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Saturday, April 27, 2019

भगवन श्री राम के गुण । Qualities of Lord Rama |


भगवान राम

भगवान राम का जन्म धरती से राक्षसों और असुरों का संहार करने के लिए हुआ था। धरती रावण रूपी बुराई के आतंक से त्रस्त थी, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था....धरती को पाप मुक्त बनाने के लिए विष्णु जी ने देवी कौशल्या की गर्भ से श्रीराम के रूप में जन्म लिया था।

भगवान राम का चरित्र

पौराणिक कथाओं में भगवान राम के चरित्र की व्याख्या बड़ी ही खूबसूरती के साथ की गई है। वे मर्यादा पुरुषोतम तो थे ही साथ ही वे एक आदर्श पुत्र भी और प्रिय भाई भी थे। एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपनी प्रजा की देखभाल अपनी संतान की भांति, वे अपनी प्रजा के दुख को अपना ही दुख समझते थे।

राम का वनवास

यही करण है कि जब भगवान राम को वनवास जाना पड़ा तब पूरी अयोध्या ही शोक में डूब गई थी और जब वे 13 साल के वनवास के बाद लौटे तो उनकी प्रजा ने उस दिन को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाकर उनके प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन किया।

रामायण ग्रंथ

रामायण ग्रंथ, भगवान राम के जीवन पर आधारित एक ऐसी रचना है जिसे पढ़ने के बाद ना सिर्फ आनंद की, बल्कि ओज और उत्साह की भी अनुभूति होती है। रामायण, भगवान राम के जीवन का दर्शन है और साथ ही इस महान ग्रंथ में कुछ ऐसी बातें भी उल्लिखित है जो मानव जीवन के बहिय काम आ सकती है।

प्राचीन ग्रंथ और पुराण

रामायण के अलावा, ऐसे कई प्राचीन ग्रंथ और पुराण हैं जिनमें भगवान राम द्वारा कही गई बातों का जिक्र है, जिनमें से एक है अग्नि पुराण। अग्नि पुराण के एक विस्तृत अध्याय के अंतर्गत श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण के बीच वार्तालाप का उल्लेख है। जिसका आधार था “कैसा व्यक्ति एक बेहतरीन राजा या नेता बन सकता है”।

भगवान राम

भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को बताया था कि एक व्यक्ति तभी अच्छा राजा या नेता बन सकता है जब वह चार दिशाओं में कार्य करे। सबसे पहले वो ये जानता हो कि धन कैसे अर्जित किया जाता है, दूसरा अर्जित धन को बढ़ाया कैसे जाता है, तीसरा वह ये जानता हो कि उस धन की रक्षा किस तरह की जाती है और चौथा, किस तरह उस धन का प्रयोग अपनी प्रजा के सुखद भविष्य के लिए किया जाए।

प्रजा से प्रेम

भगवान श्रीराम के अनुसार राजा को ना सिर्फ उन लोगों के साथ हमेशा विनम्र और शांत रहना चाहिए जो उसके लिए काम करते हैं वल्कि उन लोगों के साथ भी नम्र व्यवहार करना चाहिए जो उसके साथ कार्य नहीं करते। ऐसा राजा जो बात-बात पर क्रोधित होता है या फिर अधिकांश स्थितियों में अपना धैर्य खो देता है, वह कभी भी अपनी प्रजा से प्रेम या आदर प्राप्त नहीं कर पाता।

गलती को मांफ़ करना

गलती को मांफ़ करना और अहिंसा के मार्ग पर चलना... जो व्यक्ति इन गुणों को अपने बेहेतर संजो कर रखता है वह एक अच्छा राजा बन सकता है। खासकर तब जब ये बातें उसके राज्य की खुशियों की बात हो। वह एक अच्छा मार्गदर्शक होना चाहिए, जो सभी की मदद करने के लिए तत्पर रहे और साथ ही साथ अपनी प्रजा की रक्षा करनी भी जानता हो।

शिकायतें सुनने का समय

एक अच्छे राजा को कभी भी अपनी प्रजा या दरबार में आए किसी भी व्यक्ति को नाउम्मीद नहीं छोड़ना चाहिए। उसके पास हमेशा अपने लोगों के दुख और शिकायतें सुनने का समय होना चाहिए, ताकि वह उन्हें सुलझा पाए। साथ ही जो लोग उससे खुश नहीं है, उन्हें भी संतुष्ट करने की कोशिश होनी चाहिए।

 अच्छे वचन

एक नेता या शासक को हमेशा अच्छे वचन ही बोलने चाहिए, फिर चाहे हो अपने दोस्त के लिए प्रयोग कर रहा हो या फिर दुश्मन के लिए।

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Saturday, February 23, 2019

आखिर कब हुआ था श्रीराम का जन्म?



मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अवतारी पुरुष जरूर थे लेकिन उन्होंने सामान्य बच्चे की तरह माता के गर्भ से जन्म लिया।
पुराणों में इस बात को लेकर काफी मतभेद है कि श्रीराम का जन्म आखिर कब हुआ था। प्रचलित कथा के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को श्री राम का जन्म हुआ था। इस दिन देश भर में राम नवमी मनाई जाती है जो श्रीराम के जन्म की द्योतक मानी जाती है।
सवाल ये उठता है कि श्रीराम के युग के बाद इतनी सभ्यताएं आई और गई कि यह तय करना असंभव प्रतीत होता है कि श्रीराम किस काल, वर्ष और खंड में जन्में। उनके जन्म की तारीख और स्थान पर भी कई बार बहस होती है लेकिन अब तक भी बात को प्रमाणित नहीं किया जा सका है।
आइए अलग अलग काल के पुराणों और प्रचलित मान्यताओं में लिखित श्रीराम के जन्म की तारीख जानते हैं।
क्या कहती है महर्षि वाल्मीकि की रामायण

महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के बाल काण्ड में श्री राम के जन्म का उल्लेख इस तरह किया गया है। जन्म सर्ग 18वें श्लोक 18-8-10 में महर्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत महूर्त में हुआ। अचंभे की बात ये है कि आधुनिक युग में कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह 21 फरवरी, 5115 ईस्वी पूर्व निकलता है।
तुलसीदास की रामचरित मानस के अनुसार

मानस के बाल काण्ड के 190 वें दोहे के बाद पहली चौपाई में तुलसीदास ने भी इसी तिथि और ग्रहनक्षत्रों का जिक्र किया है। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में राम के पूरे जीवन की हर अवस्था का जिक्र करते हुए कहा है कि सोलहवें वर्ष में वो विश्वमित्र के साथ तपोवन गए और युद्ध की शिक्षा ली।

आई वेदा ने की वाल्मीकि रामायण की पुष्टि

वाल्मीकि रामायण की पुष्टि दिल्ली में स्थित एक संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा यानी आई सर्वे ने भी की है। वेदा ने खगौलीय स्थितियों की गणना के आधार पर ये थ्योरी बनाई है कि वाल्मीकि ने तारों की गणना के आधार पर राम जन्म की स्थिति की जानकारी दी है।
वेदा द्वारा कराए गए इस शोध में मुख्य भूमिका अशोक भटनागर, कुलभूषण मिश्र और सरोज बाला ने निभाई है। सरोज बाला आईवेदा की अध्यक्ष भी हैं। इनके अनुसार 10 जनवरी 5114 को भगवान राम का जन्म हुआ था
वाल्मीकि लिखते हैं कि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया। वाल्मीकि कहते हैं कि जिस समय राम का जन्म हुआ उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे।

क्या दोपहर को हुआ राम का जन्म

यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स नाम की इस एग्जीबिशन में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार भगवान राम का जन्म 10 जनवरी, 5114 ईसापूर्व सुबह बारह बजकर पांच मिनट पर हुआ (12:05 ए.एम.) पर हुआ था।

कंप्यूटर ने खोज निकाली नई तिथि

वाल्मीकि रामायण द्वारा बताए गए ग्रह नक्षत्रों का जब प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर के अनुसार आकलन किया गया तो राम जन्म की तिथि 4 दिसंबर ईसा पूर्व यानी आज से 9349 साल पहले हुआ।

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Friday, January 4, 2019

भगवान राम के जीवन से जुड़े 2 प्रेरक प्रसंग |



अपने पिता महाराज दशरथ की आज्ञा पाकर श्रीराम सीता मैया और लक्षमण जी के साथ 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए अयोध्या से प्रस्थान कर गए. इसके बाद वे प्रयाग (इलाहाबाद), चित्रकूट, पंचवटी ( नासिक ), दण्डकारण्य, लेपक्षी, किश्किन्दा, रामेश्वरम, आदि स्थानों पर रहे और इस दौरान उनके साथ कई प्रसंग घटे.

प्रसंग #1 –  शूर्पणखा की नाक काटना


जब भगवान् राम पंचवटी में रह रहे थे तभी एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा एक सुंदरी का रूप धारण कर उनके पास आई और उनके दिव्य स्वरुप से मोहित हो कर उनसे विवाह करने के लिए कहने लगी.
इस पर श्रीराम ने अपनी पतिव्रता पत्नी सीता के बारे में बताया और कहा कि वह उनके अनुज लक्ष्मण के पास जाए.
जब शूर्पणखा ने लक्षमण जी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह बोले, ” हे सुंदरी! मैं तो भगवान् राम का दास हूँ यदि तुमने मुझसे विवाह किया तो तुम्हे भी उनकी दासी बनना पड़ेगा. और यह तो तुम्हारे सम्मान के विरुद्ध होगा. तुम राम भैया के पास जाओ वही सबके स्वामी हैं वही सबकुछ करने में समर्थ हैं.
यह सुनकर शूर्पणखा क्रोध से लाल हो गयी और रामजी से बोली, “शायद तुम्हे मेरी असीम शक्ति का ज्ञान नहीं है, जो तुम मेरे निवेदन को ठुकरा कर मेरा उपहास कर रहे हो.”
और ऐसा कह कर वह अपने असली रूप में आ गयी और सीता मैया को खाने के लिए दौड़ी.
यह देख श्री राम ने लक्षमण को उसे दण्डित करने का संकेत दे दिए और लक्षमण जी ने अपनी तलवार से उसके नाक-कान काट दिए.

प्रसंग #2 – खर-दूषण से युद्ध


नाक-कान कटने के बाद शूर्पणखा खून से लथपथ अपने भाइयों खर-दूषण के पास दौड़ी गयी और खर से बोली, “भाई! धिक्कार है तुम्हारे बल और पराक्रम पर. आज तुम्हारे राज्य में साधारण मनुष्यों की हिम्मत इतनी बढ़ गयी है कि उन्होंने मेरा ये हाल करने का दुःसाहस कर दिया है.”
और शूर्पणखा ने अपने साथ घटी घटना बता दी.
यह सुन कर खर क्रोधित हो उठा और तत्काल अपने भाई दूषण और 14 हज़ार राक्षसों की सेना लेकर राम-लक्षमण पर आक्रमण करने के लिए निकल पड़ा. उसकी इस विशाल सेना में एक से बढ़ कर एक पराक्रमी व दिव्यास्त्रों से सुसज्जित राक्षस मौजूद थे.
उनके आने का कोलाहल सुनकर श्रीराम ने लक्षमण जी से सीता मैया को किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने को कहा और स्वयं अपना धनुष और अक्षयबाण वाले दो तरकस बाँध कर तैयार हो गए.
जल्द ही राक्षस वहां आ पहुंचे और नाना प्रकार के अश्त्रों-शश्त्रों से उन पर वार करने लगे. पर श्रीराम ने एक-एक कर के उनके सारे अश्त्र -शश्त्र काट डाले और सहस्त्रों बाणों से खर-दूषण समेत समस्त राक्षसों का संहार कर दिया.
इस प्रकार रघुवंशियों में श्रेष्ठ श्रीराम ने आधे पहर में ही इतनी विशाल और सूरवीरों से भरी सेना को अकेले ही समाप्त कर दिया|
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                                                                                                                             Source: https://bit.ly/2F9oELF

Monday, January 29, 2018

इन पांच कारणों से भगवान राम को जाना पड़ा था वनवास :-

रामयण की सबसे बड़ी घटना है भगवन श्री राम का देवी सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास गमन। रामायण की कथा के अनुसार कैकेयी की ज‌िद्द की वजह से भगवान राम को वन जाना पड़ा था। लेक‌िन यह मात्र एक दृश्य घटना है। श्रीराम के वन गमन के पीछे कई दूसरे कारण भी थे ज‌िन्हें वही व्यक्त‌ि समझ सकता है ज‌िन्होंने रामायण को पढ़ा और समझा हो।



1. कैकेयी ने हमेशा राम को अपने पुत्र भरत के समान ही प्रेम क‌िया। कभी भी कैकेयी ने राम के साथ कोई भेद भाव नहीं क‌िया। यही वजह थी क‌ि जब राम के वन जाने की वजह का पता भरत को चला तो वह हैरान हुए थे क‌ि माता कैकेयी ऐसा कैसे कर सकती है। और सच भी यही था क‌ि कैकेय ने यह जान बुझकर नहीं क‌िया था। इनसे यह काम देवताओं ने करवाया था। यह बात राम च‌र‌ित मानस के इस दोहे से स्पष्ट होता है-  ब‌िपत‌ि हमारी ब‌िलोक‌ि बड़‌ि मातु कर‌िअ सोइ आजु। रामु जाह‌िं बन राजु तज‌ि होइ सकल सुरकाजु।।

2. भगवान राम का जन्म रावण वध करने के उद्देश्य से हुआ था। अगर राम राजा बन जाते तो देवी सीता का हरण और इसके बाद रावण वध का उद्देश्य अधूरा रह जाता। इसल‌िए देवताओं के अनुरोध पर देवी सरस्वती कैकेयी की दासी मंथरा की मत‌ि फेर देती हैं। मंथरा आकर कैकेयी का कान भरना शुरु कर देती है क‌ि राम अगर राजा बन गए तो कौशल्या का प्रभाव बढ़ जाएगा। इसल‌िए भरत को राजा बनवाने के ल‌िए तुम्हें हठ करना चाह‌िए।

3. मंथरा की जुबान से देवी सरस्वती बोल रही थी। इसल‌िए मंथरा की बातें कैकेयी की मत‌ि को फेरने के ल‌िए काफी था। कैकेयी ने खुद को कोप भवन में बंद कर ल‌िया। राजा दशरथ जब कैकेयी को मनाने पहुंचे तो कैकेयी ने भरत को राजा और राम को चौदह वर्ष का वनवास का वचन मांग ल‌िया। इस तरह भगवान राम को वनवास जाना पड़ा।

4. इसके अलावा जो कारण है उसका संबंध एक शाप से है। नारद मुन‌ि के मन में एक सुंदर कन्या को देखकर व‌िवाह की इच्छा जगी। नारद मुन‌ि नारायण के पास पहुंचे और हर‌ि जैसी छव‌ि मांगी। हर‌ि का मतलब व‌िष्‍णु भी होता है वानर भी। भगवान ने नारद को वानर मुख दे द‌िया इस कारण से नारद मुन‌ि का व‌िवाह नहीं हो पाया। क्रोध‌ित होकर नारद मुन‌ि ने भगवान व‌िष्‍णु को शाप दे द‌िया क‌ि आपको देवी लक्ष्मी का व‌ियोग सहना पड़ेगा और वानर की सहायता से ही आपका पुनः म‌िलन होगा। इस शाप के कारण राम सीता का व‌ियोग होना था इसल‌िए भी राम को वनवास जाना पड़ा।

5. पांचवां और सबसे बड़ा कारण स्वयं भगवान श्री राम हैं। तुलसी दास जी ने रामचर‌ित मानस में ल‌‌िखा है 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा।' यानी भगवान राम की इच्छा के ब‌िना कुछ भी नहीं होता । भगवान राम स्वयं ही अपनी लीला को पूरा करने के ल‌िए वन जाना चाहते थे क्योंक‌ि वन में उन्हें हनुमान से म‌िलना था। सबरी का उद्धार करना था। धरती पर धर्म और मर्यादा की सीख देनी थी। इसल‌िए जन्म से पहले ही राम यह तय कर चुके थे क‌ि उन्हें वन जाना है और पृथ्वी से पाप का भार कम करना है।

Friday, December 15, 2017

14 वर्ष के वनवास में श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके,

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।


रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।

2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।

3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।

4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है।

5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।

6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।

7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

8.पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।

9.सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।

10.पर्णशाला: पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

11.तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।

12.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।

13.ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।

14.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

15.रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

16.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

17.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।

Thursday, July 16, 2015

Lord Rama


Lord Rama is one of the most commonly adored gods of Hindus and is known as an ideal man and hero of the epic Ramayana.

Note:

To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.

(Photo Courtesy – google.com)

To get latest updates about ‘Shri Radhe Guru Maa’ visit -


www.radhemaa.com

Thursday, June 4, 2015

24 main lila-avataras - 20th Avatara - King Rama


There are 24 main lila-avataras of the Supreme Being.
20th Avatara - King Rama
In order to please the demigods and mankind, He displayed His superhuman powers as the ideal king and killed the demon King Ravana. This is one of the most popular stories in all of India that make up the great Vedic epic known as the Ramayana.


Note

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(Photo Courtesy – google.com)

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Thursday, January 22, 2015

Quiz on Lord Rama - Radhe Guru Maa


Which was the seventh incarnation of Lord Vishnu, born in Ayodhya?

1. Buddha
2. Kalki 
3. Krishna
4. Rama


How to enter contest 
1. Like Param Shradhey Shri Radhe Maa page on facebook 
2. Guess the right answer and submit on – Link 
3. Comment and tag your friends in comment, more you tag more chances of winning!
- Mamtamai Shri Radhe Guru Maa Charitable Trust
Note
To know more about Guru Maa’s teachings you may follow her on her account on Twitter and Facebook or log on to www.radhemaa.com. These social pages are handled by her devoted sevadars. To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days at Shri Radhe Maa Bhavan in Borivali, Mumbai. The darshans are free and open to everyone.
One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures. Contact Shri Radhe Maa’s sevadar on +91 98200 82849 or email on admin@radhemaa.com to participate in these charitable activities.
(Photo Courtesy – google.com)
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Wednesday, July 23, 2014

Why is Hanuman considered the ideal bhakta?

Lord Hanuman

Lord Hanuman is most pleased when he is addressed as Ramadasa or the servant of Lord Rama. He possesses Utsaham (Enthusiasm) Sahasam (Courage) Dhairyam (Fortitude) Buddhi (Intelligence) Shakti (Strength) parakramam (Accomplishment), and uses these sterling qualities to serve the lotus feet of Lord Rama. 

This is why anyone who aspires to be a devotee of  Lord Rama is advised to emulate the example of Lord Hanuman! 

Bol Siya-var Ramachandra ki Jai! Bol Ramadasa Hanuman ki jai! Bolo sab santan ki jai! 
Watch a video of a powerful Bajrang-ban which protect devotees from all evils on this link http://www.youtube.com/watch?v=aOQhX5yKaLU


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Wednesday, June 18, 2014

Shri Radhe Maa - Poet Rahim and his love for Lord Rama




Abdul Rahim Khan-i-Khana (17 December 1556 – 1626) who is known simply as Rahim to lovers of Hindi poetry, was a friend of Goswami Tulsi Das, the author of the Ram Charit- Manas. Born a Muslim, Rahim had a great affinity and fondness for Hindu culture, philosophy and religion. A doha by Rahim praises the glory of Ram-naam:

Gahi sarnagati Ram ki, bhavsagar ki naav
Rahiman jagat-uddhaar ko, aur na kou upai

Except for the refuge of Lord Rama, the boat across the sea of maya
O Rahim, there is no other way of transcending this world


Another doha praises Lord Krishna's greatness:

Jo gharib ko hith kare, dhani Rahim te log
Kahan Sudama bapuro, Krishna-mitai jog


Those who do good to the deprived are the truly wealthy
As was Krishna, who chose to be friends with poor Sudama

May the example of Abdul-Rahim-Khan-i-Khana inspire us to a life of devotion to Lord Rama, the refuge of the fallen!


Watch a video of dohas of Rahim on this link - 
 https://www.youtube.com/watch?v=ZfJecWE6ck0



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Monday, June 16, 2014

Hail Mahadeva Shiva, the Lord of Rama!

Lord Shiva and Lord Rama


Lord Rama invoked Lord Shiva before he embarked on his journey to rescue Mata Sita and defeat Ravana, the king of asuras.Please with Lord Rama's devotion, Lord Shiva appeared to the Lord Rama and granted him his blessings in his battle against the king of asuras. 

This became possible because despite the truth that Ravana was a learned Brhamin and a great devotee of Shiva, he had deviated from the path of dharma by taking Sita away to Lanka, his kingdom. This tells us that devotion to God is not enough. Dharma demands that we also live an ethical life. Ravana forgot this and had to pay with his life.

After his wish was granted, Lord Rama, being ever compassionate, asked Lord Shiva to remain at the spot forever so that others could also benefit from his blessings. Lord Shiva agreed and turned himself into a linga. The spot is today known to us a Ramaeshwaram, which is one of the 12 powerful Jyotirlingas of Lord Shiva.

May Lord Shiva, the natha of Lord Rama, or Rameshwaram, bless us with peace, strength and liberation from the cycle of life and death. 

Watch Lord Shiva's powerful prayer to Lord Rama on this link https://www.youtube.com/watch?v=cJOBRGbv2yE


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