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Friday, March 22, 2019

जब अपनी ही पुत्री सरस्वती से ब्रह्मा जी ने किया जबरन विवाह | Brahma-married-his-own-daughter-saraswati



विद्या और कला की देवी सरस्वती को पवित्रता और उर्वरता की देवी मन गया है और कहते हैं जिसके ऊपर सरस्वती का आशीर्वाद होता है उसका जीवन सदैव के लिए प्रकाशमय हो जाता है। लेकिन ऐसी कौन सी वजह थी जो इनके ऊपर स्वयं इनके पिता ने कुदृष्टि डाली थी। आइए जानते हैं इस कहानी के पीछे का रहस्य।

किसकी पुत्री थी देवी सरस्वती? हमारे सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मदेव माता सरस्वती के पिता थे। सरस्वती पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण करने के बाद अपने वीर्य से सरस्वती जी को जन्म दिया था। इनकी कोई माता नहीं है इसलिए यह ब्रह्मा जी की पुत्री के रूप में जानी जाती थी। वहीं मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। जब उन्होंने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में बिलकुल अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया।

अपनी ही पुत्री से ब्रह्मदेव हुए आकर्षित कहते हैं देवी सरस्वती इतनी रूपवन्ती थी की स्वयं ब्रह्मा जी उनके सुन्दर रूप से आकर्षित हो गए थे और उनसे विवाह करना चाहते थे। किन्तु जब माता को इस बात की भनक लगी तो वह ब्रह्मा जी से बचने के लिए चारों दिशाओं में छुपने लगीं। लेकिन उनके सारे प्रयत्न विफल हुए। अंत में उन्होंने हार मान ली और उन्हें ब्रह्मा जी के साथ विवाह करना पड़ा। माना जाता है कि ब्रह्मा जी और देवी सरस्वती पूरे सौ वर्षों तक एक जंगल में पति पत्नी की तरह रहे वहां इनके पुत्र स्वयंभु मनु का भी जन्म हुआ। मतस्य पुराण की एक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती पर कुदृष्टि डाली थी तब वह इनसे बचने के लिए आकाश में जा कर छुप गई थी। तब ब्रह्मा जी के पांचवे सिर ने उन्हें ढूंढ निकाला, इसके बाद ब्रह्मदेव ने देवी सरस्वती से सृष्टि की रचना में सहयोग करने के लिए कहा।

तब इनके पुत्र मनु का जन्म हुआ जिसे पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। इसके अलावा मनु को वेदों, सनातन धर्म और संस्कृत समेत समस्त भाषाओं का जनक भी कहा जाता है।

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                                                                                                                                                       Source:https://bit.ly/2ullRro

Friday, March 15, 2019

जानिये सरस्वती का विवाह कैसे हुआ । Story of Saraswati Devi |



हिन्दू धर्म शास्त्रों में ब्रह्मा को ब्रह्माण्ड का रचियता माना जाता है, उनकी पुत्री का नाम सरस्वती था, पर क्या आप जानते है उन्होंने अपनी पुत्री से ही विवाह कर लिया था. अगर नहीं तो इस लेख के माध्यम से हम आपको बतायेंगे की कैसे ब्रह्मा ने अपनी ही पुत्री के साथ विवाह कर लिया था. हिंदू पौराणिक कथाओं में हमें सरस्वती की उत्पत्ति से संबंधित दो कहानियो का उल्लेख प्राप्त होता हैं. ये पौराणिक ग्रन्थ है सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण जो हमें ये जानकारी प्रदान करते है.
सरस्वती पुराण के अनुसार, उन्होंने अपनी सुंदर पुत्री सरस्वती को अपनी महत्वपूर्ण ताकत से बनाया। कुछ ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि जब ब्रह्मा ने अपनी आंखें खगोलीय सौंदर्य उर्वशी पर जमाकर हस्तमैथुन किया था, तो बर्तन में पढ़े ब्रह्मा के वीर्य ने सरस्वती को जन्म दिया। सरस्वती को ब्रह्मा के वीर्य से बनाया गया था, इस प्रकार, उनकी कोई मां नहीं थी
उनकी बेटी सरस्वती विद्या की देवी है। जब ब्रह्मा ने सरस्वती की सुंदरता को देखा तो वह उनकी सुन्दरता देख कर मोहित हो गये। सरस्वती के लिए उनकी इच्छा बढ़ गई, अपने पिता के भावुक दृष्टिकोण से बचने के लिए, सरस्वती भाग गयी और चारों दिशाओं में छिप गइ, लेकिन वह अपने पिता से बच नहीं सकती थी।
आखिरकार वह ब्रह्मा की इच्छा के आगे झुक गई, ब्रह्मा और उनकी बेटी सरस्वती 100 वर्षों तक पति और पत्नी के रूप में रहे। उन्हें एक पुत्र स्वयंभु मनु की प्राप्ति भी हुई। यह धरती के प्रथम मानव थे. यह माना जाता है की उन्होने वेदो, सनातन धर्म और संस्कृत समेत अन्य भाषाओ को भी जन्म दिया.

मत्स्य पूराण की कथा

हालांकि, मत्स्य पुराण के अनुसार, एक समय था जब भगवान ब्रह्मा अकेले थे तब ब्रह्मांड मौजूद नहीं था। वह साथी की तलाश में थे तदनुसार, उन्होंने तीन स्त्रियों को पैदा किया। पौराणिक कथाओं में इनका नाम सांध्य, ब्रह्मी और सरस्वती मिलता है, जिनका जन्म ब्रह्मा के मुंह से हुआ था। सरस्वती इनमे सबसे सुंदर थी, ब्रह्मा इनसे काफी आकर्षित हो गये और अपनी दृष्टि उन्ही पर जमाये रखते थे, उनके इस घूरने से बचने के लिये, सरस्वती चारो दिशाओ मे छिपने लगी लेकिन उनसे बच ना सकी. अंतत: वह आकाश में जाकर छीप गयी लेकिन उन्होने अपने पांचवे सर से सरस्वती को आकाश मे भी खोज लिया. फिर उन्होंने सरस्वती से सृष्टि की रचना में सहयोग माँगा जिसके कारण दोनों का विवाह हो गया.
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Source:https://bit.ly/2Ffq06o

Thursday, February 28, 2019

इस तरह देवी सरस्वती माता का नाम पड़ा वीणापाणि |



प्रत्येक वर्ष माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी बसंत पंचमी के दिन वाणी और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है। क्योंकि वेद और पुराणों में बताया गया है कि ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती इसी दिन प्रकट हुई थी।

इसलिए इस तिथि को सरस्वती जन्मोत्सव भी कहा जाता है। पुराणों में देवी सरस्वती के प्रकट होने की जो कथा है उसके अनुसार सृष्टि का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनायी सृष्टि को देखा तो उन्हें लगा कि उनकी सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत है। इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी।

अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी निराश और दुःखी हो गये। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया। ब्रह्मा जी की बातों को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि आप देवी सरस्वती का आह्वान कीजिए। आपकी समस्या का समाधान देवी सरस्वती ही कर सकती हैं।

भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती देवी का आह्वान किया। देवी सरस्वती हाथों में वीणा लेकर प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया। देवी सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा। इसी से संगीत के प्रथम सुर का जन्म हुआ।

सा स्वर के कंपन से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। माता सरस्वती का एक नाम यह भी है। हाथों में वीणा होने के कारण मां सरस्वती वीणापाणि भी कहलायी।

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                                                                                                                                                                                                                 Source:https://bit.ly/2HjLxJq

Saturday, February 9, 2019

सरस्वती उत्पत्ति कथा सरस्वती पुराण अनुसार |



हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों ‘सरस्वती पुराण’ और ‘मत्स्य पुराण’ में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का अपनी ही बेटी सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव ‘मनु’ का जन्म हुआ।
 
सरस्वती पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा ने सीधे अपने वीर्य से सरस्वती को जन्म दिया था। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सरस्वती की कोई मां नहीं केवल पिता, ब्रह्मा थे। स्वयं ब्रह्मा भी सरस्वती के आकर्षण से खुद को बचाकर नहीं रख पाए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने पर विचार करने लगे। सरस्वती ने अपने पिता की इस मनोभावना को भांपकर उनसे बचने के लिए चारो दिशाओं में छिपने का प्रयत्न किया लेकिन उनका हर प्रयत्न बेकार साबित हुआ। इसलिए विवश होकर उन्हें अपने पिता के साथ विवाह करना पड़ा। ब्रह्मा और सरस्वती करीब 100 वर्षों तक एक जंगल में पति-पत्नी की तरह रहे। इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया था स्वयंभु मनु।

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                                                                                                                                                                                  Source: https://bit.ly/2Buv9VV

Thursday, January 31, 2019

सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है?


मां सरस्वती विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं। सरस्वती सारे संशयों का निवारण करने वाली और बोधस्वरूपिणी हैं। इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी है। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी आदि इन्ही की दी गई मानी जाती हैं।सात प्रकार के सुरों से इनका स्मरण किया जाता है। इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती हैं। सप्तविध स्वरों का ज्ञान देने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है। वीणावादिनी सरस्वती ने संगीतमय जीवन जीने की प्रेरणा है। वीणा बजाने से शरीर एकदम स्थिर हो जाता है। इसमें शरीर का हर अंग समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है। सामवेद के सारे विधि-विधान केवल वीणा के स्वरों पर बने हुए हैं।सरस्वती के सभी अंग सफेद हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्वगुणी प्रतिभा स्वरूप है। देवी भागवत के अनुसार सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो पूजते हैं। कमल गतिशीलता का प्रतीक है।

यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है। लेखक कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति पैदा होती है। इसके अलावा मां सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक, चिंताएं और मन का संचित विकार भी दूर होते हैं।इस तरह वीणाधारिणी मां सरस्वती की पूजा आराधना में मानव कल्याण का समय जीवनदर्शन के लिए है। याज्ञवल्क्य वाणी स्तोत्र, वशिष्ठ स्तोत्र आदि में सरस्वती की पूजा व उपासना का वर्णन है। एक दृष्टांत के अनुसार कुंभकर्ण की तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मा उसे वरदान देने पहुंचे, तो उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कुछ भी न करें, केवल बैठकर भोजन ही करे, तो यह संसार उजड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने सरस्वती को बुलाया सारद प्रेरितासुमति फेरी। मागेसि नींद मास षट् केरी। यह कहकर उसकी बुद्धि विकृत करा दी। परिणाम यह हुआ कि वह छह माह की नींद मांग बैठा। इस तरह कुंभकर्ण में सरस्वती का प्रवेश उसकी मौत का कारण बना।

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Wednesday, July 5, 2017

माता सरस्वती की जन्म कथा ?

पुराणों में माता सरस्वती के बारे में भिन्न-भिन्न मत मिलते हैं। पुराणों में ब्रह्मा के मानस पुत्रों का जिक्र है लेकिन जानकारों के अनुसार सरस्वतीजी ब्रह्माजी की पुत्रीरूप से प्रकट हुईं ऐसा कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है | एक अन्य पौराणिक उल्लेख अनुसार देवी महालक्ष्मी (लक्ष्मी नहीं) से जो उनका सत्व प्रधान रूप उत्पन्न हुआ, देवी का वही रूप सरस्वती कहलाया। हालांकि इस पर शोध किये जाने की जरूरत है कि माता सरस्वती किसकी पुत्री थी।


सरस्वती उत्पत्ति कथा  : हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों 'सरस्वती पुराण' (यह पुराण 18 पुराणों में शामिल नहीं है) और 'मत्स्य पुराण' में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव 'मनु' का जन्म हुआ। कुछ विद्वान मनु की पत्नीं शतरूपा को ही सरस्वती मानते हैं। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।  

मत्स्य पुराण में यह कथा थोड़ी सी भिन्न है। मत्स्य पुराण अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कालांतर में उनका पांचवां सिर शिवजी ने काट दिया था जिसके चलते उनका नाम कापालिक पड़ा। एक अन्य मान्यता अनुसार उनका ये सिर काल भैरव ने काट दिया था। 

कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया। सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि डाले रखते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारों दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं। सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम स्वयंभु मनु को जन्म दिया। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। लेकिन एक अन्य कथा के अनुसार स्वायंभुव मनु ब्रह्मा के मानस पुत्र थे।

Wednesday, March 9, 2016

Mata Saraswati in Japan


Goddess Benzaiten And Mata Saraswati

Benzaiten presides over words, speech, eloquence, music and knowledge is said to have evolved from Goddess Saraswati who entered Japan along with Buddhism, 
which travelled first to China and then to Japan.

Japanese children pray to Mother Benzaiten for success in their studies. There are hundreds of Benzaiten temples througout Japan, and there is a particularly famous one in  Inokashira Park, Tokyo.


Note
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2.These social pages are handled by her devoted sevadars.

3.To experience her divine grace, Bhakti Sandhyas and Shri Radhe Guru Maa Ji’s darshans are conducted every 15 days in Mumbai.

4.The darshans are free and open to everyone.

5.One may also volunteer to Mamtamai Shri Radhe Guru Maa’s ongoing social initiatives that include book donation drives, blood donation drives, heart checkup campaigns and financial support for various surgical procedures.

6.To participate in these charitable activities contact Shri Radhe Maa’s sevadar - admin@radhemaa.com
(Photo Courtesy – google)

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