भोलेनाथ के नाम
भोलेनाथ, महादेव, महेश नाजाने कितने नामों से जाने जाने वाले भगवान शिव अपने भक्तों के बीच भोलेनाथ के नाम से ज्यादा लोक प्रिय हैं। भगवान शिव अपने भक्तों में ना तो भेदभाव करते हैं और अन्य देवी-देवताओं की अपेक्षा उनसे बहुत ही जल्द प्रसन्न भी हो जाते हैं। यही वजह है कि उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ कहते हैं।
विनाश की बागडोर
सृष्टि के विनाश की डोर संभाले भगवान शिव का एक और ना भी है, नीलकंठ। इस नाम के पीछे का कारण है उनका नीला कंठ, जो इस बात का प्रमाण है कि शिव सृष्टि को बुराई और पाप से बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
शिव का स्वरूप
शिव के स्वरूप को कुछ इस तरह बेहतर समझा जा सकता है, बालों में गंगा को संभाले, बालों में चंद्र का मुकुट और गले में सांप को लटकाए, हाथ में त्रिशूल और अपने प्रिय वाहन नंदी की सवारी करने वाले वो देव जो हमेशा सेही मानव जाति के रक्षक और बुरी शक्तियों के लिए विनाशक रहे हैं।
भिन्न-भिन्न स्वरूप
शिव के भिन्न-भिन्न भक्त उन्हें भिन्न-भिन्न स्वरूपों में देखते हैं। इन्हीं स्वरूपों के आधार पर उन्हें अलग-अलग नाम भी दिए गए हैं। आज हम आपको उनके नीलकंठ होने का रहस्य बताएंगे।
इन्द्र को श्राप
पुराणों के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि ने अपने अपमान से क्रोधित होकर देवराज इन्द्र को यह श्राप दिया कि वे लक्ष्मी (धन) विहीन हो जाएंगे। ऐसे में इन्द्र, भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने के लिए गए। भगवान विष्णु ने उन्हें श्राप से मुक्ति पाने का एक मार्ग बताया।
समुद्र मंथन
भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा, जिसके लिए असुरों को अमृत का लालच दिया गया।
मंथन की शुरुआत
मंदार पर्वत, वासुकी नाग और स्वयं भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की सहायता से समुद्र मंथन की शुरुआत हुई, एक तरफ असुर और दूसरी तरह देवता।
14 लाभदायक वस्तुएं
इस मंथन के दौरान समुद्र में से 14 लाभदायक और बहुमूल्य वस्तुएं निकली जैसे इच्छा पूर्ति करने वाली कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, एहरावत हाथी, अप्सरा रंभा आदि।
देवता-असुर
इन सभी वस्तुओं को देवताओं और असुरों के बीच बराबर बांटा गया लेकिन इसके बाद जो निकला उसे ना तो देवता लेने के लिए तैयार थे और ना ही असुर।
हलाहल विष
जब इस मंथन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया तो क्षीर सागर में से हलाहल नाम का ऐसा घातक विष निकला जिसकी एक बूंद भी बड़ा सर्वनाश कर सकती थी।
शिव की सहायता
इस हलाहल का पान करने के लिए ना तो देवता तैयार हो रहे थे और ना ही असुर। इसकी एक बूंद भी धरती पर पड़ती तो बड़ी तबाही हो जाती, ऐसे में देवता और असुर मिलकर भगवान शिव के पास सहायता मांगने गए।
जहर का पान
शिव जी बहुत दयालु और अपने भक्तों की रक्षा करने वाले हैं, बिना किसी बात की परवाह किए उन्होंने देवताओं और असुरों की समस्या को सुलझाने और ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए उस जहर का पान कर लिया।
नीलकंठ
माता पार्वती जानती थीं कि यह विष स्वयं महादेव के लिए भी घातक है इसलिए उन्होंने अपने हाथों से शिव के गले को पकड़ उस जहर को उनके गले में ही रोक दिया। जिसकी वजह से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया। इस घटना के बाद से ही शिव को नीलकंठ का नाम दिया गया।
शिवरात्रि
समुद्र मंथन की घटना के उपलक्ष्य और भगवान शिव को धन्यवाद देने के लिए प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।
source : https://bit.ly/2puLXpm
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