इस पावन श्लोक को हम अपने जीवन में अनगिनत बार पढ़ भी चुके हैं और सुन भी चुके हैं,परन्तु क्या हमने इसके अर्थ या उसके अर्थ की गहराई में कभी जाने की चेष्टा की? अधितम लोगों का उत्तर ना ही होगा, "गुरु" मात्र शब्द ही नहीं बल्कि इसमें पूरा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है,"गुरु" शब्द दो अक्षरों को मिला कर अपना आस्तित्व पाता है, "गु" और "रु" , "गु" का अर्थ है अन्धकार और "रु" का सामान्य अर्थ है मुक्ति दिलाने वाला,तो "गुरु" का भावार्थ हुआ अन्धकार दूर करना वाला, अब यदि इसपे भी विशेष रौशनी डाली जाए तो उपरोक्त श्लोक का भावार्थ समझना होगा, जो की इस प्रकार है :-
गुरु श्रृष्टि रचयिता श्री ब्रह्मा जी के सामान है जो अपने छात्रों में एक सुन्दर चरित्र का निर्माण करता है, गुरु श्रृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी के समान है जो उस सुन्दर चरित्र की रक्षा करता है और गुरु संहारकर्ता शिवजी के सामान है जो बुरी आदतों और बुरे चरित्र का संहार करता है !
प्रभु श्री राम जी के गुरु वशिष्ठ , श्री कृष्ण जी के गुरु संदीपनी जी ने भी उनके जीवन में मत्वपूर्ण योगदान किया है , इसलिए हिन्दू शास्त्रों में गुरु की सेवा परम सेवा बतायी गयी है! शिष्य का परम कर्तव्य है की अपने गुरु द्वारा बताये सत्मार्ग पर चले और सदा उनके चरणों में अपनी सेवा देता रहे ! ममतामयी श्री राधे माँ जी के आदरणीय गुरु श्री श्री १००८ महंत राम दीन दास जी महराज ने भी श्री राधे माँ की दिव्य शक्तियों को जाना परखा और उन्हें और भी ज्यादा प्रभावित करने में मदद की ,दिनचर्या में कठिन जप तप आदि उनका नित्कर्म हुआ करता था!
गुरु शिष्य परंपरा और गुरु सेवा की एक जीती जागती मिसाल हैं ममतामयी श्री राधे माँ, उन्होंने सदा अपने आदरणीय गुरु जी का विधिवत्त आदर सम्मान किया तथा विश्वभर में उनके नाम का प्रचार भी किया है,श्री राधे माँ जी विशेष तौर पर मात्र गुरु जी के लिए ही पंजाब भ्रमण करती रही हैं, करुणामयी श्री राधे माँ जी की अंतर्मन से इच्छा थी की उनके गुरु जी हवाई जहाज़ का सफ़र करें और विदेश भ्रमण भी करें और उन्होंने अपनी इन इच्छाओं को पूर्ण भी किया, हर कार्य निज हाथों से सम्पूर्ण कर नाम सदा गुरु जी का ही सबके समक्ष रखा!
ममतामयी श्री राधे माँ के पावन सानिध्य में लगातार पिछले ८ वर्षों से चैत्र की राम नवमी के दिवस भव्य और दिव्य शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है,और महत्वपूर्ण बात ये है की श्री राधे माँ जी का स्वयं का भवन होते हुए भी, यह भव्य शोभायात्रा आज भी आदरणीय गुरु जी के आश्रम "डेरा परमहंस बाग़ " से ही प्रारंभ की जाती है तथा यात्रा का अंत भी डेरा परमहंस बाग़ पर ही होता है, श्री राधे माँ जी के आदरणीय गुरु श्री श्री १००८ महंत श्री राम दीन दास जी वर्ष २००९ में करीब १५१ वर्ष की आयु में उनका पावन पुण्य शारीर शांत हुआ और आत्मा पंचतत्व में विलीन हो गयी , गुरु जी के परलोक गमन पश्चात श्री राधे माँ जी ने आदरणीय गुरु जी के आदर,सम्मान एवं स्मृति में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी किया है,जबकि उनका स्वयं का भवन,गुरूजी के आश्रम से छोटा ही है!
मैं (मनमोहन गुप्ता) अपने आपको बड़ा भाग्यशाली और धन्य महसूस करता हूँ ,की ऐसे महापुरुष की परम शिष्या और हमारी ममतामयी श्री राधे माँ जी ने हमारे घर परिवेश को पिछले कुछ वर्षों से अपना धाम बना लिया है, सही मायनों में तो हमे उनकी शरण में आने के बाद ही,भक्ति,श्रद्धा, प्रभु ध्यान ,गुरुसेवा का परमार्थ समझ आया है, मैंने और मेरे परिवार ने पिछले कुछ वर्षों में ये परम अनुभव किया है की यदि आप तन और मन से गुरु सेवा करें तो आपकी हर मनचाही मुराद पूरी होती है!