अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठते होंगे कि देवों के देव महादेव भोले बाबा की जटा पर चंद्रमा क्यों विराजता है। आखिर इसके पीछे क्या कारण है कि हर तस्वीर में, हर मूर्ति में शंकर जी के सिर पर चंद्र जरूर दिखाई देता है। ऐसे में आइए आज जानें शिव जी और उनके माथे पर विराजे इस चंद्रमा के बारे में....
रोहिणी ज्यादा खूबसूरत:-
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक शिव जी और चंद्रमा का गहरा नाता है। इसकी कहानी दक्ष प्रजापति की कन्याओं से भी जुड़ी है। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ हुआ था। जिसमें दक्ष की पुत्री रोहिणी ज्यादा खूबसूरत थी और उसे चंद्रमा का बेहद प्यार मिलता था। ऐसे में दक्ष की बाकी पुत्रियां अपने पिता से नाराज हो गईं।
च्रंद्र को श्राप दे दिया: -
इस पर स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के दक्ष पहले तो दुखी हुए लेकिन बाद में क्रोध में आकर च्रंद्र को श्राप दे दिया। दक्ष के श्राप के बाद चंद्र क्षय रोग से पीड़ित हो गए। वह इस रोग से बेहद परेशान हुए। उनकी सभी कलाएं भी खतम होने लगीं और मृत्युतुल्य कष्टों में घिर गए। इस पर एक दिन नारद जी ने चंद्र को सलाह दी कि वह भगवान आशुतोष की पूजा अर्चना करें।
आशुतोष जी की पूजा की:-
वही उन्हें इस श्राप से मुक्त करा सकते हैं। इसके बाद चंद्र ने मृत्युंजय आशुतोष जी की पूजा शुरू कर दी और उन्हें इस रोग से छुटकारा मिल गया। इतना ही नहीं भगवान ने उन्हें नया जीवन प्रदान कर अपने मस्तक पर विशेष स्थान भी दिया। जिससे शिव भक्तों को शिव जी की पूजा के साथ उनक माथे पर विराजे अर्द्ध चंद्र की पूजा करना जरूरी होता है।
रोहिणी ज्यादा खूबसूरत:-
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक शिव जी और चंद्रमा का गहरा नाता है। इसकी कहानी दक्ष प्रजापति की कन्याओं से भी जुड़ी है। कहते हैं कि दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ हुआ था। जिसमें दक्ष की पुत्री रोहिणी ज्यादा खूबसूरत थी और उसे चंद्रमा का बेहद प्यार मिलता था। ऐसे में दक्ष की बाकी पुत्रियां अपने पिता से नाराज हो गईं।
च्रंद्र को श्राप दे दिया: -
इस पर स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के दक्ष पहले तो दुखी हुए लेकिन बाद में क्रोध में आकर च्रंद्र को श्राप दे दिया। दक्ष के श्राप के बाद चंद्र क्षय रोग से पीड़ित हो गए। वह इस रोग से बेहद परेशान हुए। उनकी सभी कलाएं भी खतम होने लगीं और मृत्युतुल्य कष्टों में घिर गए। इस पर एक दिन नारद जी ने चंद्र को सलाह दी कि वह भगवान आशुतोष की पूजा अर्चना करें।
आशुतोष जी की पूजा की:-
वही उन्हें इस श्राप से मुक्त करा सकते हैं। इसके बाद चंद्र ने मृत्युंजय आशुतोष जी की पूजा शुरू कर दी और उन्हें इस रोग से छुटकारा मिल गया। इतना ही नहीं भगवान ने उन्हें नया जीवन प्रदान कर अपने मस्तक पर विशेष स्थान भी दिया। जिससे शिव भक्तों को शिव जी की पूजा के साथ उनक माथे पर विराजे अर्द्ध चंद्र की पूजा करना जरूरी होता है।
source :- https://bit.ly/2MDfS8q
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