Saturday, June 9, 2018

राम जी के लिए क्यों चीरा हनुमान जी ने अपना सीना ||

राम जी के लिए क्यों चीरा हनुमान जी ने अपना सीना  ||


जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अपनी पत्नी सीता और भैया लक्ष्मण के साथ चौदह वर्षों के वनवास और रावण के साथ हुए युद्ध के पश्चात् अयोध्या वापस लौटे तब इस उपलक्ष में पूरे अयोध्या में हर्षो उल्लाहस था और सभी लोग खुशियां मना रहे थे। कुछ दिनों पश्चात श्री राम अपने भाइयों एवं पत्नी सीता के साथ राज सभा में थे और सभी को युद्ध में उनके सहयोग के लिए प्यार स्वरुप उपहार दे रहे थे तब माता सीता ने हनुमान को अपने गले से उतार कर बहुत हे कीमती मोतियों का हार दिया और उनकी वीरता सहस और राम भक्ति की सराहना की, हनुमान जी उपहार ले कर कुछ आश्चर्य में थे और उन्होंने माला तोड़ दी और एक एक मोती अपने दांतो से चबा कर उसमे कुछ देखते और उसे फेंक देते,

हनुमान जी को ऐसा करते देख पूरी सभा हैरान थी और माता सीता भी क्रोधित थी की उनके दिए हुए उपहार का इतना अपमान, परंतु भगवान् सही राम इस सब को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। उनके इस व्यवहार को देख कर सभा में उपस्थित कुछ लोगो ने हमुमान जी को उपहार के इस अपमान का कारण पुछा तब श्री हनुमान जी ने बड़ी विनम्रता से का की में तो इन कीमती मोतियों में अपने प्रभु श्री राम और माता सीता को ढूंढ रहा हूँ, परंतु मुझे अभी तक किसी भी मोती में प्रभु राम और माता सीता के दर्शन नहीं हुए इसलिए ये मोती मेरे लिए बेकार हैं क्यू की जिस वस्तु में मेरे राम नहीं वो मेरे लिए व्यर्थ है। हनुमान जी की इस बात पर पूरी सभा में हलचल होने लगी कुछ हँसने लगे कुछ व्यंग करने लगे कुछ ने तो यहाँ तक कह दिया इस का अर्थ ये हुआ की प्रभु श्री राम और सीता आपके रोम रोम में वास होना चाहिए यदि नहीं है तो आपका ये शरीर भी व्यर्थ है।

ऐसा सुन कर हनुमान जी महाराज ने भरी सभा के सामने अपना सीना चीर के अपने हृदय में विराजित प्रभु राम और माता सीता के दर्शन समस्त सभा को कराये. और ये दृश्य देख कर समस्त सभा जन राम भक्त हनुमान जी की जय जय कार करने लगे।

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