इसलिए इस तिथि को सरस्वती जन्मोत्सव भी कहा जाता है। पुराणों में देवी सरस्वती के प्रकट होने की जो कथा है उसके अनुसार सृष्टि का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनायी सृष्टि को देखा तो उन्हें लगा कि उनकी सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत है। इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी।
अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी निराश और दुःखी हो गये। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया। ब्रह्मा जी की बातों को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि आप देवी सरस्वती का आह्वान कीजिए। आपकी समस्या का समाधान देवी सरस्वती ही कर सकती हैं।
भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती देवी का आह्वान किया। देवी सरस्वती हाथों में वीणा लेकर प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया। देवी सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा। इसी से संगीत के प्रथम सुर का जन्म हुआ।
सा स्वर के कंपन से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। माता सरस्वती का एक नाम यह भी है। हाथों में वीणा होने के कारण मां सरस्वती वीणापाणि भी कहलायी।
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