Monday, May 22, 2017

शिव ने किया तांडव तो उठाना पड़ा विष्णु जी को सुदर्शन चक्र !




भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था| दक्ष ब्रह्मा जी के पुत्र थे| पूरे ब्रह्माण्ड का अधिपति बनने के बाद दक्ष में बहुत घमंड आ गया था| दक्ष अपने दामाद अर्थात भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे|

एक बार दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया| इस यज्ञ में दक्ष ने भगवान शिव तथा देवी सती को छोड़कर सभी देवी – देवताओं को आमंत्रित किया था| जब देवी सती को यह पता चला तो उन्हें बहुत क्रोध आया और वह भगवान शिव के मना करने पर भी अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में चली गयी|

वहां पहुँचने पर देवी सती ने अपने पिता से भगवान शिव को न बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने भगवान शिव के बारे में अपशब्द बोलने आरम्भ कर दिए| देवी सती अपने पति का अपमान होते हुए न देख सकी| अपने पति के विरुद्ध ऐसी बातें सुनकर देवी सती को बहुत दुःख लगा और उन्होंने वहीं यज्ञ के अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी| जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्हें बहुत क्रोध आया और क्रोध में उन्होंने अपनी जटा को उखाड़ कर जमीन में मारा जिससे वीरभद्र और महाकाली उत्पन्न हुए| भगवान शिव ने उन्हें दक्ष का यज्ञ नष्ट करने की आज्ञा दी और उन्होंने पल भर में दक्ष के सम्पूर्ण यज्ञ को नष्ट कर दिया| वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट कर यज्ञ के उसी कुंड में फेंक दिया|

अपनी पत्नी के वियोग में भगवान शिव ने सती के पार्थिव शरीर को अग्नि कुंड से निकाल कर कंधे पर उठा लिया और उनका शरीर लेकर तांडव करने लगे और पुरे ब्रह्माण्ड में घूमने लगे| उनके गुस्से से पूरी सृष्टि जलने लगी| तब भगवान शिव को रोकने के लिए विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े किए| देवी सती के शरीर के अंग जहां – जहां गिरे वहां शक्ति पीठ की स्थापना हुई|

अगले जन्म में सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया|

देवी पुराण में 51 शक्ति पीठों का वर्णन किया गया है| जबकि देवी भागवत में 108 तथा तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्तिपीठों का वर्णन किया गया है| विभाजन के बाद भारत में केवल 42 शक्ति पीठ रह गए| पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ हैं|

Wednesday, May 10, 2017

|| साईं बाबा की मूर्ति का राज ||

|| साईं बाबा की मूर्ति का राज  ||


शिरडी के संत साईं बाबा को गुरू का दर्जा का प्राप्त है इसलिए साईं मंदिर में गुरूवार को बड़ी संख्या में श्रद्घालु बाबा के दर्शनों के लिए आते हैं। अगर आप कभी साईं मंदिर में गए हैं या उनकी मूर्तियों को देखा तो जरा ध्यान करके सोचिए हर मूर्ति में साईं बाबा एक बुजुर्ग की तरह नजर आते हैं जो एक ऊंचे आसन पर पैर पर पैर चढ़ाकर बैठे होते हैं।

साईं बाबा की ऐसी मूर्तियों के पीछे कारण यह है कि साईं बाबा प्रमुख स्थान शिरडी में साईं बाबा जो मूर्ति है उसी के अनुरूप सभी मूर्तियों का निर्माण हुआ है। लेकिन शिरडी में साईं बाबा की मूर्ति इस प्रकार कैसे बनी इसकी एक बेहद ही रोचक और रहस्यमयी कहानी है जो कम लोग ही जानते हैं।

साईं बाबा ने अपने जीवन का बड़ा भाग शिरडी में बिताया और यहीं पर साईं ने अपनी अंतिम सांस ली। इसलिए शिरडी को साईं का धाम माना जाता है। साईं बाबा के बारे में कई ऐसी कथाएं मिलती हैं जिसके अनुसार अपने जीवनकाल में साईं ने बड़े ही अद्भुत चमत्कार दिखाए थे।

साईं भक्त मानते हैं कि शरीर त्याग करने के बाद भी साईं उनके बीच हैं और संकट के समय भक्तों की पुकार पर किसी चमत्कार की तरह उन्हें संकट से उबाड़ लेते हैं। साईं की मूर्ति के बारे में भी माना जाता है कि इसका निर्माण भी एक चमत्कार की तरह ही हुआ था।

ऐसी कथा है कि साईं बाबा की महासामधि के बुट्टी वाडा में उनकी तस्वीर रखकर उनकी पूजा होती थी। 1954 तक इसी तरह साईं बाब की पूजा होती थी। लेकिन एक दिन अचानक ही इटली से मुंबई बंदरगाह पर आए। लेकिन इस मार्बल को किसने और क्यों मुंबई भेजा यह किसी को पता नहीं।

शिरडी संस्थान ने मार्बल को साईं की मूर्ति बनाने के लिए ले लिए। इसके बाद मूर्ति बनाने का काम वसंत तालीम नाम के मूर्तिकार को सौंपा गया। ऐसी मान्यता है कि मूर्तिकार ने साईं बाबा से प्रार्थना की आशीर्वाद दीजिए की आपकी मूर्ति मैं आपकी छवि जैसी बना सकूं। कहते हैं साईं बाबा ने मूर्तिकार को दर्शन देकर अपनी छवि दिखाई और उसी छवि को देखकर मूर्तिकार ने साईं की मूर्ति का निर्माण किया जो शिरडी के समाधि मंदिर में विराजमान है। और साईं की यह छवि पूरी दुनिया में साईं भक्तों की आस्था का प्रीतक है।

साईं बाबा की जो मूर्ति आप शिरडी में देखते हैं उस मूर्ति को विजया दशमी के दिन मंदिर में स्थापित किया गया था। यह मूर्ति का आकार 4 फुट 5 इंच है। इस मंदिर में साईं बाबा का ख्याल एक बुजुर्ग साधु की तरह रखा जाता है।

हर दिन साईं बाबा को सुबह स्नान करवाया जाता है और दिन में चार बार उनके वस्त्र बदले जाते हैं। इन्हें नाश्ता और खाना भी खिलाया जाता है। रात के समय मच्छरदानी लगाया जाता है ताकि बाबा का मच्छर काटे। पानी का गिलास भी साईं बाबा के पास रखा जाता है।

Copyrights from  amar ujala

ज्ञान की चाँदनी फैलाती है बुद्ध पूर्णिमा !!

|| ज्ञान की चाँदनी फैलाती है बुद्ध पूर्णिमा ||


भिक्षाम् देहि' की पुकार सुनकर जैसे ही यशोधरा द्वार पर आईं , तो देखती हैं कि सामने बुद्ध खड़े हैं-कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ और वह भी हाथ में भिक्षा का पात्र लिए हुए।उस समय पत्नी यशोधरा पति सिद्धार्थ से बुद्ध बने इस भिक्षुक से एक बहुत ही प्रखर एवं शाश्वत महत्व का प्रश्न पूछती हैं।वे पूछती हैं- 'आर्य जो ज्ञान आपको वन में जाने से प्राप्त हुआ, क्या वही ज्ञान यहां प्राप्त नहीं हो सकता था ?'बुद्ध ने तत्काल उत्तर दिया, 'हो सकता था।' यशोधरा के लिए यह उत्तर चौंकाने के साथ ही अत्यतं व्यतिथ करने वाला भी था। ' तो फिर यहां से क्यों गए स्वामी ?' यह यशोधरा का अगला प्रश्न था।इसके उत्तर में बुद्ध ने जो कहा , वह बहुत ही महत्वपूर्ण है।बुद्ध ने कहा , 'वह यहां भी प्राप्त हो सकता था , इस तथ्य का ज्ञान मुझे वहीं जाकर प्राप्त हो सका।' 

गौतम बुद्ध के जीवन का अत्यतं ही भावप्रवण यह प्रसंग हमारी चेतना और आचरण का हिस्सा होना चाहिए ।दुख ही अशांति का कारण है।यह जानने के लिए वे भटके थे कि इन दुखों से छुटकारा कैसे पाया जा सके।जैसे ही उन्होंने जाना , वे सिद्धार्थ से बुद्ध हो गए।
जिस प्रकार हर तार में संगीत निहित होता है,हर पत्थर में प्रतिमा मौजूद रहती है।जरूरत ऐसे हाथों की होती है जो छिपे इस स्वरूप साकार कर सके। 
बात सीधी सी है कि कर्म में ही शांति है और उसे उदात्त चेतना के साथ करना ही आध्यात्मिक जीवन जीने का उपक्रम है।यदि आपको काम में रस आ रहा है , आनंद मिल रहा है, तो निश्चित रूप से वहां शांति भी मिलेगी।
गौतम बुद्ध के संदेश "अप्प दीपो भव।" अर्थात ' हम सभी अपना दीपक स्वयं बनें ' को अपने जीवन में अमल करते हुए जीवन को सार्थक करें।
बुद्ध पूर्णिमा ज्ञान की चांदनी फैलाकर मानवता में शांति और समृद्धि का संचार कर रही है।जरूरत है हम खुले मन से बांहें फैला कर उसे अंगीकार करें।