Monday, January 29, 2018

महाभारत कथा : दुर्योधन ने भीम को पहुंचाया नाग लोक में

दुर्योधन ने अपने पिता धृतराष्ट्र से शिकायत की, ‘मैंने भीम को मारने की कितनी कोशिशें की, लेकिन किसी न किसी तरह से वह बच ही जाता है।’ यह सुन कर धृतराष्ट्र हैरान रह गए। महल के भीतर ही उनका पुत्र अपने चचेरे भाई को मारने की योजना बना रहा था। और वह भी तब, जब दोनों सिर्फ सोलह साल के थे।



शकुनी ने सिखाया दुर्योधन को चालें रचना

कुनि ने दुर्योधन को सलाह दी, ‘ऐसे काम नहीं बनेगा। अगर हम उसे महल के बाहर मारने की योजना बनाएं, तो वहां हम जो करना चाहेंगे, वह ज्यादा आजादी के साथ कर पाएंगे। महल में तुम्हें उसे चालाकी से मारना होगा, मगर तुम्हारा चचेरा भाई इतना शक्तिशाली है, कि उसे ऐसे मारना मुश्किल है।’ उसने आगे कहा, ‘शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ दिल के भाव को व्यक्त करने के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि मन में चल रही बातों को छिपाने के लिए भी किया जाता है। भीम से दोस्ती करो। उससे प्रेम के साथ पेश आओ। उसके साथ कुश्ती मत लड़ो, उसे गले लगाओ। उसे गुस्से से मत देखो, मुस्कुरा कर देखो। वह मूर्ख है, तुम्हारी बातों में आ जाएगा।’

इस तरह एक बहादुर, निर्भय. और एक सीध में सोचने वाला दुर्योधन धोखेबाज और छली बन गया। उसके अंदर हमेशा से जलन, नफरत और गुस्सा तो था, मगर धोखेबाजी उसे शकुनि ने सिखाई। इसके बाद दुर्योधन ने पांचों भाइयों, खास तौर पर भीम से दोस्ती कर ली। उन सभी को लगा कि दुर्योधन का हृदय परिवर्तन हो गया है, और वह उनसे प्रेम करने लगा है। सिर्फ सहदेव, जो पांचों में सबसे बुद्धिमान था, इस झांसे में नहीं आया और उसने दूरी बनाए रखी।

सिर्फ सहदेव समझते थे कौरवों की चालें

सहदेव को ऐसी बुद्धि कैसे मिली, इसके पीछे भी एक कहानी है। एक दिन जंगल में अलाव के पास बैठे हुए, उनके पिता पांडु ने अपने पुत्रों से कहा, ‘इन सोलह सालों में मैं न सिर्फ तुम्हारी माताओं से दूर रहा, बल्कि ब्रह्मचर्य की साधना करके असाधारण भीतरी शक्ति और बहुत ज्यादा दूरदर्शिता, परख तथा बुद्धि हासिल की है। मगर मैं कोई गुरु नहीं हूं। इसलिए मैं नहीं जानता कि इन गुणों को तुम लोगों तक कैसे पहुंचाऊं। जिस दिन मेरी मृत्यु होगी, तुम सब को बस इतना करना है कि मेरे शरीर से मांस का एक टुकड़ा लेकर खा लेना। अगर तुम मेरे मांस को अपने शरीर का एक हिस्सा बना लोगे, तो मेरी बुद्धिमत्ता अपने आप तुम्हारे अंदर पहुंच जाएगी और तुम लोगों को उसके लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।’

जब पांडु की मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार किया जा रहा था, तो भावनाओं के वशीभूत होकर लगभग हर कोई इस बात को पूरी तरह भूल गया। सिर्फ सबसे छोटे और विचारशील सहदेव ने जब एक चींटी को पांडु के मांस का एक छोटा सा टुकड़ा ले जाते देखा, तो उसे पिता की बात याद आ गई। उसने वह टुकड़ा चींटी से छीनकर खा लिया। इसके बाद उसकी बुद्धिमानी और शक्ति बढ़ गई।

कृष्ण का आदेश पाकर चुप रहे सहदेव

वह राजाओं के बीच एक ऋषि की तरह जी सकता था मगर कृष्ण ने भांप लिया था कि उसकी बुद्धिमानी भाग्य की धारा को रोक देगी। इसीलिए एक बार उन्होंने सहदेव को टोकते हुए उससे कहा – ‘यह मेरा आदेश कि कभी अपनी बुद्धि को प्रकट मत करना। अगर कोई तुमसे प्रश्न पूछता है, तो उसका उत्तर हमेशा दूसरे प्रश्न के रूप में देना।’

उस दिन के बाद से सहदेव हमेशा प्रश्नों के जवाब प्रश्नों से ही देते, जिन्हें बहुत कम लोग समझ पाते। उसे समझने वाले लोग उसकी बुद्धिमानी को देख सकते थे और जिन्हें ये प्रश्न समझ में नहीं आते थे, उन्हें लगता था कि वह सिर्फ हर चीज को लेकर अस्पष्टता और भ्रम पैदा करना चाहता है। एक पूरा शास्त्र इसी से निकला है, जिसे ‘सहदेव – बुद्धि’ कहा जाता है। आज भी दक्षिण भारत में अगर कोई ज्यादा चतुराई दिखाने की कोशिश करता है, तो कहा जाता है, ‘वह सहदेव बनने की कोशिश कर रहा है।’ क्योंकि लोगों को लगता था कि वह सवालों में जवाब देकर चतुराई दिखाने की कोशिश करते थे। मगर वास्तव में वह कृष्ण के आदेश का पालन कर रहे थे। जिससे सिर्फ बुद्धिमान लोगों को ही यह समझ आता था, कि वो उन्हें उत्तर देने की कोशिश कर रहा है। अन्य लोग ये बात नहीं समझ पाते थे।

पांडव फंस गए दुर्योधन की चाल में

सिर्फ सहदेव दुर्योधन के दिल में झांक सकते थे, जहां उसे सिर्फ जहर दिखाई दिया। बाकी चार भाई दुर्योधन के जाल में फंस चुके थे। दुर्योधन उन पर उपहारों की बरसात करता। भीम को सिर्फ एक ही उपहार की परवाह रहती थी – वो था भोजन। दुर्योधन उसे खूब खिलाता। भीम इतना पेटू था कि भोजन के सामने आते ही वह सब कुछ भूल जाता। जो उसे भोजन कराता, वह उसके लिए मित्र था। उसे हर समय भूख लगी रहती थी, इसलिए वह खाता रहा, खाता रहा और विशालकाय हो गया। एक दिन दुर्योधन ने पिकनिक पर चलने का प्रस्ताव रखा। शकुनि ने बहुत सावधानी से योजना बनाई। उन्होंने प्रमनकोटि नाम की जगह पर नदी के किनारे एक मंडप बनवाया। सभी लोग वहां गए और ढेर सारा भोजन परोसा गया। दुर्योधन ने मेजबान की भूमिका को खूब अच्छी तरह निभाया। उसने हरेक पांडव के पास जाकर अपने हाथ से उन्हें खिलाया। भीम को अकेले इतना भोजन परोसा गया, जितना बाकी सब ने मिलकर खाया। हर किसी ने खूब दावत उड़ाई। मूर्ख लोग दुर्योधन के इस बर्ताव पर मुग्ध थे – बस सहदेव एक कोने में बैठकर चुपचाप देखता रहा।

नाग लोक पहुंचे भीम :- 

भोजन के बाद जब मिष्ठान का समय आया, तो भीम को एक प्लेट भरकर मिष्ठान दिया गया। उसमें धीमे असर करने वाला एक खास जहर मिलाया गया था। भीम ने पूरी प्लेट साफ कर दी। फिर वे सब नदी में तैरने और मस्ती करने चले गए। कुछ देर बाद भीम पानी से बाहर निकला और नदी के तट पर लेट गया। बाकी लोग वापस मंडप में जाकर मजे करने लगे और आपस में कहानियां सुनाने लगे। कुछ समय बाद, दुर्योधन नदी तक वापस गया तो उसने भीम को आधी बेहोशी की हालत में पाया। उसने भीम के हाथ-पैर बांध कर उसे नदी में फेंक दिया। भीम नीचे डूबकर ऐसी जगह पहुंचा, जहां बहुत सारे जहरीले सांप थे।


No comments: