के बीच में औषधियों का एक पर्वत है, जो बहुत चमकीला है। वहां तुम्हें चार औषधियां दिखाई देंगी, जिससे सभी दिशाएं प्रकाशित रहती हैं। उनके नाम मृतसंजीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी और संधानी है।

हनुमान तुम तुरंत उन औषधियों को लेकर आओ, जिससे कि श्रीराम-लक्ष्मण व वानर सेना पुन: स्वस्थ हो जाएं। जांबवान की बात सुनकर हनुमानजी तुरंत आकाश मार्ग से औषधियां लेने उड़ चले। कुछ ही समय में हनुमानजी हिमालय पर्वत पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने हनुमानजी ने अनेक महान ऋषियों के आश्रम देखे।

हिमालय पहुंचकर हनुमानजी ने कैलाश तथा ऋषभ पर्वत के दर्शन भी किए। इसके बाद उनकी दृष्टि उस पर्वत पर पड़ी, जिस पर अनेक औषधियां चमक रही थीं। हनुमानजी उस पर्वत पर चढ़ गए और औषधियों की खोज करने लगे। उस पर्वत पर निवास करने वाली संपूर्ण महाऔषधियां यह जानकर कि कोई हमें लेने आया है, तत्काल अदृश्य हो गईं। यह देखकर हनुमानजी बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने वह पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया, जिस पर औषधियां थीं।

कुछ ही समय में हनुमान उस स्थान पर पहुंच गए, जहां श्रीराम-लक्ष्मण व वानर सेना बेहोश थी। हनुमानजी को देखकर श्रीराम की सेना में पुन: उत्साह का संचार हो गया। इसके बाद उन औषधियों की सुगंध से श्रीराम-लक्ष्मण व घायल वानर सेना पुन: स्वस्थ हो गई। उनके शरीर से बाण निकल गए और घाव भी भर गए। इसके बाद हनुमानजी उस पर्वत को पुन: वहीं रख आए, जहां से लेकर आए थे।

लेकिन रामचरितमानस में कुछ अन्य प्रसंग है। तुलसीदास रचित रामचरितमानस के अनुसार
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा चरित श्रीरामचरितमानस के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद व लक्ष्मण के बीच जब भयंकर युद्ध हो रहा था, उस समय मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाकर लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। हनुमानजी उसी अवस्था में लक्ष्मण को लेकर श्रीराम के पास आए। लक्ष्मण को इस अवस्था में देखकर श्रीराम बहुत दु:खी हुए।

तब जांबवान ने हनुमानजी से कहा कि लंका में सुषेण वैद्य रहता है, तुम उसे यहां ले आओ। हनुमानजी ने ऐसा ही किया। सुषेण वैद्य ने हनुमानजी को उस पर्वत और औषधि का नाम बताया और हनुमानजी से उसे लाने के लिए कहा, जिससे कि लक्ष्मण पुन: स्वस्थ हो जाएं। हनुमानजी तुरंत उस औषधि को लाने चल पड़े। जब रावण को यह बात पता चली तो उसने हनुमानजी को रोकने के लिए कालनेमि दैत्य को भेजा।

कालनेमि दैत्य ने रूप बदलकर हनुमानजी को रोकने का प्रयास किया, लेकिन हनुमानजी उसे पहचान गए और उसका वध कर दिया। इसके बाद हनुमानजी तुरंत औषधि वाले पर्वत पर पहुंच गए, लेकिन औषधि पहचान न पाने के कारण उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और आकाश मार्ग से उड़ चले। अयोध्या के ऊपर से गुजरते समय भरत को लगा कि कोई राक्षस पहाड़ उठा कर ले जा रहा है। यह सोचकर उन्होंने हनुमानजी पर बाण चला दिया।

हनुमानजी श्रीराम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे। हनुमानजी के मुख से पूरी बात जानकर भरत को बहुत दु:ख हुआ। इसके बाद हनुमानजी पुन: श्रीराम के पास आने के लिए उड़ चले। कुछ ही देर में हनुमान श्रीराम के पास आ गए। उन्हें देखते ही वानरों में हर्ष छा गया। सुषेण वैद्य ने औषधि पहचान कर तुरंत लक्ष्मण का उपचार किया, जिससे वे पुन: स्वस्थ हो गए।

श्रीलंका में स्थित है संजीवनी बूटी वाला पर्वत :- 

जहां वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार हनुमान जी पर्वत को पुनः यथास्थान रख आए थे वही तुलसीदास रचित रामचरितमानस के अनुसार हनुमान जी पर्वत को वापस नहीं रख कर आए थे, उन्होंने उस पर्वत को वही लंका में ही छोड़ दिया था। श्रीलंका के सुदूर इलाके में श्रीपद नाम का एक पहाड़ है। मान्यता है कि यह वही पर्वत है, जिसे हनुमानजी संजीवनी बूटी के लिए उठाकर लंका ले गए थे। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहते हैं। यह पर्वत लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। श्रीलंकाई लोग इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पहाड़ पर एक मंदिर भी बना है।

Thursday, July 23, 2015

Hanuman - The Worshipper of Lord Rama


Lord Hanuman‬ writing ‪‎Ram‬ on stone before the bridge construction

Note:

To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.

(Photo Courtesy – google.com)

To get latest updates about ‘Shri Radhe Guru Maa’ visit -

www.radhemaa.com

Saturday, July 18, 2015

Jai Hanuman

|| Jai Bajrang Bali ||

Jinke Naam Mantra Lene Se Kate Sare Sankat 
Wo hain Mahabali Pavan Putra Maruti Nandan

Note

To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.

(Photo Courtesy – google.com)

To get latest updates about ‘Shri Radhe Guru Maa’ visit -

www.radhemaa.com