Tuesday, July 11, 2017

आखिर क्यूं आया था बलरामजी को गुस्सा?

महाभारत की कहानी तो सभी को पता है. इस कहानी में कृष्ण, अर्जुन और भीम के पराक्रम की कहानी तो सभी ने सुनी है लेकिन इस महाभारत के एक अहम किरदार बलदाऊ या बलरामजी भी थे. बलराम जी ही दुर्योधन के गुरु थे. बलराम जी के ही निरक्षण में भीम और दुर्योधन के बीच गद्दा युद्ध हुआ था. आइयें आज इस कहानी पर एक नजर डालें और इतिहास के इस महान व्यक्ति के जीवन पर एक नजर डालें:


कथा शुरु होती है भीम और दुर्योधन के युद्ध से. दोनों ही कवच पहनकर युद्ध के लिए तैयार हो गए। दुर्योधन भी सिरपर टोप लगाए सोने का कवच बांधे भीम के सामने  डट गया। गदाएं ऊपर उठी और दोनों भयंकर पराक्रम दिखाने लगे। कृष्ण ने अर्जुन से कहा भीमसेन को आज अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना चाहिए जो उन्होंने सभा में की थी कि मैं युद्ध में दुर्योधन की जंघा तोड़ दूंगा अब आगे..

अर्जुन श्रीकृष्ण का इशारा समझ गए। उन्होंने भीमसेन की ओर देखकर उनकी जंघाओं की तरफ इशारा किया। भीमसेन समझ गए। दोनों का युद्ध चलता रहा। दुर्योधन के थोड़ा कमजोर पडऩे पर भीमसेन की जंघाओं पर प्रहार किया। लेकिन यह युद्ध के नियमों के खिलाफ था। जब बलराम ने यह देखा कि दुर्योधन के साथ अधर्म किया जा रहा है तो वे अन्याय देखकर चुप न रह सके। उन्होंने कहा कि भीमसेन तुम्हे धित्कार है। बड़े अफसोस की बात है कि इस युद्ध के नियमों का पालन न करके आप नाभि के नीचे प्रहार कर रहे हें।

इसके बाद इन्होंने दुर्योधन की ओर दृष्टिपात किया, उसकी दशा देख उनकी आंखे क्रोध से लाल हो गई। वे कृष्ण से कहने लगे- कृष्ण दुर्योधन मेरे समान बलवान है इसकी समानता करने वाला कोई नहीं हे। आज अन्याय करके दुर्योधन ही नहीं गिराया गया है।  तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि जब दुर्योधन ने द्रोपदी के साथ र्दुव्यहार किया था तब भीम ने प्रतिज्ञा की थी कि वे अपनी गदाओं से दुर्योधन की जंघाओं को तोड़ देंगे।

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