Tuesday, June 5, 2018

भगवान श्री कृष्ण ने दिया प्रकृति संरक्षण का संदेश ||

भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन में ही सबकी भलाई के लिए निर्बल, दुर्लब, कमजोर वर्ग के लोगों में उत्साह भरने के लिए मनोबल ऊँचा रखने के लिए ब्रज में श्वेत आंदोलन की स्थापना की। जिन घरों से दूध, दही कंस जैसे दुर्दान्त दुष्टों के यहाँ भय के कारण सुविधापूर्वक पहुँचाया जाता था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे रोकने के लिए एक आंदोलन का स्वरूप निर्मित किया। उसी दूध-दही के द्वारा उन्हीं दुर्बल, निर्बल कमजोर लोगों को स्वयं बदनामी लेते हुए अपने को चोर की संज्ञा दी।


कंस के द्वारा किए गए जनता के पर अनेक अत्याचार उनमें बाल हत्या से लेकर जितनी भी प्रकार की मानसिक, वाचिक और कायिक हिंसाएँ हो सकती हैं। उन सबका सामना करने की ताकत इन दुर्लब गरीबों ने पाई। अनेक का मान-मर्दन अहंकार, दलित हुआ और गोवर्धन लीला इसका जीवन्त उदाहरण है। जिसमें इन्द्र ने भी अपनी ताकत का संपूर्ण प्रयोग किया। किंतु कृष्ण की जननिष्ठा के सामने इन्द्र का भी अहंकार टिक न सका।

एक-एक लाठी के सहयोग द्वारा अनेक लाठियों के संबल से कृष्ण की विशेष भावना शक्ति से इस सफल कार्य को अंजाम दिया जा सका। सात दिनों तक प्रलयकालीन बादलों ने ब्रज को तहस नहस करने की साजिश से अपने अपमान का बदला लेने के लिए भीषण जल वृष्टि की।
भगवान श्रीकृष्ण की संगठन शक्ति के सामने इन्द्र को नतमस्तक होना पड़ा। स्वयं श्रीकृष्ण गोवर्धन बनकर गोवर्धन पूजन की मान्यता प्रदान की। वृक्षों और पहाड़ों का संरक्षण, पर्यावरण को व्यवस्थित रखने का सबसे बड़ा साधन है।

गोवर्धन पूजा से सामान्य से सामान्य व्यक्ति जुड़ता है। यहाँ गरीब-अमीर, ऊँच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। भगवान कृष्ण की गोवर्धन पूजा महत्वपूर्ण जन पूजा है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार से लेकर तिरोभाव तक धर्मरक्षा, समाजहित, प्रकृति संरक्षण एवं सौहार्दपूर्ण समाज को संगठित रखने का संदेश दिया हैं।

No comments: