Shri Radhe Maa - What Maa gave me
By Sanjeev Gupta
As spoken to Satish Purohit
For more details visit - www.radhemaa.com
परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी
देहली से लघभग डेढ़ घंटे के रेल रस्ते द्वारा सोनीपत पंहुचा जा सकता है | एक ठीक ठाक आबादी वाला क़स्बा, जो देश की राजधानी से सटा होने के कारण धीरे धीरे उन्नति प्रगति पर अग्रसर है |
'जय रहेजा' | उम्र लगभग 35 साल, गोरा चिटटा हसमुख नौजवान |
आज से दस साल पहले |
जैसे तैसे बी .ए. की पढाई कम्प्लीट हुई | पिता फुटपाथ पर केले का ठेला लगाकर परिवार का गुजारा चला रहे थे | पाच भाई - बहिनों में 'जय रहेजा' तीसरे नंबर पर था | बड़ी दो बेहेनों की शादी हो चुकी थी | एक छोटा भाई और एक बेहेन अभी पढाई कर रहे थे |
बी. ए. पास करने के बाद भी लघभग ३ साल से 'जय रहेजा' को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी | अगर कोई नौकरी मिली भी, तो उसमे मेहनत बहुत ज्यादा और आमदनी ना के बराबर | 'जय रहेजा' परेशांन था, तो उसके पिता उससे ज्यादा परेशान | इस विषय पर की जय कुछ कमाता नहीं घर में क्लेश रहने लगा | माँ बेचारी क्या करे, पति का पक्ष ले या बेटे का | इसी घुटन में बीमार रहने लगी | रोज रोज की घिच घिच से 'जय रहेजा' में हिन भावना बैठने लगी |
'जय रहेजा' दिन भर नौकरी की तलाश में भटक कर, एक श्याम भूखा प्यासा घर में घुसा तो पिता से तकरार हो गई | जब कुछ कमाता ही नहीं, तो फिर खाना कहा से आये | पिता ने खूब डाट दिलाई | जय रहेजा शुब्द भाव से घर से निकला |
पड़ोस में माता का जागरण हो रहा था | एक तरफ भंडारा चल रहा था | सच यह है कि 'जय रहेजा' सिर्फ पेट भरने के लिये भंडारा में घुस गया | भूख शांत हुई, तो कुछ समय भजन सुन लेने की इच्छा से वह जागरण पंडाल में पहुंचे गया |
माता के दरबार में 'जय रहेजा' ने पहली बार, पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' के दिव्य दर्शन किये | जागरण में एक वक्ता ने 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ' की महिमा का बरवान करते हुए, दर्शन मात्र से सभी का कल्याण होने की बात कही |
जय रहेजा ने मन ही मन प्रार्थना की, 'हे देवी माँ | भूक, बेकारी और मुफलिसी से कब छुटकारा मिलेगा?'
'जय रहेजा' के बगल में बैठे एक व्यक्ति ने पुछा, वह क्या काम-धंदा करता है? 'जय रहेजा' ने बताया | उस व्यक्ति ने कहा कि अगर जय रहेजा कल सुबह दहेली से उसका थोडा सामान लाकर दे तो उसे वह थोडा रकम दे सकता है | जय रहेजा फ़ौरन राजी हो गया |
जय रहेजा के अनुसार उस आदमी का इलेक्ट्रोनिक्स का कारोबार था | जय रहेजा | उसके लिये देहली से इलेक्ट्रोनिक्स पार्ट्स की डीलीवरी लाने लगा | 'जय रहेजा' को अच्छी इनकम तो हुई ही, इस दौरान वह इलेक्ट्रोनिक्स सामान के बारे में जानकर भी हो गया | कुछ इलेक्ट्रोनिक्स पार्ट्सवालोंसे अच्छी पहचान भी हो गई | कुछ रकम उधारी से उठाकर और कुछ सामान उधार पर लेकर जय रहेजा ने अपनी एक इलेक्ट्रोनिक्स की छोटी सी दुकान खोल ली | धंदा चल निकला |
लघभग पाच साल में ही 'जय रहेजा' सोनीपत में एक शानदार इलेक्ट्रोनिक्स सामान के शो-रूम का मालिक बन गया |
'जय रहेजा' दिन - रात काम में इतना बिजी हो गया था कि उसे खाने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी | मगर वह 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ' के दरबार में जाने की फुर्सत निकाल ही लेता | वह 'देवी माँ' जी का शिष्य बन गया था | जहाँ भी, जिस शहर में भी, किस के भी घर में 'देवी माँ' की चौकी हो वह, पूर्ण श्रद्धा से वहा पहुचता है | इस गुरुपूर्णिमा पर जय रहेजा सोनीपत से मुंबई आया | अपने अति बिजी शेडुअल के बावजूद वह एक सप्ताह यहाँ रहा और उसे पूज्य 'श्री राधे माँ भवन 'में सेवा की आज्ञा भी हुई | जय रहेजा का मानना है कि एक जागरण में केवल दूर से ही 'देवी माँ' जी के दर्शन किये और सिर्फ एक प्रार्थना - मात्र से ही उसके सभी दुःख दूर हो गये | वह प्रति क्षण 'राधे शक्ति माँ' जी का गुणगान करते नहीं थकता | जय रहेजा की तरह सभी भक्तो की मनोकामना पूर्ण हो | जय 'श्री राधे शक्ति माँ' | (निरंतर)
"शादी के बाद उस भक्त का पूरा परिवार............" अविनाश वर्मा भावुक स्वर में बोला, " अपने समधीयोंके से साथ यहाँ 'देवी माँ' के दर्शनो के लिये आया |" "किसी ने सच ही कहा है ..............." मैं अपना ज्ञान बधारने, "बच्चे अक्सर माँओं को भूला जाते है, मगर माँए अपने बच्चों क़ी हर भूल-गलती को भुलाकर सदा उनपर ममता क़ी बरसात करती है | " (निरंतर -------')
“मेरा किराये का रूम बहुत ही खस्ता हाल में था ? पोलिस्टर टूट टूट कर गिर रहा था | फर्श में जगह जगह गद्दे थे | मैंने मकान मालिक से मुरममत करवाने के लिए बारबार मिन्नत की | एक रात मैं ‘देवी माँ ’ भवन में जाकर रोने लगा | मैंने ‘देवी माँ ’ से एक ही प्रार्थना की, माँ मुझे रास्ता दिखाओ, सुबह उठा तो मकान मालिक आया | उसने कहा की उसके पास टाइम नहीं है, मैं स्वयं ही रूम की मरममत करवा लूं , जो खर्चा आयेगा मकान मालिक मुझे दे देगा | यही टर्निंग पॉइंट था | ‘देवी माँ’ ने मेरी प्रार्थना काबुल की | मैंने दुकान से तीन दिन की छुट्टी ली | घर रेपैरिंग का मटेरिअल इकखटा किया और मिस्त्री बुलाकर ले आया | लेबरकी जगह मैं खुद ही काम कर रहा था | मैंने इस प्रकार मजदूरी की दिहाड़ी बचने की भी सोची | मैंने बड़ी तबियत से रूम की टूट -फुट ठीक की | मेरे पडोसी ने जब काम देखा तो बोला, ‘यार , मेरे रूम की भी मुरामत करनी है| मैंने मटेरिअल , मिस्त्री की दिहाड़ी आदि का बजेट बनाया और फिर अपनी बचत जोड़कर उसे बजेट दिया | वह मान गया | उसके बाद गल्ली में पांच - सात मकानों की मरमत का काम मिला | मेरे काम की तारीफ़ होने लगी . मैंने कपडे की दुकान वाली नौकरी छोड़ दी | मैं नियमित रूप से दिल्ली वाले ‘राधे माँ ’ भवन में जाकर हाजरी लगाता था | ‘देवी माँ ’ की आसिम –आपर कृपा दृष्टि हुई | मैंने ठेकेदार बन गया | पहले मरममत का काम मिलता था | अब अन्य मकान और कोठी निर्माण का काम भी मिलने लगा | मैं पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' का बार - बार धन्यवाद करता हूँ | उनकी मेहेरबानी हुई | आज दिल्ली में जगह जगह प्रोजेक्ट्स चल रहे है | कभी इस साईट पर तो कभी उस साईट पर भागना पड़ता है | लेकिन फिर भी …..” राजीव बंसल ने , “फिर भी ” पर जोर दिया | “फिर भी यहाँ नियमित रूप से माँ की हाजरी में आता हूँ | कितना भी बीसी शेडुअल क्यूँ न हो, दोपहर की फलाइट पकड़ता हूँ | यहाँ आता हूँ , ‘देवी माँ ’ के दर्शन प्राप्त करता हूँ, और सुबह की जल्दी वाली फलाइट से वापिस दिल्ली लौट जाता हूँ | ‘देवी माँ ’ का आभारी हूँ | भाईसाहब , सब कुछ मिल गया है | अब तो एक ही तम्मना है , टूटे चाहे सारा जग टूटे , ‘देवी माँ ’ का द्वार न टूटे ”
तभी एकाएक बच्ची उठकर बैठ गयी | महिला ने इशारे से बच्ची को सो जाने को पुछा | बच्ची ने इन्कार में दाए बाए सर हिलाया |
Part 24
देहली से लघभग डेढ़ घंटे के रेल रस्ते द्वारा सोनीपत पंहुचा जा सकता है | एक ठीक ठाक आबादी वाला क़स्बा, जो देश की राजधानी से सटा होने के कारण धीरे धीरे उन्नति प्रगति पर अग्रसर है |
'जय रहेजा' | उम्र लगभग 35 साल, गोरा चिटटा हसमुख नौजवान |
आज से दस साल पहले |
जैसे तैसे बी .ए. की पढाई कम्प्लीट हुई | पिता फुटपाथ पर केले का ठेला लगाकर परिवार का गुजारा चला रहे थे | पाच भाई - बहिनों में 'जय रहेजा' तीसरे नंबर पर था | बड़ी दो बेहेनों की शादी हो चुकी थी | एक छोटा भाई और एक बेहेन अभी पढाई कर रहे थे |
बी. ए. पास करने के बाद भी लघभग ३ साल से 'जय रहेजा' को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी | अगर कोई नौकरी मिली भी, तो उसमे मेहनत बहुत ज्यादा और आमदनी ना के बराबर | 'जय रहेजा' परेशांन था, तो उसके पिता उससे ज्यादा परेशान | इस विषय पर की जय कुछ कमाता नहीं घर में क्लेश रहने लगा | माँ बेचारी क्या करे, पति का पक्ष ले या बेटे का | इसी घुटन में बीमार रहने लगी | रोज रोज की घिच घिच से 'जय रहेजा' में हिन भावना बैठने लगी |
'जय रहेजा' दिन भर नौकरी की तलाश में भटक कर, एक श्याम भूखा प्यासा घर में घुसा तो पिता से तकरार हो गई | जब कुछ कमाता ही नहीं, तो फिर खाना कहा से आये | पिता ने खूब डाट दिलाई | जय रहेजा शुब्द भाव से घर से निकला |
पड़ोस में माता का जागरण हो रहा था | एक तरफ भंडारा चल रहा था | सच यह है कि 'जय रहेजा' सिर्फ पेट भरने के लिये भंडारा में घुस गया | भूख शांत हुई, तो कुछ समय भजन सुन लेने की इच्छा से वह जागरण पंडाल में पहुंचे गया |
माता के दरबार में 'जय रहेजा' ने पहली बार, पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' के दिव्य दर्शन किये | जागरण में एक वक्ता ने 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ' की महिमा का बरवान करते हुए, दर्शन मात्र से सभी का कल्याण होने की बात कही |
जय रहेजा ने मन ही मन प्रार्थना की, 'हे देवी माँ | भूक, बेकारी और मुफलिसी से कब छुटकारा मिलेगा?'
'जय रहेजा' के बगल में बैठे एक व्यक्ति ने पुछा, वह क्या काम-धंदा करता है? 'जय रहेजा' ने बताया | उस व्यक्ति ने कहा कि अगर जय रहेजा कल सुबह दहेली से उसका थोडा सामान लाकर दे तो उसे वह थोडा रकम दे सकता है | जय रहेजा फ़ौरन राजी हो गया |
जय रहेजा के अनुसार उस आदमी का इलेक्ट्रोनिक्स का कारोबार था | जय रहेजा | उसके लिये देहली से इलेक्ट्रोनिक्स पार्ट्स की डीलीवरी लाने लगा | 'जय रहेजा' को अच्छी इनकम तो हुई ही, इस दौरान वह इलेक्ट्रोनिक्स सामान के बारे में जानकर भी हो गया | कुछ इलेक्ट्रोनिक्स पार्ट्सवालोंसे अच्छी पहचान भी हो गई | कुछ रकम उधारी से उठाकर और कुछ सामान उधार पर लेकर जय रहेजा ने अपनी एक इलेक्ट्रोनिक्स की छोटी सी दुकान खोल ली | धंदा चल निकला |
लघभग पाच साल में ही 'जय रहेजा' सोनीपत में एक शानदार इलेक्ट्रोनिक्स सामान के शो-रूम का मालिक बन गया |
'जय रहेजा' दिन - रात काम में इतना बिजी हो गया था कि उसे खाने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी | मगर वह 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ' के दरबार में जाने की फुर्सत निकाल ही लेता | वह 'देवी माँ' जी का शिष्य बन गया था | जहाँ भी, जिस शहर में भी, किस के भी घर में 'देवी माँ' की चौकी हो वह, पूर्ण श्रद्धा से वहा पहुचता है | इस गुरुपूर्णिमा पर जय रहेजा सोनीपत से मुंबई आया | अपने अति बिजी शेडुअल के बावजूद वह एक सप्ताह यहाँ रहा और उसे पूज्य 'श्री राधे माँ भवन 'में सेवा की आज्ञा भी हुई | जय रहेजा का मानना है कि एक जागरण में केवल दूर से ही 'देवी माँ' जी के दर्शन किये और सिर्फ एक प्रार्थना - मात्र से ही उसके सभी दुःख दूर हो गये | वह प्रति क्षण 'राधे शक्ति माँ' जी का गुणगान करते नहीं थकता | जय रहेजा की तरह सभी भक्तो की मनोकामना पूर्ण हो | जय 'श्री राधे शक्ति माँ' | (निरंतर)
Note -
Dear all, thanks for your overwhelming response, we will be sharing your experience with all the devotees of 'Shri Radhe Maa' very soon.
If you also wish to share your experience with all the devotees of 'Devi Maa' you can email us on sanjeev@globaladvertisers.in, we will get it published.
प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
Part 23
सिक्खों के पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहेब में कहा है -" कलयुग में कीर्तन परधाना |" गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महकाव्य श्री राम चरित मानस में लिखेते है - ' कलयुग केवल नाम अधरा | सभी प्राचीन ग्रंथो, ऋषि मुनियों तथा महापुरुषो ने भजन सत्संग को मानव जीवन में कल्याण का सर्वश्रेष्ठ साधना माना है | यही कारण है कि ममतामयी पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' को भजन कीर्तन सत्संग अतिप्रिय लगते है | भजन संगीत में मग्न पूज्य श्री राधे शक्ति मा को अनेक बार देखा गया है कि वे भजन गा रहे गायक से माइक लेकर स्वयं भजन गाने लगती है | 'श्री राधे माँ' भवन के पाचवे माला पर स्थित पावन गुफा में जो संगत 'देवी माँ' कि गुफा में निरंतर भजन प्रसारित होते रहते है, जिनको लय में मग्न होकर 'श्री राधे शक्ति माँ' कई बार ध्यान मुद्रा में नयन बंद कर भजन भक्ति में लीन हो जाती है | तो कई बार भावविभोर होकर नृत्य मुद्रा धारण कर अपने भक्तो को अदभूत लीलिए दिखलाती है | इन्हें भजन प्रसारण के दौरान भक्तजनो को पूज्य 'देवी माँ' की विभिन्न छवियों दर्शन होते है | जैसा कि सबको मालूम है 'श्री राधे शक्ति माँ' भवन में हर पंद्रह दिन बाद माता कि चौकी का आयोजन होता है | माता की चौकी में हजारो की संख्या में संगत उपस्थित होती है | यहाँ हिंदुस्तान ही नहीं विश्वभर में प्रसिद्ध भजन गायक अपनी भक्ति संगीत कि कला से पूज्य देवी माँ कि वंदना कर चुके है और निरंतर कर रहे है | प्रत्येक भजन - गायक 'देवी माँ' की हाजरी लगाने को लालायीत रहता है | जिस दिन उसे यहा भजन गाने का सु अवसर प्राप्त होता है | वह अपने आप को भाग्यशाली मानता है | यहा यह उल्लेख करना भी चाहूंगा कि एक कार्यक्रम में लाखो की पारिश्रमिक प्रप्ति वाले भजन गायक यहाँ मात्र सेवा भाव से अपनी प्रसूति देते है | पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' की सेवा में किये जाने वाले जागरण और माता की चौकी में आने वाले भक्तजन प्रत्येक पंद्रह दिन बाद दोहरा लाभ उठाते है | लगभग रात्रि के आठ बजे 'देवी माँ' के दिव्य दर्शन आरम्भ हो जाते है | प्रत्येक माता कि चौकी में अनेक कलाकार उपस्थित रहते है | बहुत बार ऐसा भी देखा गया है कि कलाकारों की संख्या अधिक होती है और समय सीमा सीमित | यहाँ आयोजक विचित्र परिस्थिति में होते है | एक एक भजन गायक जो दो - अढाई घंटे निरंतर गाने की क्षमता रखता है उसे केवल मात्र दो - या तीन भजन गाने को मिलते है | लेकिन भजन गायक इसे भी अपनी खुश किश्मती मानता है कि चलो पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' के चरणों में अपनी आस्था के फुल चढाने का अवसर तो मिला |
लघभग सात बजे सायं से ही 'श्री राधे माँ भवन' के ग्राउंड प्लोर स्थित हॉल में संगतो का प्रवेश शुरू हो जाता है | जैसे ही भजन कीर्तन आरंभ होते है, ठसाठस भरे हॉल में माता के भक्त भक्ति भाव में डूब जाते है | तालिय बजाते, मस्ती में झूमते गायक के संग-संग गाते हुए वे भक्तजन लम्बे समय तक भक्ति संगीत का आनंद लेते है | जैसे ही 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ' के दर्शनों का सिलसिला आरम्भ होता है हॉल में उपस्तिथ लोग सीढियों की तरफ अग्रसर होते है | जबकि हॉल के बाहर खड़ी संगत शीघ्रता से हॉल में प्रवेश कर भक्ति संगीत रस में डूब जाती है | यह सिलसिला देर रात तक चालू रहता है | संगत को एक से बढकर एक प्रतिभावान गायक का हुनर देखने सुनने को मिलता है, जबकि गायक कलाकार को श्रोताओं की कमी महसूस नहीं होती | इस दौरान गायक कलाकार पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' की अनेक लीलाओं का वर्णन कर भक्तोजानो को मा की दयालुता, ममता और करुणा अवगत कराते रहते है | बहुत से कलाकार अपनी आप बीती में 'देवी माँ' द्वारा उन पर किये गये उपकारो का वर्णन कर अपने भजनो के माध्यम से कृतज्ञन्यता दर्शाते है | भजन गायकों के साथ साथ साज बजाने वाले कलाकारो की प्रशंसा करना अति आवश्यक है | अपने अपने साज बजाने में निपुण ये गुणी कलाकार इसलिये भी प्रशंसा के पात्र है कि एक कार्यक्रम में लघभग आधा दर्जन भर गायक अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते है, परुन्तु ये वाद्य कलाकार निरंतर क्रमशः सभी कलाकारों की बिना थके बिना रुके संगत करते है | बहुत से कलाकार इन वाद्य कलाकारो की निपुणता के लिये भरी सभा में उनका गुणगान भी करते है | आज के लेख के अंत में पूज्य 'श्री देवी राधे शक्ति माँ' के दर्शन के लिये आने वाली संगत से निवेदन करना चाहूंगा की चौकी में बैठकर सीधे पाचवे माला पर जाने की जल्दबाजी नहीं करे | संगत के लिये आयोजीत किये जाने वाले इस कार्यक्रम में भक्ति संगीत का पूर्ण आनंद ले | मग्न होकर भजन सुने, भक्ति रस में गहरे डूब जाये और फिर आराम के साथ पूज्य 'देवी माँ' के दर्शन करने लिये पाचवी मंजिल पर स्थित गुफा में पहुचे | आपको एक अदभुत आनंद की अनुभति होगी | जय 'श्री राधे शक्ति माँ' |
Note -
Dear all, thanks for your overwhelming response, we will be sharing your experience with all the devotees of 'Shri Radhe Maa' very soon.
If you also wish to share your experience with all the devotees of 'Devi Maa' you can email us on sanjeev@globaladvertisers.in, we will get it published.
प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
Part 22
प्रत्येक पंद्रह दिन के बाद हजारो माँ के भक्तो को पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' के ममतामयी दुर्लभ दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त होना, दु:खी, गमजदा और समस्याग्रस्त भक्तों को अपनी समस्याए देवी माँ तक पहूँचाने का अवसर प्रदान करना और उन सबकी समस्याओ का निवारण होने की शुभ कृपा प्राप्त होने का अगर श्रेय किसी को मिलाता है तो वह है 'संजीव गुप्ता' |
एम एम मिठाइवाले श्री मनमोहन गुप्ता, मुंबई ही नहीं संपूर्ण भारत के अग्रवाल समाज में समाजसेवी, दानी और राष्ट्र भक्त के रूप में जाने जाते है | उन्ही श्री मनमोहन गुप्ता के होनहार प्रतिभाशाली एवं बहुमुखी व्यक्तित्व के मालिक है संजीव गुप्ता | युवा और उद्यमी संजीव गुप्ता आज से लघभग ९ वर्ष पूर्व पूज्य 'ममतामयी श्री राधे माँ' के एक कार्यक्रम मे मात्र दर्शन भाव से गये थे | पूज्य देवी माँ के दिव्य दर्शनों ने उनके भीतर एक अलौकिक प्रकाश भर दिया | 'हमारा बहुत बड़ा बिजिनेस है | बढ़िया मान-सन्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा हमारे पूज्य पिताश्री ने अथक मेहनत और प्रयासोसे प्राप्त की | सुख सुविधा की कोई कमी नहीं | कोई कठिनाई नहीं | कोई दुविधा नहीं | सब कुछ अच्छा ही अच्छा...............संजीव गुप्ता ने अपनी बात कही, 'लेकिन इन सबके बावजूद, न जाने क्या जीवन मे कुछ खाली सा लग रहा था | एक ऐसी अज्ञात कमी जो समझ मे नहीं आ रही थी, इसे कैसे पूरा किया जा सकता है | कुछ नीरसता कुछ उदासनीता और कुछ रिक्तता का वातावरण सदैव बना रहता था | इसी अनभिज्ञ ख़ुशी की तलाश संजीव गुप्ता को 'ममतामयी श्री राधे माँ' के सानिध्य में ले गई | पहले कार्यक्रम में, 'श्री राधे माँ' के ममतामयी दर्शन ने संजीव गुप्ता को अहसास कराया कि वो अज्ञात कमी जो उन्हें निरंतर महूसस हुआ करती थी, उसका समाधान मिल गया है | संजीव गुप्ता ममतामयी पूज्य श्री राधे शक्ति माँ के प्रत्येक कार्यक्रम मे भाग लेने लगे | मालाड पश्चिम स्थित एवरशाइन नगर से लेकर वाशी, विरार और मुंबई के अनेक स्थानों पर 'श्री देवी माँ' के भक्ति कार्यक्रम और दर्शन आयोजीत होते रहते थे | संजीव गुप्ता प्रत्येक कार्यक्रम में पूर्ण निष्ठा और समर्पण भाव से 'देवी माँ' के सेवक बनकर शामिल होते | 'ममतामयी श्री राधे माँ' ने अपने इस अनन्य भक्त के भक्ति और लगन को पेहेचाना| निरंतर सेवा का फल प्राप्त होने लगा | संजीव गुप्ता के भीतर की रिकता भरनी शुरू हुई | एक आनंद कि तरंग उनकी भीतर प्रवाहित होने लगी | संजूभैय्या के निरंतर आग्रह करने पर, उनकी भक्ति और निष्ठां को देखकर 'पूज्य श्री राधे शक्ति माँ', ने उनकी बिनती स्वीकार की और उन्होंने अपना आसन 'श्री राधे माँ भवन '- बोरीवली में तय किया | गुप्ता परिवार तो जैसा धन्य हो उठा | पुरे का पूरा परिवार 'पूज्य देवी माँ' की कृपा से निहाल हो गया | एम. एम. हाउस अब 'श्री राधे शक्ति माँ' का पावनधाम बन गया | देश - विदेश मे फैले 'देवी माँ' के असंख्य भक्तो को 'श्री राधे माँ भवन' का पता मिला तो उनका आना शुरू हो गया | संजूभैय्या ने 'ममतामयी राधे माँ' के दर्शनार्थीयों के लिये रहने, ठहरने और भोजने जलपान की व्यवस्था की | जैसे जैसे संगतो की संख्या बढ़ती जा रही थी व्यवस्था में कुछ बदलाव करना आवश्यक था | बहुत विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि महीने में एक चौकी 'ममतामयी श्री राधे माँ' के दर्शनों के लिये रखी जाए | लेकिन सांगतो को यह माह की अवधी बहुत ज्यादा लम्बी लगी, अतः प्रत्येक दुसरे शनिवार यानि पंद्रह दिनों के बाद दर्शनों का दुर्लभ अवसर प्राप्त होने लगा | संजूभैय्या के तन मन में 'पूज्य श्री राधे माँ' की कृपा लहर निरंतर प्रवाह कर रही है | संजूभैय्या का मानना है कि जब से पूज्य 'राधे माँ' के चरण उनके निवास स्थान मे पड़े है, उनके जीवन का जैसा प्रत्येक उद्देश सार्थक हो रहा है | संजूभैय्या कि एडवरटायसिंग कंपनी ग्लोबल अड़वरटायझरस जो दिन दौगुनी रात चौगुनी प्रगति कर रही है , यह सब पूज्य 'देवी माँ' का आशीर्वाद है | संजूभैय्या का मानना है कि उनके परिवार उनके कारोबार और यश मान सन्मान मे निरंतर प्रगति का श्रोत पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' की असीम अनुकम्पा और दया दृष्टी है | संजीव गुप्ता अपनी आप बीती बताने के बाद अंत मे इन पंक्तिया को गुनगुनाने लगते है, "मेरी झोली छोटी पड़ गई रे, इतना दिया मुझे माता |"
Note -
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प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
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Part 21
'श्री राधे माँ भवन 'में ममतामयी दया की मूरत पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' के दर्शन के लिये लगी कतार में, मैं धीरे धीरे पौड़ी पौड़ी चढ़ता हुआ' दूसरी मंजिल तक पंहुच चूका था |
एक कोने में खड़े तंदुरस्त अच्छे कद काढ़ी वाले वक्ती को देखकर मैंने एक हाथ उठाकर धीरे से 'जय माता दी' कहा | उसने स्नेहयुक्त मुस्कान के साथ मेरी जय माता का उत्तर दिया | वह लगभग पैतालीस के आसपास की उमर का चमकते चेहरेवाला व्यक्ति था | उसके गले में पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' क़ी फोटो वाला परिचय पत्र लटक रहा था | "आपका परिचय जान सकता हूँ?" मैंने मैत्रीपूर्ण स्वर में पूछा | "अविनाश..............." वह पंजाबी लहजे में बोला, "अविनाश वर्मा | लुधानिया से आया हूँ |" "अविनाश जी .........." मैंने हाथ आगे बढाया, "मेरा नाम भगत है | आपका व्यक्तित्व देखकर मेरा मन किया क़ी में आपसे कोई बात करू |" "जरुर करो ........" वह गर्म जोशी से हाथ मिलाते हुए बोला," क्या बात करेंगे ?" "आप' देवी माँ' के दर्शन के लिये कब से आ रहे है ?" मैंने उत्सुक स्वर में पूछा | 'मैंने तो 'देवी माँ' का तब से पुजारी हूँ .................." अविनाश गर्वित स्वर में बोला, " जबसे 'देवी माँ' जी पंजाब मुकेरिया के आश्रम में थे | वहा 'देवी माँ' का बहुत ही आलीशान मंदिर है| मुकेरिया ही क्यों देश के अनेक शहर में इनके आश्रम है | देहली में बहुत ही भव्य मंदिर है | यहाँ ..........जब से मुंबई में 'देवी माँ' ने अपना आसन लगाया है, तब से में लगातार बिना नागा आ रहा हूँ | " "कई बार 'देवी माँ' का विशेष आदेश होता है और में दौड़ा चला आता हूँ |" "अच्छा.............? मैंने हर्ष और हैरानी भरे स्वर में पूछा," 'देवी माँ' विशेष आदेश से भी बुलाती है ?" " हाँ " अविनाश एकदम भावुक हो उठे, "एक बार 'देवी माँ' का संदेश मिला, फ़ौरन मुंबई पहुँचो" हांलाकि मैं बहुत बिजी शेडूल में था मगर 'देवी माँ' का आदेश मिलते ही फ़ौरन फ्लाइट पकड़ कर यहा पंहुचा | " मै अत्यंत दिलचस्पी से उनकी आप बीती सुन रहा था | ''देवी माँ' ने बुलाकर सामने बिठालिया -----' अविनाश ने बात आगे बढाई,' उन्होने बताया कि आज से सात-आठ साल पहले उनका एक भक्त अपने परिवार के साथ दर्शन के लिये आया था | उस भक्त के साथ एक बहुत ही प्यारी भोली सी लड़की थी जो उनकी बेटी थी | 'देवी माँ' ने उस भक्त को वचन दिया कि इस कन्या क़ी शादी वे स्वयं करेगी | वह भक्त अपनी रोजी- रोटी क़ी तलाश में आसाम चला था | अपने कारोबार में व्यस्त रहने लगा | उसकी बेटी शादी लायक हो गई | उस भक्त ने अपनी बेटी क़ी शादी तय करदी | तारीख भी निश्चित हो गई | मगर वह भक्त 'देवी माँ' द्वारा कही बात शायद भूल गया | मगर 'देवी माँ' तो अंतर्मायी है | अपने भक्तों क़ी हर बात को जानती है | उन्होंने कहा 'अविनाश | मेरे उस भक्त क़ी बेटी क़ी इसी हप्ते शादी है, और तुम्हे जाकर शादी का सारा इंतजाम करना है | भगत जी 'देवी माँ' ने दुल्हन के लिये शादी का जोड़ा, दुल्हे के वस्त्र तथा अनेक सामान मुझे सोंपे और कहा कि शादी का पूरा इंतजाम अच्छे से होना चाहीये |"
" वाह sss वाह", मेरा मूंह हैरानी से खुला रह गया | मै अवाक अविनाश क़ी तरफ ताक रहा था | "भगत जी --------" अविनाश श्रद्धा भरे स्वर में बोला, "मै 'देवी माँ' का आदेश और शादी का सारा सामान लेकर आसाम पंहुचा | 'देवी माँ' ने मुझे पूरा address भी समझाया था | मैं उस भक्त के निवास स्थान पर पंहुचा | " " वह भक्त तो हैरानी से पागल हो गया | 'देवी माँ' क़ी कृपा, दया देखकर उसका पूरा परिवार ख़ुशी के आंसू बहाने लगा और 'देवी माँ' को लाखों दुआए देने लगा | मैं वहां शादी तक रहा | 'देवी माँ' क़ी असीम कृपा से इतनी शानदार शादी हुई कि पूछो मत | शादी क़ी पुरे गाँव में चर्चा हो रही थी | " "जय हो 'देवी माँ'|" मैंने श्रद्धा से हाथ जोड़े, "इसे कहते है माँ क़ी ममता |" 
Note -
Dear all, thanks for your overwhelming response, we will be sharing your experience with all the devotees of 'Shri Radhe Maa' very soon.
If you also wish to share your experience with all the devotees of 'Devi Maa' you can email us on sanjeev@globaladvertisers.in, we will get it published.
प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
Part 20
मैं एक सीढ़ी और ऊपर चढ़ गया | जैसे जैसे मैं पांचवी मंझिल के करीब पहुँच रहा था, मेरे मन में अजीबसी ख़ुशी, व्यग्रता और आनंद की मिली जुली लेहर दौड़ने लगी थी | सीढियों में एक छोटे से चकोर स्थान पर बिछे हरे रंग के कारपेट पर बैठे एक व्यक्ति ने फ़ौरन अपनी नोट -बुक बंद की और फुर्ती से उठकर मेरे आगे पंक्ति में घुस गया |
उसकी उम्र लगभग पचास के करीब थी, लम्बा सलेटी कलर का कुर्ता, सर के बाल गर्दन तक झूल रहे थे | चेहरे पर कुछ सोचने के भाव |
“जय माता दी ” मैंने परिचय जानने की इच्छा से वार्तालाभ शुरू किया , “आपका नाम जान सकता हूँ, मित्रवर?”
उसने तनिक गर्दन मेरी तरफ घुमाई | उसकी खोई खोईसी आखों में कुछ तो था, जिसने मुझे उसके प्रति सहानभूति दिखने को मजबूर किया |
“सुनिए मित्रवर ” उसने मेरी टोन में उत्तर दिया, “आया हूँ उल्लासनगर से , पांच बजे निकला था घर से, खूब जोर से पानी बरसे, भीग गया निचे -ऊपर से ,फिर भी बिना चिंता फ़िक्र से, हो गया मेरा यहाँ तक आना , मकसद , ‘देवी माँ ’ के दर्शन पाना, कम है मेरा फ्रूट का ठेला लगाना, शौक मेरा लिखना - गाना , नाम है मेरा विश्वनाथ मस्ताना!”
“वाह वाह ” मैंने हर्षभरित हलकी हसी के साथ कहा , “क्या शायरी भरे अंदाज़ में परिचय दिया है ! क्या बात है|”
“बात तो सिर्फ ‘राधे शक्ति माँ ’ की है ” वह दर्शनिक अंदाज़ में बोला , “हम तो भाई, मुर्ख इंसान है, बुराइयों की खान है, सच्ची बात से अनजान है, हर जगह पर बैमान है, न हमारा दीन है न ईमान है, अपने स्वार्थ की पहचान है, इसीलिए परेशान है | ये तो ‘श्री राधे शक्ति माँ’ मेहरबान है, जो रखती हमारा ध्यान है, दे देती वरदान है, ये विश्वनाथ मांगने आया चरणों में स्थान है |”
“बहुत खूब ” मैं प्रशंसात्मक स्वर में बोला , “ कुछ और बताओ अपने बारे में, मस्ताना जी |”
“बचपन मेरा गरीबी में बीता ” मस्ताना विश्वनाथ फिर शुरू हो गया , “लिखी -पढाई पूरी नहीं हो पाई , एक झोपडी में उम्र बिताई, बूढ़े मेरे बाप और भाई, गरीबी और आभाव मैं ऐसी मार लगाई , ज़िन्दगी अभी तक संभल ना पाई , एक फ्रूट के दूकान पर नौकरी करता था, रात - दिन मरता था, फिर भी पापी पेट पूरा नहीं भरता था, अपने नसिब को कोसा करता था , आँखों से पानी भरता था | दर दर की ठोकरों से कुछ न कुछ सिखाने लगा , बस इस्सी लिए कविताएं लिखने लगा |”
“ठीक केह रहे हो ”, मैंने गर्दन हिलाई , “जब भीतर बहुत कुछ एखटा होकर बहार निकलने को मचलता है , तभी आदमी शायरी करता है |”
“एकदम सही फ़रमाया भाई ” विश्वनाथ मस्ताना का स्वर भारी हो गया, “मुझे जहाँ भी किसीने बताया मैं जाने लगा, मंदिर , मस्जिद , दरगाह , पीर फकीर सभी को शीश झुकाने लगा, कभी तो दिन फिरेंगे अपने आप को समझाने लगा, लेकिन अपनी मेहनत से कभी मुह नहीं तोडा, फ्रूट की दूकान पर नौकरी करना नहीं छोड़ा, क्योंकि अगर नौकरी नहीं करता तो कहा जाता ? क्या पीता क्या खाता ?”
विश्वनाथ मस्ताना अपने दिल का दर्द जैसे आज ही सुनाने को बेताब था, “ फिर एक दिन क़यामत हुई , एक ‘देवी माँ’ के भक्त से मुलाकात हुई उसे ‘श्री राधे माँ ’ भवन में हो रही चौकी की बात हुई , मैं यहाँ आने लगा तो ‘देवी माँ’ की रहमत की बरसात हुई | दुःख की रात गयी , सुख की प्रभात हुई , मेरा मुकदर मुस्कुराने लगा , ‘देवी माँ ’ ने दया दृष्टी ऐसी की , मैंने नौकरी छोड़ दी और अपना फ्रूट का ठेला लगाने लगा|”
“मज्जा आ गया ” मैंने मुस्कुराते हुए कहा ,”इसमें तुम्हारी श्रद्धा और तुम्हारा विश्वास, तुम्हारी लगन भी तो मिली हुई है |”
“भाई साहब , श्रद्धा , विश्वास और लगन का ही तो सारा खेल है, वरना हर चीज़ फ़ैल है ” मस्ताना गंभीर स्वर में बोले, “ मैं आतुट विश्वास और भावना के साथ यहाँ आता हूँ, अपनी बात ‘देवी माँ ’ तक पहुंचता हूँ और फिर निश्चिन्त हो जाता हूँ | यह भी ‘राधे शक्ति माँ ’ का ही तो प्रताप है, आज एकदम सुखी मेरे माँ -बाप है, टूटी -फूटी झोपडी को पक्का बना लिया है, बिजली और जल लगवा लिया है, जो भी चाहा यहाँ से पाया है, तंगी और मुसीबतों से निजात पाई है | आराम से घर गृहस्थी चल रही है, मगर उमर भी ढल रही है |”
फिर विश्वनाथ मस्ताना का स्वर द्रवित हो उठा, “अब तो बस एक ही अरदास लगाने आया हूँ ! बिटिया सायानी हो गयी है, उसकी कहीं शादी-लगन हो जाए, यह वर पाने आया हूँ | ‘देवी माँ’ तो अन्तर्यामी है | मेरी मुराद जरूर पूरी करने वाली है | मेरी झोली भरने वाली है | मैं इसी विश्वास और यकीं से केह सकता हूँ की ‘राधे शक्ति माँ ’ अपना जलवा दिखलाएगी, मेरी हालत पर तरस खाएगी और इसमें संशय भी नहीं है की वो घडी शीघ्र ही आएगी | मेरी बिटिया की शादी जल्दी से जल्दी हो जायेगी | सबका बनती बिघडे काम है , ‘राधे शक्ति माँ ’ को प्रणाम है ’|"
मैं नत मस्तक होकर उसकी अरदास जल्द पूरी होने की प्रार्थना करने लगा |
(निरंतर ..)
Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
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Part 19
एकाएक मुझे जोरों से भूक सताने लगी | हालाकी मैं सीधे तीन माला पर जाकर भंडारा ले सकता था, परन्तु मैंने निश्चित किया की पहले ‘श्री राधे शक्ति माँ' के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लूँगा, फिर भंडारे से प्रशाद ग्रहण करूँगा |
मैं फर्स्ट फ्लोर पे स्थित वेटिंग हॉल से निकल कर सीढियों की तरफ बढा | वहा मौजूद दर्शनों की कतार में खड़े भक्तों ने जोर से जयकारा लगाया | मैंने ऊपर जाने के लिए जैसे ही सीढ़ी के तरफ कदम बढ़ाये, लाल ड्रेस पहने एक महिला सेवादार ने हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा, “जय माता दी, भगत जी ! कृपया लाइन से आइये |"
लाइन में खड़े एक दर्शनार्थी ने तनिक आगे सरक कर मेरे लिए जगह बनाई | मैं स्वयं को लाइन में अड़जस्ट किया | हलाकि मेरे पीछे खड़े आढे से व्यक्ति के चेहरे पर कडवाहट के भाव प्रकट हुए मगर मैंने जैसे ही क्षमा -याचना की दृष्टि से उनकी तरफ देखा | उसने मेरा कन्धा थपथपाकर ‘जाने दो’ जैसी अदा से हाथ झटका |
“आप कहाँ से आये है, मालिक ?” मैंने आगे खड़े सज्जन से पुछा |
“राजौरी गार्डेन …” उसने मेरी तरफ गर्दन घुमाई .. “दिल्ली से … और आप ?”
“मैं यही से हूँ ….” मैंने हसकर कहा , “आप कब आये दिल्ली से?”
“आज ही आया हूँ …” वह व्यस्त स्वर में बोले, “और सुबह जल्दी के फलाइट से वापिस जाना है ! ‘देवी माँ ’ के दर्शन करना ही मेरा ख़ास काम है, जिसके लिए आया हूँ |”
“आप का नाम जान सकता हूँ ?” मैंने सहज भाव से पुछा|
“ राजीव बंसल !” उसने एक सीढ़ी ऊपर चढ़ते हुए कहा, “ ठेकेदारी करता हूँ ! सच पूछोगे तो मैं आज जो भी हूँ, ‘देवी माँ’ के बदोलत ही हूँ |”
मैं भी एक सीढ़ी आगे बढ़ा |
“आज से दस साल पहले मैं कुछ भी नहीं था | माँ-बाप ने शादी कर दी | एक कपडे की दुकान पर सिर्फ तेरहसौ (1300) महीने के नौकरी करता था | घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था | ऊपर से किराये के मकान में रहते थे | मकान क्या? एक कमरा कह लो, उसी में किचन , बाथरूम और बेडरूम | मेरे माँ -बाप पलंग पर सोते थे , हम निचे गद्दा बिछाते थे | तंगी और आभाव से घिरे जैसे तैसे जिंदगी घिसट रहे थे | फिर मुझे एक बंदा दिल्ली में स्थित ‘राधे माँ ’के भवन में ले गया | मैंने वहा ‘देवी माँ ’ से अपनी कंगालीसे छुटकारा पाने की गुहार की | तीन –चार महीने तक मैं लगातार ‘श्री राधे माँ’ भवन जाता रहा |”
राजीव बंसल भावुक हो उठा |
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राजीव बंसल एकदम विभोर भाव से ताली बजाकर ‘श्री राधे माँ ’ का नाम जप रहा था | उसके धीमे धीमे गाने की आवाज़ मेरे कानो में मिश्री घोल रही थी |
एक –दो करके हमारी कतार निरंतर सिधिया चढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी |हम दूसरी मंजिल पहुंचे …|
(निरंतर )
Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
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Part 18
परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी
'श्री राधे माँ भवन' के फर्स्ट फ्लोर स्थित विशाल वेटिंग हॉल में श्री मनमोहन गुप्ता जी के संग आया था | उन्होंने लड़के को मेरे लिये कॉफ़ी लाने का इशारा किया और स्वयं पसर हल्की झपकी लेने लगे | तभी दुबई से हिम्मत भाई एअरपोर्ट से सीधे यहाँ चले आये थे | कॉफ़ी पिने के दौरान उन्होंने अपनी आप- बीती सुनाई | अपने बचपन के लंगोटिया यार और बिजनेस पार्टनर के दगा करने के बावजूद कैसे वे 'देवी माँ' की कृपा से अपने मुकाम पर पहुंचे | वाकई प्रेरणादायक प्रसंग था |
"चलो .................." हिम्मत भाई ने तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा, " मैं 'देवी माँ' की हाजरी लगाने जा रहा हूँ| उसके बाद भंडारा लूँगा | बहुत भूख लगी है ! तुम चल रहे हो ??"
"आप चलो हिम्मत भाई..............' मैंने अंगड़ाई लेने का उपक्रम किया,' में थोडा ठहेरकर ...............'
हिम्मत भाई ने दरवाजे के पास पहुँच कर अभिवादन करते हुए हाथ हिलाया | तभी एक महिला ने वेटिंग हॉल में प्रवेश किया | हिम्मत भाई ने तनिक पीछे हटकर उन्हें रास्ता दिया और फिर स्वयं दरवाजे से बाहर निकल गये |
अभी अभी हॉल में प्रविष्ट हुई महिला की गोद में लगभग तीन -साढ़े तीन साल की बच्ची थी, जो शायद सोने के लिये कसगसा रही थी और वह महिला उसे हौले हौले थपथपा रही थी |
श्री मनमोहन गुप्ता एकाएक उठे | हथेली के पिछले भाग से मुह पोछा और फिर खेद भरी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा | मैंने उन्हें सो जाने का इशारा किया | उन्होंने इन्कार में सर हिलाते हुए निचे चल रही 'माता की चौकी' में जाने की इच्छा जतलाते हुए एक हाथ पाजामे की जेब में ढूसा और दरवाजे से निकल गये |
आगंतुक महिला ने सोफे में बच्ची को लिटाया और स्वयं पास बैठे गई | उसे थपथपाते हए मेरी तरफ देख कर बोली, " जय माता दी | "
"जय माता दी | " मैंने बच्ची पर एक निगाह डाली, " बहुत प्यारी बच्ची है | "
" देवी माँ ने दी है |" वह पूर्ववत थपथापते हुए श्रद्धा भरे स्वर में बोली," हमने इसका नाम भी राधिका रखा है | वो क्या है ना, दरअसल इसका सोने का टाइम हो गया है | बच्ची है ना ! नींद तो आयेगी ही |"
मैंने सिर हिलाया | " आपने दर्शन किये..............." उसने भवे हिलाकर पूछा | "मैंने अभी दर्शन के लिये ही जा रही थी वो क्या है ना इसी बच्ची को आशीर्वाद दिलवाला था | भाई साब ! बड़ी मिन्नत करके, बहुत मांग-मांग कर मैंने देवी माँ से कन्या ली है | मेरी ससुराल वाले तो बहुत चिल्लाते थे कि क्या सारा दिन बिटिया बिटिया की रट लगाये रहती हो | पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ी रही | यह मेरी पहली संतान है | वोह क्या है ना, हर कोई पहली संतान के रुप में बेटा ही मांगता है | मैंने हमेशा से यही इच्छा रखी कि मेरे यहाँ पहली बेटी ही हो | क्यू भाई साहब ? बेटियों में क्या बुराई है |"
"बेटिया ही नहीं होगी.............."मै अपना ज्ञान बधारने लगा, " तो माँ कहा से होगी | बहिन कहा से होगी | बीवी कहा से होगी | मामी कहा से होगी | बेटी ही तो सृष्टि का आधार है | "
"वो क्या है ना ..............." महिला का स्वर उत्साह से भर गया, "लोग बेटा बेटा कर के अपने बेटो को सर चढ़ा लेते है और फिर वही बेटे अपने माँ बाप की दुर्गति करते देखे गये है | कन्याए तो बेचारी सदा अपने ससुराल में भी माँ बाप की खैर मांगती रहती है | अब देवी माँ को ही देख लो | वो भी तो किसी की बेटी है ही ना | कैसे लाखो लोगोका कल्याण कर रही है | ना कुछ चढावा मांगती है | ना कुछ और मांगती है | बस हमेशा देती ही रहती है | " मैंने सहमति में सर हिलाया|
"वोह क्या है न भाई साहब...?" महिला ने स्वर थोडा धीमा किया, " हर किसी को मुह माँगा तो मिलता नहीं है न | मुकद्दर भी तो आखिर कोई चीज़ है | अपनी मुकद्दर में लिखा है स्कूटर और आप होंडा- सिटी के लिए शिकायत करे की 'देवी माँ' स्कूटर क्यों दिया, होंडा सिटी क्यों नहीं दी?? यह कोई बात हुई? ज़रा यह भी तो सोचो कुछ लोगो के पास तो स्कूटर क्या सायकल तक भी नहीं है| फिर? 'देवी माँ' से शिकायक क्यों? देखो भाई साहब ! वो क्या है न, एक स्कूल में किसी क्लास में 80 बच्चे है | उन 80 बच्चो में से एक बच्चा फर्स्ट क्लास ला रहा है | 95 % ला रहा है | और उसी क्लास में एक बच्चा फ़ैल हो गया है | तो क्या कहोगे ? टीचर ने कुछ गड़बड़ किया | अगर टीचर ने गड़बड़ किया है तो एक बच्चा फर्स्ट क्लास क्यों आया? वो क्या है न भाई साहब, काबिलियत भी तो कुछ होती है | टीचर के पढ़ने में मीन मेख मत निकालो, अपनी मेहनत , अपनी लगन को भी देखो | 'देवी माँ क्या दे रही है और उसको इतना दे रही है, मेरे को कम क्यों दे रही है -यह मत देखो | यह देखो की श्री राधे शक्ति माँ' के दरबार से कुछ मिल तो रहा है | खाली तो नहीं जा रहा ना | क्या में ठीक कह रही हूँ?" मैंने सहमति में सर हिलाया |
"दर्शन के लिए चले? " महिला ने स्नेहिल भाव में पुछा |
बच्ची ने दोनों बहे उठाकर माँ की तरफ देखा |
महिला ने बच्ची को गोद में उठाया, मेरी तरफ देखकर अत्यंत धीमे स्वर में "जय माता दी" कहा और तेज कदमो से चलती हुई दरवाजे से बाहर निकल गयी | (निरंतर ....)
Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
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Part 17
मनमोहन गुप्ता बात करते करते थोडा और पसर गये | थकान के कारण उनकी झपकी लग गई लगती थी | एक लड़का कॉकी का कप दे गया | तभी वेटिंग हॉल मे एक व्यक्ति प्रविष्ट हुआ जिसके हाथ मे बड़ा सा ट्रवेलिंग बैग था | बैग पर लगे स्टीकर चुगली कर रहे थे की वह किसी फ्लाइट से आया था | उसने एक साइड मे बैग को रखा | उंध से रहे मनमोहन गुप्ता के पाव छुने का उपक्रम करने के बाद मेरी बगल मे बैठते हुए उन्होंने कॉफ़ी देकर लौट रहे को इशारे से बुलाया | '" बेटा ....." आगुन्तक सज्जन ने बड़े थके से स्वर में कहा ' एक कप चाय मुझे भी मिलेगी क्या ? " "चाय नही कॉफ़ी है ....|" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया "वह भी बिना शक्कर की | यही ले लो |" "अरे .... " उन्होंने अपनत्व से मेरा हाथ पीछे ठेला "आप पियो | बेटा | मुझे भी कॉफ़ी ला दो ! और सुनो ! उनकी कॉफ़ी की बची हुई शक्कर मेरी कॉफ़ी मे डाल देना | मे तेज शक्कर पीता हु भाई ! " लड़का गेट से बाहर निकल गया | आगंतुक ने जेब से रुमाल कर चेहरा पोछा | "कही बाहर से ....... " मैंने यूँही बात शुरू की, "सीधे सही चले आ रहे हो |" "हां |" वह सोफे की पीठ पर सर टिकते हुए थके स्वर में बोला, "दुबई से आ रहा हूँ | एक तो फ्लाइट लेट, ऊपर से मुंबई का ट्राफिक ........तौबा! तौबा!" मैंने सहानभूति भरे भाव से सिर हिलाया | निचे हॉल मे कोई नया भजन गायक पुरे जोश के साथ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था | उसके गाने की धीमी धीमी आवाज अच्छी लग रही थी | "मेरा नाम हिम्मत भाई हैं |", वह सज्जन मेरी तरफ देखते हूए बोले, "आपका परिचय ?" "मेरा नाम भगत हैं ....." मै कॉफ़ी का घुट भरने के बाद तसल्ली के साथ सिर हिलाकर बोला, "देवी माँ के दर्शनो के लिये आया हूँ|" "मै भी देवी माँ के दर्शन के लिये सीधा दुबई से चला आ रहा हूँ ........." हिम्मत भाई ने मेरी आँखों में झाँका " 'देवी माँ' की अपार कृपा हुई जो मै आज फिर से खड़ा हो गया हूँ भगत जी, वरना एक बार तो मै सड़क पर ही आ गया था |" लड़का कॉफ़ी दे गया | हिम्मत भाई ने कृतज्ञ भाव से लड़के को धन्यवाद दिया और फिर कॉफ़ी का एक बड़ा सा 'घूंट' भरा | "मेरा पालघर में स्टील के बर्तन बनाने का कारखाना हैं ............' हिम्मत भाई स्वयं ही बोलने लगे,' बहुत बड़ा बिजिनेस था मेरा | मैं एक्सपोर्ट का भी धंदा करता हूँ | दुबई...बर्लिन...शारजाह में मेरे स्टील के बर्तन बहुत एक्सपोर्ट होते थे | मेरे एक बचपन का पडोसी और साथ पढ़ा एक दोस्त 'नवीन अरोड़ा' जो मेरा बहुत करीबी था .... अक्सर मुझसे धंदे में साथ रखने के लिये रिक्वेस्ट किया करता था | मैंने दोस्ती का लिहाज करते हूए दुबई में अपना एक ऑफिस खोलकर उसे वहा का इंचार्ज बना दिया | वह और उसका परिवार तो जैसे मेरे पाव धोकर पिने को राजी थे | दुबई में पहेले साल नवीन अरोड़ा ने काफी मेहनत की और पहेले साल से दुगुने आर्डर भिजवाये | मैंने प्रोडक्शन बढ़नी शुरू की | मै यहा रात दिन बिजी हो गया और नवीन अरोड़ा वहा पर | मै लगातार माल भेजता जा रहा था | उधर नवीन अरोड़ा खूब मेहनत कर रहा था ....."
हिम्मत भाई ने एक घुट में पूरी कॉफ़ी खत्म की और कप रख दिया | "मै प्रोडक्शन के लिये उधार में रॉ मटेरिअल उठाता रहा, माल भेजता रहा " हिम्मत भाई का स्वर एकदम कडवा होने लगा, "लेकिन मै बेवफुफ़ की औलाद, पुरे तीन साल तक इस बात से लापरवाह रहा की वहा से पेमेंट की कोई चर्चा तक नहीं की! और उसने भी नहीं की ! मेरी गुडविल के कारण रॉ मटेरिअल उधारी पर देने वाले डीलरो ने जब पेमेंट के तकाजे शुरू किये तो मैंने नविन अरोड़ा को पेमेंट भेजने को कहा ! " हिम्मत भाई कुछ क्षण खाली कप को घूरते रहे एकाएक मेरी तरफ देखने के बाद वह गंभीर स्वर में बोले " दुबई से नविन अरोड़ा ने हा भाई आज भेजता हूं, कल भेजता हूं से कुछ दिन निकाले! और फिर एकाएक उसने फोन उठाना बन्द कर दिया ! में अवाक मुंह बाये उसकी तरफ तक रहा था ! " नवीन अरोड़ा ने मेरा फोन लेना बंद कर दिया.........' हिम्मत भाई एक एक शब्द चबाते हूए बोले, " बल्कि मेरे से हर प्रकार का संपर्क ही बंद कर दिया | मैंने दो महीने तक बहुत कोशिश किया | उधर लेनेदरो के तकजो ने मेरा जीना हराम कर दिया | फैक्ट्री में लेबर तन्खवाह मांग रहे थे | बिजली का बिल इतना बढ गया था की आज कनेक्शन कटा कि कल कटा | मतलब ये भगत जी में पैसे पैसे का मोहताज हो गया | और उधर नवीन अरोड़ा ने साल में मुझे सैतीस करोड़ का चुना लगा दिया | कितने का .................?" 'सैतीस करोड़ ड ड ड ड ड ' मेरे मुह से बोल नही फुट रहे थे | "सैतीस करोड ! " हिम्मत भाई ने दो - तींन बार सिर हिलाया, "उसने अपने परिवार को दुबई में बुला लिया | अपना अलग से ऑफिस खोल लिया | और में सड़क पर आ गया |" उसकी आँखे भर आई | 'मेरा बंगाल गिरवी | मेरी फ़क्टरी गिरवी | गाड़ी ऑफिस सब बिक गई | परिवार में मेरे हालत यहा थी कि हम रोटी को मोहताज हो गये | भगत जी ! मैं पागलों जैसी स्थिति में पंहुच गया था | न नहाने कि सुद्ध न खाने का होश | कभी कबार शोकिया एकाध पैग लगाने वाला में हिम्मत भाई अब बेवडा हिम्मत भाई के नाम से मशहूर हो गया | मेरे सभी पार दोस्त - सगेवाले मुझसे से बात तक करने से कतराने लगे | लोग मुझे देखेते ही दूर भागते कि उधार ना मांग ले | अकेला बैठा अपने आप से बाते करता था | लोग समझने लगे हिम्मत भाई का दिमाग सटक गया है | यहा हालत गई थी मेरी और मेरे परिवार की | मेरी घरवाली जो बिना गाड़ी के चलती नही थी, नौकर चाकरो की लाइन लगती थी घर में...............मगर अब मेरी घरवाली टिफिन बनाकर लोगो के घरो में पहुचाती थी और परिवार का गुजरा चला रही थी | मै सहानुभति भरे भाव से उसे तक रहा था "तभी किसी ने मेरा उद्दार करवाया|" हिम्मत भाई का स्वर कोमल होने लगा, "मुझे इधर -उधर भटकने से बचाने के लिये वह 'देवी माँ' के दर्शन के लिये ले आया | सच पूछो तो मै टाइम - पास भाव से यहा चला आया | लाइन में लगा | रुटीन में दर्शन किये भंडारा लिया और वापिस चला | मगर मेरे मन के किसी कोने में से एक आवाज आई कि हिम्मत भाई.......तेरी दुर्गति दूर होगी तो यही होगी | भगत जी | दुसरे दिन सन्डे था | मै सुबह - सुबह 'श्री राधे माँ' भवन के सामने फुटपाथ पर बैठे गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा | मुझे नही मालूम, मै क्या प्रार्थना कर रहा था | मगर कर रहा था | अब मेरा रुटीन बन गया | मै यूही टहलते हूये आता, राधे माँ जी के बाहर लगे होर्डिंग को प्रणाम करता और काफी देर तक फूटपाथ पर ही बैठा रहता |" हिम्मत भाई की आप बीती सुनते सुनते मै द्रवित हो उठा था |
"फिर क्या हुआ?" मैंने व्यग्र स्वर में पूछा | "चमत्कार !" हिम्मत भाई ने हाथ झटका, "उसी फूटपाथ पर मेरा एक पुराना व्यापारी मिल गया | एक वक्त था जब वह मुझसे थोडा -थोडा माल उधार लिया करता था | उसने मुझे पहचाना | मुझे गले से लिपटा लिया | मालूम पड़ा कि वह आज बहुत बड़ा बिजनेस मैन बन गया | था | उसने मेरी कहानी सूनी | हौसला दिया | मुझे बिना इंटरेस्ट के रक्कम देकर फिर से फैक्टरी शुरु करने को हिम्मत दी | भगत जी, पूज्य 'राधे शक्ति मा' की अनुकम्पा से मेरी गाड़ी फिर पटरी पर आ गई | मेरा व्यापार फिर संभाला | मेरी दारू वारू सब छुट गई | मै नियमित रूप से यहा 'देवी माँ' के दर्शन को आने लगा | मेरा बंगला जो गिरवी पड़ा था, उसे छुड़ाया | फैक्टरी भी गिरवी पड़ी थी, उसे छुड़ाया | मैंने फिर से दुबई में ऑफिस खोला | मेरा बिजनेस धीरे धीरे उसी पोजीशन में लौट आया है जैसे आजसे सात साल पहले था | मै दुबई से फ्लाइट पकड़ कर पहले यहा आया हू | पहले देवी माँ की दया दृष्टी पाउँगा, फिर भंडारा लेकर घर जाऊंगा |" मैंने सहज स्वर में पुछा , "और.............उस नवीन अरोड़ा ............तुम्हारे पार्टनर ...............उसका क्या हुआ?" हिम्मत भाई ने छत की तरफ देखते हूए कहा," देवी माँ उसे सदबुद्धि दे !" (निरंतर.............) Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
Part 16
तभी सीढ़ीया चढ़ते हुये 'मनमोहन गुप्ता' दिखाई दिये ! सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने, तनिक भारी भरकम शरीर और सर पर सफ़ेद चकाचक गांधी टोपी | मुझे देखकर उनके चेहेरे पर हैरानी के भाव उमरे, "अरे ! तुम अभी तक इधर ही बैठे हो| कमर में दर्द होने लगा जायेगा ! क्या समझे ? चलो मेरे साथ |" में उनके पीछे पीछे सीढिया चढते हुए फर्स्ट फ्लोर वोटिंग हॉल में प्रविष्ठ हुआ | एक बड़े से सिनेमा हाल जितने ऊँचे और भव्य सजावट से सज्जित वेटिंग हॉल में लगभग बीस आदमी बैठने लायक आरामदायक सोफा लगाये गये थे | सामने एक सिनेमा हॉल जैसी बड़ी व्हाइट स्क्रीन लगी थी | जिसके आगे एक बड़ा सा LCD टीवी सेट भी था | एक तरफ परम श्रद्धेय 'श्री राधे शक्ति माँ' की भव्य फोटो सुसज्जित थी | छत पर विशाल गोलाकार सीनरी थी जिसमे नीले रंग में तारो जैसी कुछ चमक आसमान में रात्रि का भ्रम पैदा कर रही थी | "बैठो....? " मनमोहन गुप्ता एक सोफा में लगभग पसर से गये,' बैठो, भाई !" मै तनिक संकुचते हुए उनसे थोडा फासला बनाते हुए हौले से बैठ गया | एक लड़का फ़ौरन पानी लेकर हाजिर हुआ | मैंने तुरंत पानी का गिलास लिया | में काफी देर से इसकी आवशकता महसुस कर रहा था | "क्या पिओगे ? ' मनमोहन गुप्ता ने अलसाये स्वर में पूछा,"चाय ? कॉफ़ी ?" "कॉफ़ी" मैंने पानी पीकर खाली गिलास लड़के की तरफ बढाया, " बिना शक्कर की!" उन्होंने लड़के की तरफ देखा | लड़के ने समज जाने वाली मुद्रा में सर हिलाया | और बाई तरफ स्थित दरवाजे से बाहर निकल गया | मनमोहन गुप्ता ने मेरी तरफ देखा और हौले से मुस्कराये, "कविताओ में रूचि है तुम्हारी?" 'हाँ", मैंने सिर हिलाया | "मैंने बहुत सी कविताए लिखी हैं..............." वो तनिक गंभीर स्वर में बोले| 'अनेक कवी सम्मेलनो में शिरकत कर चूका हूँ | मेरे कविताओ के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं !" मैंने प्रसंशा और हैरानी भरे निश्चित भाव से उनकी तरफ ताका | "अब मेरी नई कविता के कुछ अंश सुनाता हु ! सुनोगे ?" "'शोर !" मै फ़ौरन बोला,"क्यों नहीं !" मनमोहन गुप्ता ने कुछ क्षण छत्त की तरफ ताका और फिर विशिष्ट अंदाज में बोले,' माँ जो नही तो कुछ भी नही, बस माँ से घर होता है | " 'वाह !' मैंने दो-तीन बार ढोढी को छाती की तरफ झुकाया ,' माँ से घर होता है !" "सच मनो बेटा |" मनमोहन गुप्ता का स्वर भारी हो उठा, "जब जब दर्शन वाला शनिवार आता है, हमारा पुरे परिवार में जैसे उत्साह उमंग और हर्ष का समंदर लहराने लगता है | देवी माँ के चरण जब से हमारे घर में पड़े हैं, हम तो धन्य हो गये है | हमारा पूरा परिवार अपने आपको भाग्यशाली समजता है देवी माँ जी की अनंत कृपा हम पर दिन रात बरसती रहती है ! हर पल हर घडी जैसे त्यौहार का सा माहौल बना रहता है ! रोजाना दूर दराज से अनेक माँ के दर्शन के पुजारी आते ही रहते हैं ! घर आये अतिथियों की सेवा में घर के नौकर चाकर से लेकर सभी सदस्य बिड से जाते है | बाहर से आनेवाली संगत के आलावा भी यहा के बहुत से परिवार देवी माँ के विशेष दर्शन को आते रहते हैं, हर वक्त मेला सा लगा रहता हैं ! बहुत अच्छा लगता हैं |" मैंने सिर हिलाया | 'कई बार -----' मनमोहन गुप्ता सामने घूरते हूए बोले, "देवी माँ जी बाहर चले जाते है ! अभी कुछ दिन पहेले दो महीने के लिये पंजाब गये थे, उससे पहेले London - Switzerland आदि स्थानों पर अपने भक्तो को आशीर्वाद देने गये थे | जब देवी माँ यहाँ नही होते, तो यूँ लगता है जैसे सारा संसार सुना सुना है | हलाकि घर में परिवार के सभी सदस्य होते है | नौकर, सेवादार, चौकीदार, वॉचमन, रोसाईये ------ वैसे के वैसे ही पुरे के पुरे - मगर ----" उन्होंने एकदम खाये से स्वर में कहा 'मगर लगता है घर सुनसान है | कोई रोनक नही | कोई चहल-पहल नही | सभी लोग एक मशीन की तरह अपनी अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे होते हैं | सच पूछो तो दिल लगता ही नही | एक रुखी रुखी बैचनी जैसे हर वक्त घेरे रहती है ! कोई धंदा सूझता ही नही | कुछ करने को ही नही | न खाने में मन लगता है न कही जाने पर ! और तो और सोना भी ठीक ढंग से नही होता ! समझ सकोगे मेरे फिलिंग को?" में क्या बोलता ? "इसलिये............."मनमोहन गुप्ता ने सर को तनिक नचाते हूए कहा, "मेरी नई कविता का शीर्षक है ...............माँ से घर बनता है ! ' "बहुत सुन्दर |" मैंने ताली बजाने का उपक्रम किया,' अब समझ में आता है भाई साहब | जब ह्रदय में कोई उथल पुथल होती है तो नई कविता का सृजन होता है | क्या बात कही है | माँ से घर बनता है |" "माँ जो नही तो कुछ भी नही .................... उन्होने हाथ अंदाज से लहराया, "माँ जो नही .............." "माँ जो नही तो कुछ भी नही, सूना सूना सब कुछ लगता, इक खालीपन सा हर वक्त ही उदास मन से उफनता है ....... माँ से घर बनता है |" (निरंतर ...)
Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
Sanjeev Gupta
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Part 15
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Part 14
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Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में
Sanjeev Gupta
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Part 13
मैं अभी छोटी माँ और टल्ली बाबा यानि गौरव कुमारजी के बारे में सोच रहा था की दर्शन करने वाली संगत ऊपर की और बढ़नी शुरू हो गयी और वे दोनों महिलाये मोड़ मुड़ने के बाद दृष्टि से ओंज़ल हो गई |
तभी डार्क- ग्रे कलर का सफ़र सूट पहने, सर पर लाल रुमाल बंधे, लगभग ६०-६२ वर्षीय एक सेवादार मेरी बगल में आकर उकड़ बैठ गया . उसने दोनों हाथो से अपनी पिंडलिया दबाने का उपरक करते हुए मेरे तरफ एक फीकी मुस्कान के साथ देखा |
"लगता है थक गए हो अंकल !" मैंने हाथ आगे बढ़ाये, "में पाँव दबा दू?"
"अरे नहीं यार !" उसने मेरी कालिया थमते हुए कहा, " में तो बस यूँ ही तुम्हे बैठे देख यहाँ आ गया .. दर्शन के लिए उपदर क्यों नहीं जा रहे हो?"
"वो क्या है ना अंकल!" मैंने ठोढ़ी खुजलाते हुए कहा, "थोड़ी भीड़ कम हो जाये तो खुले दर्शन करना चाहता हूँ | साथ में माता की चौकी का आनंद भी ले रहा हूँ | आप कब से सेवा कर रहे हो?"
"याद नहीं...." वह सोचने लगे, "शायद पांच साल से ... छह भी हो गये होंगे|
"अंकल" मैंने उनके निकट सरकते हुए तनिक धीमे स्वर में पुछा, "मेरी कुछ पर्सनल समस्या है. दो 'माँ की भक्त' यहाँ आपस में छोटी माँ के बारे में चर्चा कर रही थी... आप थोडा विस्तार में बता सकते है 'छोटी माँ' के बारे में?"
"देखो बेटे" वह आत्मीय स्वर में बोले, "निचे लगे किसी भी होअर्डिंग पर आपको टल्ली बाबा यानि गौरव कुमार का मोबाइल नंबर मिल जायेगा | तुम गौरव कुमार से मुलाकात का समय मांग लो. 'छोटी माँ' परम श्रधेय पूज्य राधे माँ का ही एक स्वरुप है | आपको यहाँ या तो सुबह 6 बहे तक या फिर शाम को 6 -7 बजे .. जो भी टाइम आपको मिले, आना है | 'छोटी माँ' का आसन एक अलग कमरे में लगता है. वह सिवाय 'छोटी माँ' के दूसरा कोई भी नहीं होता | आप जो भी पूछना चाहे, वह बात आप 'छोटी माँ' से कहिये. खुल कर कहिये, तुम्हरे द्वारा कही बात या तुम्हारा परिचय अगर आप छाए तो एकदम गोपनीय रहेगा | यानि की आप की तकलीफ को 'छोटी माँ' सुनेगी | गौर से सुनेगी | और तुम यकीं करो, काफी हाड तक तो 'छोटी माँ' ही तुम्हारी समस्या का निवारण कर देगी | उसके बाद भी तुम्हारे बार 'देवी माँ' तक पहुचेगी |"
"यह 'छोटी माँ' के वचन कब कब होते है?" मैंने जिज्ञासा भरे स्वर में पुछा |
"यह तो संगत पर निर्भर है... " वह कंधे उचका कर बोला, "अगर संगत की संक्या अधिक रहती है तो हफ्ते में दो बार, नहीं तो एक बार तो निश्चित है ही |"
" .. 'छोटी माँ'.. कुछ प्रवचन या सत्संग करती है?" मैंने तनिक गर्दन को तिरछा किया |
" 'छोटी माँ' प्रत्येक आये हुए भक्त की बात सुनती है |" वह थोडा तरंतुम भरे स्वर में बोला, " देखो बच्चे | आज जिसे देखो, वह अंदर ही अंदर किसी न किसी बात से परेशां है | किसी की परेशानी बड़ी है तो किसी की छोटी | बेटा, चेहरे पर मत जाना | हर खिला हुआ, चमकता हुआ चेहरा दिखने में तो यूँ लगेगा की यार इस आदमी के जैसा सुखी और खुशहाल शायद कोई नह है | मगर अंदर के किसी कोने में कही न कही एक टीस, एक गम, एक निराशा उसे निरंतर कचोटती रहती है | बेटा ! एक बात और ज़िन्दगी में एक बात अपने दिमाग में कील की तरह गाडलो | अपने दुःख, अपनी तकलीफ, कभी अपने लगने वाले लोग, को मत बताना | अपने रिश्तोदारो सगेवाले, को तो हरगिज़ नहीं बताना |सुनो, ये दुनिया ऐसी है बेटा | तुम्हारा कोई कितना भी नजदीकी क्यों न हो, 70 % लोगो को आपकी तकलीफ से कुछ लेना देना नहीं होता | बाकि बजे 30 % आपकी तकलीफ सुनकर ऊपर से सहानभूति जताएंगे मगर भीतर ही भीतर पुलकित होंगे की ठीक हुआ, इसके साथ ऐसा ही होना चाहिए था |
में मंत्रमुग्ध उसका चेहरा तक रहा था |
"अपनी 'छोटी माँ' से कहो |" वह पुरजोर शब्दों में बोला, " ..'छोटी माँ' न केवल आपकी तकलीफ को गौर से सुनेगी बल्कि उसके निवारण का रास्ता भी बतायेंगी | और फिर जब आपकी बात 'छोटी माँ' तक पहुँच गयी, समझो 'देवी माँ' तक पहुँच गयी |"
"फिर उसके बाद.............. " मैंने उसकी आखों में झाँका |
"एक तारा बोले... " वह जोर से हँसा, " फिर उसके बाद 'देवी माँ' जाने भाई | और जब 'देवी माँ' पर विश्वास है.. भरोसा है.. तो बाकि क्या रह गया ? मौजा ही मौजा |"
वह टल्ली बजने लगा |
(निरंतर .... )
Note - प्रिय देवी माँ के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्त के अनुभव को कलमबदध किया हैं | माँ की लीलाये आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं | आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रत्रिक्रिया की प्रतीक्षा में
Sanjeev Gupta
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Upcoming Chowki - Next chowki is on 13th August, 2011 - For further details Please visit - http://shriradhemaa.blogspot.com/p/shri-radhe-maa-chowki-details.html
Part 12
"बहुत अच्छे !" मेरे कानो में एक महिला स्वर गूंजा | मैंने हडबडा कर सर घुमाया | तालिया बजाने का उपक्रम कर रही एक दर्शनार्थी महिला मेरे पीछे कड़ी शिव चाचा के विचार सुन कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी | मेरे एकाएक घुमने से वह भी मथोडा हडबडा कर पीछे सरकी ! दर्शानोके के लिए ऊपर जा रही थी संगतों की कतार में खड़ी एक अन्य महिला से वह टकराते बची | उस महिला की उम्र लगभग 50 के करीब होगी हलके ग्रीन कलर का पंजाबी सूट पहने उस महिला के हाथ में एक थैली थी जिसमें से एक लाल चुनरी का थोडा सा हिस्सा बहार उभरा दिखाई दे रहा था | थैली में शायद कुछ और भी उपहार थे जो 'देवी माँ' को भेटे करने थे | लाइन में पहले से खड़ी महिला ने थोडा सरक कर उस महिला को स्थान दिया, जो शिव चाचा की बात कर रहे थी | "बहुत उचित और जरुरु व्यवस्था हुई है |" थैली वाली महिला ने दो तीन बार दाए बाए सर हिलाया , "इसकी जरुरत भी थी |" दूसरी महिला जो लगभग चालीस वर्ष की थी, तनिक दुबली पतली मगर अच्छे परिवार की सदस्य लग रही थी, उसने सहज भाव से पुछा, " आप कहा से आई है, बेहेन ?" "घाटकोपर से ...."थैली वाली महिला बोली, "मेरे नाम अर्पिता मूलचंदानी है..| मैं हर दर्शनों के दिन आती हूँ |" " मैं बांद्रा से आई हूँ !" दुबली पतली महिला ने अपना हाथ आगे बढाया, " मेरा नाम नीलिमा है | नीलिमा शर्मा|" "नीलिमा ....." अर्पिता ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया, "आपको शिव चाचा द्वारा बताई व्यवस्था कैसी लगी ..." "ठीक है ..." नीलिमा सपाट स्वर में बोली, " ये लोग यहाँ व्यवस्थापक है | जैसा करेंगे हम दर्शानार्थोने को वैसे ही करना पड़ेगा ना |" "वो बात नहीं है..." अर्पिता ने सर झटका, " देखो! यह कार्ड के कलर द्वारा प्रत्येक शनिवार को दर्शन लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था का मैं तो पुरजोर समर्थन करती हूँ | पूछो क्यों ? देखो मैं घाटकोपर से शाम ५-६ बजे के करीब चलकर यहाँ लगभग आठ - सादे आठ बजे पोहोचती हूँ | कई बार नौ भी बज जाते है | लाइन में लगने के बाद मुझे लगभग 800 या या इससे उपार का नंबर मिलता है | आप मानेगी ? पिचली दफा मैंने रात को डेढ़ बजे दर्शन किये | फिर भंडारा लिया | घाटकोपर में वापिस घर पोहोचते पोहोचते मुझे सुबह के चार बज गए | इस व्यवस्था से में दर्शन जल्दी पा जाउंगी | लाइन में अधिक देर खड़े रहना नहीं पड़ेगा | ज्यादा गर्दी नहीं होने के कारन 'देवी माँ' के दर्शन भी आची तरह से होंगे | भाई मेरे को तो यह व्यवस्था एक दम ठीक लगी ... क्यूँ भैया?" महिला ने मेरे तरफ आशाविंत निगाहों से देखा | "मेरे ख्याल से... " मैंने अनुमोदन भरे स्वर में कहा, " इस व्यवस्था का सभी का समर्थन करना चाहिए |" उसके चेहरे पर संतुष्ठी के भाव प्रगट हुए | अर्पिता ने होंठो ही होंठो में मुझे thank You और सीढियों के ऊपर की तरफ झाँका | "अर्पिता जी ..." नीलिमा ने तनिक चिंतित स्वर में कहा, " मेरी कुछ घरेलु परेशानिया है, जिससे में 'देवी माँ' को अपने मुह से बताना चाहती हूँ | मगर मुश्किल ये है, गुफा में प्रवेश करने के बाद एक तो वह सांगत काफी बड़ी तादाद में होती है, ऊपर से सेवादार भी ज्यादा रुकने से मनाई करते है | " "आप एक काम करे", अर्पिता ने भवे सिन्कोड़ी, "छोटी माँ से अपनी बात क्यूँ नहीं कहती?"
"छोटी माँ?" मैंने विचारपूर्वक निगाहों से उन दोनों की तरफ देखा | छोटी माँ कोन है? मैंने मन ही मन में प्रश्न किया | "छोटी माँ कोन है?" यही सवाल प्रत्यक्ष रूप से नीलिमा ने तनिक व्यग्र स्वर में पुछा | "छोटी माँ ............." अर्पिता ने हाथ हिलाते हुए कहा, "परम श्रधेय श्री देवी माँ का ही प्रतिरूप है " "वो जो गुलाबी ड्रेस और गुलाबी चुनरी में देवी माँ की बाजु में खड़े रहती है ?" नीलिमा ने तनिक विचारपूर्वक स्वर में पुछा | "Correct ! एकदम बरोबर पहचाना !" अर्पिता ने सहमति में सर हिलाया, "छोटी माँ को कही गयी बात समझो देवी को ही कही गयी है | देखो, बहेन | 'देवी माँ' मात्र दृष्टी मात्र से अपनी सांगत का कल्याण करती है | मगर फिर भी, आपकी कोई गंभी समस्या है .. आप किसी उलझन में है, किसी चिंता में घिरे है ... या मन का कोई बोझ आपकी ज़िन्दगी में तकलीफे घोल रहा है, तो पहले यूँ करे 'गौरव कुमार से समय ले..." "यह 'गौरव कुमार' कं है?" नीलिमा ने पुछा | अर्पिता ने एक हाथ ऊपर उठाकर मंदिर में घंटी बजने जैसा उपक्रम करते हुए तनिक मुस्कुराकर कहा, "टल्ली बाबा जी|"
Part 11
परम श्रधेय पूज्य श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाज़ीर मान कर , जो कहूँगा – सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा – सरल कवी
गायक सरदूल सिकंदर ने जोरदार जयकारा लगवाया , “जयकारा मेरी गुडिया जैसी प्यारी ‘राधे माँजी ’ दा….”
“बोल सांचे दरबार की जय !” हॉल में मौजूद संगत ने छत हिला देने वाले बुलंद स्वर में उत्तर दिया |
सरदूल सिकंदर ने अपना गायन समाप्त कर बैठे ने के लिए निचे ताका. मंच संचालक ने माइक लेकर कुछ कहना चाह , तभी शिव चाचा मंच संचालक के निकट पहुंचे | मंच संचालक ने उनका इशारा समझा और माइक उन्हें थमा दिया|
हॉल में सन्नाटा सा छा गया | शिव चाचा के हाव -भाव प्रदशित कर रहे थे की वह कोई महत्त्वपूर्ण सूचना देने वाले थे |
मैंने अपना सर विंडो के ग्रिल से सटा लिया और शिव चाचा की बात सुनाने को सचेत हो गया |
“जयकारा श्री राधे शक्ति माँ जी ’ दा !” शिव चाचा ने सादे मगर धीमे से स्वर में जयकारा लगवाया |
“बोल सांचे दरबार की जय !” अपने दोनों हाथ उठाकर सेवादारो के संग संग संगत ने जयकारा पूरा किया |
“प्रिय माता के पुजारियों !” शिव चाचा गंभीर स्वर में बोले , “पूज्य देवी राधे शक्ति माँ' के दर्शनों के लिए हमने ह़र पंद्रह दिन बाद यानि एक शनिवार छोड़कर अगले शनिवार , यानी महीने में दो दिन निश्चित किये थे | यह सिलसिला पिछले कई सालो से चला आ रहा है | माँ राधे शक्ति माँ की उपासना पूजा अर्चाने करने वालों की संख्या निरंतर बढती जा रही है !”
हॉल में तालिया गूंज उठी |
“हर पंद्रह दिनों बाद यहाँ लगने वाले भक्तो के मेले में आज में हर्ष के साथ चर्चा करना चाहता हूँ | पिछले अनेक दर्शनों वाले दिन हमने पाया है की निरंतर बढती जा रही संगत के कारन हम लोग व्यापक व्यवस्था करने में थोड़ी असुविधा महसूस कर रहे है | असुविधा से मेरा क्या मतलब है, में स्पष्ट करना चाहता हूँ |”
शिव चाचा एक क्षण के लिए रुके |
थोडा ख़ास कर गला साफ़ किया और फिर बात आगे बधाई , “ हमारे तमाम सेवादार , गुप्ता परिवार के सदस्य, गायक मंडली और साजिन्दे , वॉचमेन, और दर्शन के लिए निश्चित शनिवार की सुबह से ही तयारी में जुट जाते है | दूर दराज जैसे की दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, या अन्य प्रांतों से आने वाली संगत सुबह से ही यहाँ पहचानी शुरू हो जाती है | शाम ढलते ही मुंबई तथा आस पास के भक्तो के टोले यहाँ हॉल में एकत्रित होने शुरू हो जाते है | पिचले कई महीनो से ‘देवी माँ ’ के दर्शानोका सिलसिला देर रात तक चलता रहता है | कई बार तो भोर तक हो जाती है |”
सांगत ने करतल ध्वनि से अनुमोदन किया |
“जय माता दी ” शिव चाचाने हात उठाकर शांत रहने का इशारा किया | हॉल में फिर हल्का सा सन्नाटा च गया |
‘अब …” शिव चाचा ने तनिक ऊँचे स्वर में कहा , “ हमने निर्णय लिया है ..की संगत को पंद्रह दिन की बजाय सात दिन के बाद यानिकी प्रत्येक शनिवार को पूज्य श्री राधे शक्ति माँ के दर्शनों का लाभ प्राप्त होगा |”
उपस्थित संगतने हर्षके साथ जो तालिय बजने शुरू की … वो कई देर तक निरंतर बजती रही |
“लेकिन ….” शिव चाचा ने फिर शांती बनाये रखने के लिए हाथ हिलाते हुए कहा , “अब दर्शनों के लिए व्यवस्था में थोडा परिवर्तन किया गया है | आप लोगोको हॉल में प्रवेश करने से पहले प्रत्येक दर्शनार्थी को एक कार्ड दिया गया है |”
अनेक भक्तोने अपना कार्ड हवा में लहराया |
“बिलकुल ठीक !” शिव चाचाने एक उंगली ऊपर की, “अब मेरी बात गौर से सुनिए | ये कार्ड अलग अलग रंग के है | लाल, नीला, और पीला, माता के भक्तो ! हमने व्यवस्था ये की है की अब प्रत्येक शनिवार को एक रंग के कार्ड वाले भगत ही दर्शनों का लाभ प्राप्त कर पाएंगे|”
हॉल में तनिक निराशाजनक “होssss …..” की आवाज सुनाई दी |
“देखिये ! यह व्यवस्था आप लोगो की सुविधा के लिए ही है !” शिव चाचा तनिक जोर देकर बोले , “मसलन हम इस शनिवार को यह घोषणा करेंगे की आनेवाले शनिवार को किस कलर के कार्ड की बारी है ! मान लीजिये नीले रंग वाले कार्ड वालो की घोषणा हुई तो प्लीज़ …. उस दिन नीले रंग वाले कार्ड वाले ही दर्शनो के लिए आये | लाल या पीले रंग के कार्ड वालों को हॉल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिलेगी | उसके अगले शनिवार को नीला और तीसरे शनिवार को पीले रंग के कार्ड वालो को दुर्लभ दर्शन मिलेंगे | यह क्रम ह़र शनिवार को चलेगा |”
हॉल में उपस्थित संगत में से कुछ लोगो ने निराशात्मक भाव से हाथ लहराए |
“में आपकी भावना को समजाता हूँ !” शिव चाचा तनिक खेद भरे स्वर में बोले, “में जानता हूँ आप सभी हर शनिवार को दर्शन के लिए लालाचित है | सज्जनों और देवियों ! में पहले ही निवेदन कर चूका हूँ की यह साड़ी व्यवस्था आप सभी श्रधालुओं की सुविधा के लिए है | आप तनिक हमारे सेवादारों की तरफ भी ध्यान दीजिये| ये सभी सेवादार और सेवादारियां निष्काम भाव से दोपहर से ही व्यवस्था में जुट जाते है | देर रात तक, साड़ी संगत को दर्शन करवाने के बाद इन सबको ‘माँ श्री राधे शक्ति माँ ’ के दर्शन नसीब होते है, तब तक थकान से चूर इन सेवादारोकी हालत देखकर किसीको भी तरस आएगा | ये सेवादार ही क्यों , यहाँ की व्यवस्था सँभालने वाले सभी कार्यकर्ताओं संगमें गुप्ता परिवार के सदस्यों का भी यही हाल होता है | इसलिए आप सभी ‘देवी माँ ’ के भक्तो से मेरी हाथ जोड़कर बिनिती है, प्लीज़ ! प्लीज़ !! आप इस हम सबकी लाभकारी व्यवस्था को कामयाब बनाना में हमारा सहयोग करे | हम लोग शहरभर में लगे होअर्दिंग्स द्वारा सभी को सूचित करेंगे की इस शनिवार किस रंग के कार्ड वाले का नंबर है | इसके अलावा भी आप ‘गौरव कुमारजी या संजीव गुप्ता से मोबाइल पर जानकारी प्राप्त कर सकते है | आप लोगोको यह जानकार भी हर्ष होगा की ‘पूज्य श्री राधे माँ ’ के लाइव दर्शन आप घर बैठे भी प्राप्त कर सकते है | लाखो ‘पूज्य श्री राधे माँ ’ के अन्यन्य भक्त www.globaladvertisers.in वेबसाइट पर लॉग इन करके यह लाभ प्राप्त कर रहे है |
जिन लोगो को कार्ड नहीं मिला वह गौरव कुमारजी या फिर हमारे अन्य सेवादारों से कार्ड प्राप्त कर सकते है |
आईये ! हम फिर माता के भजनों का आनंद ले ! जिक्र मेरी आनंदमई ‘पूज्य श्री राधे शक्ति माँ ’ का ”
“बोल सांचे दरबार की जय …..!” संगत ने उत्साहपूर्वक जिक्र लगाया |
(निरंतर .....)
Part 10
शिव चाचा ने हौले से मुस्कुराकर मुझे आश्वस्त रहने का संकेत दिया | मेरा कन्धा थपथपाया कर वह फ़ौरन निचे गलियारे के पास अपने विशिष्ठ स्थान पर जा खड़े हुए मुश्तेद मुद्रा में ! अपनी डयूटी को जिस तन्मयता और लग्न से निभा रहे थे, मैंने मन ही मन उन्हें सलूट किया | में जिस विंडो की थोड़ी उमरी हुई जगह पर उकडू होकर बैठा था वह से पुरे हॉल का जायजा भी लिया जा सकता था और पहली मंजिल की तरफ जा रही सीढियों पर खड़े श्रधालुओं को निकट से देख सकता था | लाइन आगे न सरकती देख एक अधेड़ से सज्जन, जिसका शरीर थोडा भारी था, शायद थक से गए थे, वही मेरे निकट फर्श पर बैठ गए | "आप लाइन में है क्या?", उन्होंने व्यग्र स्वर में पुछा | "नो!", मैंने इनकार में सर हिलाया, "में कुछ आराम से साथ, कुछ जानकारी लेने के बाद, थोड़ी भीड़ कम होने के बाद दर्शन करना चाहता हूँ !" "फिर तो तीन बजेंगे बच्चू !", उन्होंने सर हिलाया, "संगत ने अभी तो आना शुरू किया है ! और वह तुम जानकारी के बारे में कह रहे थे | क्या जानकारी चाहते हो पुत्तर ! में यहाँ वर्षो से आ रहा हूँ | नियमित रूप से आ रहा हूँ | बिना नागा आ रहा हूँ |" "में सोच रहा था ..... " में विचारपूर्वक स्वर में बोला, " इतना भव्य आयोजन, इतना इंतजाम, इतनी व्यवस्था, हर पंद्रह दिन के बाद करना कोई मामूली बात हो नहीं है | बहुत सारा खर्चा होता होगा इन सब पर!" "ठीक जा रहे हो |", उसने सहमती में सर हिलाया, " अभी तो पहली मंजिल भी नहीं पहुचे हो......" "भगत!" मैंने उसकी बात पूरी की, भगत नाम है मेरा ! दर्शनों के लिए पहली बार आया हूँ |" "भगत जी !", वह उत्साह भरे स्वर में बोले, " आपने रोड से लेकर यहाँ तक खड़े सेवादारों की संख्या का अनुमान लगाया है ?" "यही कोई ...." में सिर खुजलाया, " बीस पच्चीस..!" "सौ के करीब है !" उसने भवे माथे पर ले जाते हुए कहा, " लेडिज और जेंट्स सेवादा ऊपर दरबार में 'देवी माँ' की गुफा से लेकर, हर मंजिल पर दो-दो, तीन -तीन सेवादार ! आप क्या समझते हो इनको कोई तन्खवाह मिलती है?" मैंने प्रश्नात्मक निगाहों से उसकी तरफ देखा | "ये सेवादार है !" वह एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोले, " अपनी मर्ज़ी से, अपने काम धंदे छोड़कर यहाँ मात्र सेवा के लिए आते है | इनको पगार नहीं मिलती | लेकिन इनको जो मिलता है, वह दुनिया भर की सभी पगारों से कही ज्यादा है | भगत जी ! सभी को दर्शन करवाने के बाद जब ये 'देवी माँ' के सन्मुख होते है और 'पूज्य राधे शक्ति माँ' की दया मय दृष्टी इन सेवादारों पर पड़ती है तो उससे अधिक परम आनंद कही नहीं है | किसी चीज़ में नहीं है ! उसके बाद इनको भंडारा मिलता है| भंडारे से याद आया, आपको मालूम है तीसरी मंजिल पर दाई तरफ स्थित टेरेस पर विशाल भंडारे का इन्तेजाम रहता है |" मैंने इनकार से सर हिलाया | "गिनो....... " उन्होंने अपना दाहिना हाथ आगे करते हुए अंगूठे से उँगलियों के पौर दूना शुरू किया, "पाच - छह प्रकार का सलाड और अचार, तीन-चार प्रकार की सब्जी, दाल, कढ़ी, बूंदी का रायता, कभी पाव-भाजी तो कभी पूरी, बेसन की तंदूरी रोटी, गेहू की रोटी, चावल, पुलाव, पिज्जा, भेलपुरी, डोसा, सेवियों की खीर, आईसक्रीम, फलूदा, तीन-चार मीठाइया, फ्रूट सलाड, गुलाब जामुन, जलेबी, रबड़ी, हलवा, चना.............." "बस, भाईसाहब, मेरे मुह में सचमुच पानी आने लगा, आप तो किसी भव्य शादी में परोसे जानेवाले मेनू का वर्णन कर रहे हो...." "यह सब तीसरे माला पर स्थित भंडारे में मिलता है, मेरे बच्चे !" वह श्रद्धा पूर्वक स्वर में बोले, "और सब 'देवी माँ' की कृपा से होता है | आप क्या समझते है, गुप्ता परिवार इसके लिए कोई चंदा लेते है? 'देवी माँ' की अपार दया से ये सब गुप्ता परवर आयोजित करता है और वह भी निःस्वार्थ ! मैंने हैरानी से सिर हिलाया | "भगत जी!" वह दोनों हाथ उठाकर छत की तरफ देखने लगा, " आप नहीं जानते 'देवी माँ' की लीला क्या है ! 'देवी माँ' कभी उपदेश या प्रवचन नहीं देती ! मालूम है ? वो कभी डिमांड भी नहीं करती ! वो किसी को कुछ करने न करने के लिए रोका - टोका नहीं करती | 'देवी माँ' की गुफ़ा में, जैसे ही कोई माँ का सेवक प्रवेश करता है, माँ उसकी तरफ निहारती है, उनकी दिव्य दृष्टि सेवक के भीतर पहुँच कर उसकी तमाम शंका का फ़ौरन भाव लेती है | जब तक आप 'देवी माँ' के सन्मुख पहुचते है | आपकी समस्योंका निदान हो चूका हुआ होता है |" "बोलो पूज्य 'राधे शक्ति माँ' की......." सीढीयों के ऊपर मोड़ पर खड़े सेवादार ने उसे उठानेका इशारा किया| "जय!", वह सज्जन तत्परता से उठे | कतार आगे सरकी | मोड़ मुड़ते ही वह सज्जन मेरी दृष्टी से ओंझाल हो गए | में भीतर ही भीतर एक आसिम शांति और अपने आपको हल्का महसूस करने लगा था |.... (निरंतर....)
Part 9
बोरीवली पश्चिम स्थित स्टेशन से सिर्फ पांच सात मिनट के पैदल रस्ते पर चामुण्डा सर्कल से थोडा आगे स्थित सोडावाला लेन में 'श्री राधे माँ भवन' के ग्राउंड फ्लोअर स्थित हॉल में माता की चौकी का आयोजन भव्य और धार्मिक भावना से परिपूर्ण, चल रहा था | में गाने बजाने वाले कलाकारों के निकट बैठा तल्लीनता के साथ भक्ति संगीत में डूबा था, मगर मेरी निगाहे अपने बाई तरफ स्थित उस गलियारे की तरफ थी, जहाँ से पांचवी मंजिल को जाने की सीढिया थी| गलियारे की निकट आधा दर्जन भर सेवादार दर्शनों के लिए जाने वाले और दर्शनोसे लौटकर आने वाली सांगत को व्यवस्थित ढंग से संभाल रहे थे | उन सेवादारो के बीच खड़े एक सज्जन की तरफ मेरा ध्यान आकर्षित हुआ | क्रीम कलर का सफारी सूट, चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक, मगर श्रद्धा और समर्पण की झलक भी स्पष्ट नजर आ रही थी | वे दोनों हाथों से धीमे धीमे ताली बजा रहे थे | भजन - गायक के साथ साथ कुछ गुनगुना रहे थे, मगर बीच बीच में सेवादारों को कुछ निर्देश भी दिए जा रहे थे | उनकी मुश्तेदी और कर्तव्यदक्षता के कारन हॉल में काफी अनुशासन बना हुआ था | सफारी सूट पहने व्यक्तिने मंच पर मौजूद एक कलाकार को हल्का सा इशारा किया| वह फ़ौरन उनके पास पहुंचा| सफारी सूटवाले ने कलाकार के कान में कुछ कहा| समझजाने के भाव से सर हिलाते हुए कलाकार वापिस मंच के निकट पहुंचा | भजन गायक सिकंदर के कान में कुछ फुसफुसाते हुए कलाकार ने एक अन्य भजन गायक की तरफ इशारा किया | में एकाएक अपने स्थान से उठा| व्यवस्थित ढंग से बैठी संगत के बीच जगह बनाते हुए में उस सफारी सूट वाले व्यक्ति के निकट पहुँच | उनके चेहरे पर प्रश्नात्मक भाव प्रगट हुए | "जय माता दी!", मैंने हाथ जोड़कर अत्यंत विनम्र स्वर में पूछा, " आपका नाम जान सकता हूँ?" "शिव चाचा", वह धीमेसे मुस्कुराये | "लोग मुझे 'शिव चाचा' के नाम से पहचानते है | बहुत से लोग 'जगत चाचा' भी कहते है | वैसे मेरा नाम 'जगमोहन गुप्ता' है | गुप्ता परिवार का सदस्य हूँ | 'देवी माँ' का सेवक हूँ| "शिव चाचाजी !", मैंने थोडा झुक कर धीरेसे कहा, "में आपको लगभग तीन घंटे से यूँ ही खड़ा देख रहा हूँ !" "देवी माँ की सेवा में ......" शिव चाचा समर्पण भाव से बोले, " ...साड़ी उम्र खड़ा रह सकता हूँ | एक पाँव पर भी |" मैंने प्रशंसात्मक निगाहों से उनकी तरफ देखा, " शिव चाचा ! में थोड़ी जानकारी हासिल करना चाहता था.........." " आईये ...." एकदम विनम्र भाव से बोले, "क्या जानना चाहते हों?" लगभग दस बार सीढिया चढ़ने के बाद एक तरफ बनी एक विंडो के उमरे स्थान पर थोडा उकड़ होकर हम पास पास बैठ गए | "में जानता हूँ, आप 'देवी माँ' के बारे में कुछ जानना चाहते है !" शिव चाचा ने मेरी तरफ देखा| "में आपके बारे में जानना चाहता हूँ |" मैंने अपनी ऊँगली उनकी तरफ दो तीन बार लहराई | "मेरा नाम जगमोहन गुप्ता है |" वह गंभीर स्वर में बोले, " गुप्ता फॅमिली का सदस्य हूँ ! हम लोग अत्यंत भाग्यशाली है भैया, जो पूज्य राधे शक्ति माँ हमारे घर में विराजमान है | देखिये जनाब | हमारा खानदानी धंदा है | बिसनेस, इनकम इज्जत शोहरत की कोई कमी पहले भी नहीं थी, लेकिन 'देवी माँ' के चरण जबसे हमारे घर पड़े है , हमारे तो जैसे भाग्य खुल से गए है !" शिव चाचा एक क्षण के लिए रुके | खरवार तनिक गला साफ़ करने के बाद पुनः बोलना शुरू किया, "आज से साढ़े चार साल पहले मैंने 'देवी माँ' लीला का जो अनुभव किया, वो में आपको बताता हूँ | कुछ दिनों तक मेरी तबियत थोड़ी नरम रहते रहते अचानक मेरे पेट में भीतर ही भीतर ब्लीडिंग शुरू हो गयी | फ़ौरन डॉक्टर की तरफ भागे | इमर्जन्सी ट्रीटमेंट शुरू हो गया | बहुत प्रयत्नों के बाद भी ब्लीडिंग रुक नहीं रही थी | तबियत निरंतर डाउन होती जा रही थी हम लोगो ने एक क्षण के लिए भुला दिया थी की बड़े से बड़े डॉक्टरों का भी डॉक्टर तो हमारे घर में मौजूद है | 'देवी माँ ने ' हमें कुछ समाया पहले बता दिया था की सतर्क रहे | परिवार के सदस्यों ने 'देवी माँ' के चरणों में विनती की | फ़ौरन प्रार्थना स्वीकार हुई | 'देवी माँ' के आशीर्वाद से मेरे भीतर की समस्त बीमारी निकल गयी | एकदम से में स्वस्थ होने लगा | मेरी आत्मा और शरीर के तमाम रोग नदारद हो गए | में कुछ ही दिनों में एकदम स्वस्थ हो गया| स्वस्थ ही नहीं हो गया, उम्र के लिहाज से पहले से बी ज्यादा तरोताजा और तंदुरुस्त फील करने लगा हूँ | 'देवी माँ' की दृष्टी मात्र से प्रत्येक रोग का निदान हो जाता है, यह मेरा विश्वास भी है और दावा भी| ... बोले 'राधे शक्ति माँ' की ........." "जय !" मैंने दोनों हाथ आसमान की तरफ तान दिए ! (निरंतर ............)
Part 8
संजीव गुप्ता दो तिन कदम आगे बढ़ने के बाद रुके | उन्होंने तनिक घूमकर मेरी तरफ अपना रुख किया | उन्होंने दोनों हाथ क्षमा याचना की मुद्रा में जोड़े थे | विशिष्ट मुस्कान के साथ उन्होंने मैत्री पूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखा | उनके चेहरे के भावो से लग रहा था, जैसे वह कह रहे हो, मेरी बात का बुरा लगा तो माफ़ी मांगता हु | संजीव गुप्ता से मुझे विशेष आकर्षण और व्यक्तित्व नज़र आ रहा था | उनके चेहरे से आत्मविश्वास और नेतृत्व के भाव जलक रहे थे | किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लेने की छबि ने मुझे उनका एक ही नजर में प्रशंशक बना दिया | मैं उनके निकट पंहुचा | "सॉरी संजीवभाई" मैंने क्षमा भरे स्वर में कहा, " दरअसल में यहाँ के वातावरण की एक एक बात से परिचित होना चाहता था, इसलिए अनिल से कुछ जानकारी हासिल करना छठा था..." मेरी बात पुरिभी नहीं हुई थी की, मेरी बगल से एक महिला गुजरी | उसे तिन चार व्यक्तियों ने घेर रखा था | वह तेज कदमो से चलती हुई, सीधी सीढियों की तरफ बढाती चली जा रही थी | "ये रीना रॉय है" संजीव गुप्ता ने एकदम फुसफुसाते स्वर में कहा, "फिल्म स्टार ! पहचाना?" ओह, हा! में जैसे कही खो गया था | "ठीक कहा आपने" मैं सोच रहा था, इस महिला का चेहरा जाना पहचाना क्यों लग रहा है" "सुनिए, भक्त जी", संजीव गुप्ता अत्यंत व्यस्त स्वर में बोले, "देवी माँ के बारे में, यहाँ की 'माता की चौकी', यहाँ आनेवाले श्रद्धालु और देवी माँ के चमत्कारों के बारे में अगर आपको कुछ जानना है, तो कल समय निकालकर मेरे ऑफिस में आईये | आपने चामुंडा सर्कल देखा है ?"
मैंने सहमती में सर हिलाया | चामुंडा सर्कल में आप किसी से भी 'ग्लोबल एडवरटाइजर्स' की बिल्डिंग पूछिए | संजीव गुप्ता गंभीर स्वर में बोए | बड़ी सी कांच की बिल्डिंग है | बाहर पूज्य राधे माँ का बड़ा सा होर्डिंग लगा है | " "जी|", मैं कृतज्ञ स्वर में बोला | "में समय निकालकर कल आता हु|" "आपका नाम?" उन्होंने मेरी आँखों में झाका | "भगत" में मुस्कुराया, "अभी तो नाम भगत है. दर्शनों के बाद देवी माँ का भगत हो जाऊंगा |" "अच्छा लगा !" संजीव गुप्ता ने मेरा कन्धा थपथपाया | "आप का यहाँ आना अच्छा लगा, आप कल आईये | फिर में आपको देवी माँ के अनेकानेक चमत्कारों से अवगत करता हु | " "थेंक यू सर." मैंने हाथ जोड़कर पूछा, "मेरा नंबर कब आएगा? " "जब आप पर देवी माँ की कृपा होगी | " संजीव गुप्ता श्रद्धा भरे स्वर में बोले, " जब आपकी आस्था, आपका विश्वास, आपकी अंतर आत्मा सच्ची भावना से पुकारेगी, आप देवी माँ के सन्मुख खड़े होंगे | " वो झटकसे मुड़े | लम्बे उग भरते हुए सीढियों की तरफ बढे | कुछ सेवादारो ने आदर से उन्हें नमस्ते किया | "चलिए भगतजी.." एक सेवादार ने मुझे टोका| "आगे बढ़ जाईये | वह पिल्लर के पास खली जगह है | वहा बेठिये, प्लीज|" में भीड़ में जगह बनाते हुए पिल्लर के पास पंहुचा| एक व्यक्ति ने तनिक खिसककर मेरे लिए जगह बनाई | सफ़ेद कुरता पायजमा और सफ़ेद पघडी बांधे, वह सिख संप्रदाय का युवक से लगने वाले आदमी ने एक उडती हुई दृष्टिमेरी तरफ डाली और फिर साजिंदों की तरफ देखने लगा, जो बड़े सधे हाथों से एकदम परफेक्ट ढंग से गायक की संगत्सर रहे थे| मेरी दृष्टि उसपर जम गई| सिख युवक ने मेरी तरफ मुह घुमाया| " आप सुरेन्द्र है ना?", मैंने हर्षित स्वर में पूछा| "लाफ्टर चेलेंज, कोमेडी शो और बहुत से टीवी सीरियलों में मैंने आपको देखा है|" उसने मुस्कुराकर सहमती में सर हिलाया| "वह क्या बात है?" मैंने आपनी पीठ खुद थपथपाई, लकी हो भगत| इतने सारे सेलेब्रिटीज के एक साथ दर्शन हो गए | "अभी तो देवी माँ के दर्शन बाकि है| मेरे मन के किसी कोने से आवाज आई| तब अपने आप को लकी कहना जाइज होगा | "जय करा श्री राधे शक्ति माँ, मेरी गुडिया जैसी देवी माँ का.." मैंने अत्यंत बुलंद स्वर में उत्तर दिया, "बोल सच्चे दरबार की जय" निरंतर...... निरंतर......
Part 7
पूज्य राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोर स्थित हॉल में माता की चौकी का कार्यक्रम हर्षौल्लास और पूर्ण भक्ति रस से भरा था | हॉल में 'देवी माँ' के श्रद्धालु की भीड़ निरंतर बढ़ रही थी | कई बार तो हॉल में मौजूद सेवादारो को व्यवस्था बनाये रखने में मुश्किल हो रही थी | मेरे ख्याल से जितनी श्रद्धालुओ की संख्या यहाँ मौजूद थी, उससे कही ज्यादा हॉल के बहार कुर्सियों पर बैठे, लाइन में खड़े श्रद्धालु होल में भीतर आने को आतुर थे मगर शांत भाव से | फिर एक पोस्टर हवा में लहेराते हुए, एक सेवादार श्रद्धालु में घूम गया | थोड़ी हलचल हुई | माता के दर्शनार्थियों अलग अलग जगहों से उठकर सीढियों की तरफ बढे | उनके द्वारा खाली की गई जगह फ़ौरन भर गई | मुख्य द्वार में श्रद्धालुओ ने भीतर प्रवेश करना प्रारंभ किया | में थोडा और दिवार में सट गया | सुप्रसिद्ध भजन गायक सार्दुल सिकंदर ने अपनी नयी रचना शुरू की, "मेरे भोले बाबा, राधे माँ का रूप क्या सजा दिया.....". दर्शनार्थियों ने जमते हुए तालियाँ बजाते हुए उनका साथ दिया | सफ़ेद कुरता पायजामा पहेने सर पर गाँधी टोपी लगाये, एक तनिक भरी से उम्ब्रदराज सज्जन ने उठ कर, अपनी जेब से एक नोट निकला, सरदूल सिकंदर के सर के ऊपर एक-दो-तीन बार घामकर उन्होंने नोट निचे बैठे एक भक्त को थमा दिया | सरदूल सिकंदर ने तनिक जुक कर उन सज्जन के पाँव छूने का उपक्रम किया | "ये महाशय कौन है, अनिल?" मैंने कौतुहल स्वर में पूछा | "यह श्री मनमोहन गुप्ताजी (ताउजी) है" अनिल मंत्रमुग्ध स्वर में बोला, यह जितना भी कार्यक्रम यहाँ चल रहा है, यह सब गुप्ता परिवार की श्रद्धा और सेवाभावना है | मनमोहनजी इस परिवार के मुखिया है | आपने ऍम ऍम मीठाइवाले का नाम सुना है? "किसने नहीं सुना, भाई?" मैंने सर हिलाया | " मालाड स्टेशन के बहार उनकी मिष्टान भंडार पर तो अपार भीड़ लगी रहती है | मैंने बहुतेरी बार ऍम ऍम के खास लस्सी का आनंद उठाया है | " "उसी ऍम ऍम मिठाई की दूकान के मालिक है ये मनमोहन गुप्ता | अनिल ने बात आगे बताई | अपना सर्वस्व इस गुप्ता परिवार ने पूज्य देवी माँ को समर्पित कर दिया है | जब से देवी माँ ने इनके निवास स्थान पर आसन लगाया है, गुप्ता परिवार तो धन्य हो गया | इस परिवार में ४० सदस्य है | छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सदस्य देवी माँ के प्रति कृतज्ञ है | देवी माँ जब भी किसी पर प्रस्सन होती है तो फिर ऐसा नजारा होता है, भगत जी | हर पंद्रह दिन के बाद यहाँ माता की चौकी होती है | हजारो की संख्या में देवी माँ के भक्त दर्शनों के लिए खिचे चले आते है | जरा ऊपर देखो | मैंने गर्दन घुमाई | " वो महिला जो हाथ में भोजन का थाल लिए है....." अनिल तनिक मेरी तरफ जुका | " वो श्रीमती स्नेहलता गुप्ता है"मनमोहन गुप्ताजी की धर्मपत्नी | एक दो पुरुष और महिला सेवादार फ़ौरन आगे पहुचे | एक चुनरी का पर्दा बनाकर श्रीमती स्नेहलता गुप्ता ने माता को भोग लगाया | "अब भंडारा शुरू हो जायेगा", अनिल ने हर्ष के स्वर में कहा, "ऊपर तीसरे माले पर बहुत विशाल टेरेस पर माता के प्रसाद की व्यवस्था है ! भगतजी, शादी ब्याह में जो खाना परोसा जाता है, उससे भी कही बढाकर उस भंडारे में हजारोकी संख्या में श्रद्धालु माता का प्रसाद प्राप्त करते है | " "कोई पर्ची वर्ची कटनी पड़ती है क्या यहाँ?", मैंने उत्सुक स्वर में पूछा | "या कोई टोकन खरीदना पड़ता है?" "आपका दिमाग ख़राब है क्या?" अनिल तनिक रूद्र स्वर में बोला | " भंडारे में कभी पैसा लिया जाता है क्या?" एकदम फ्री है जनाब ! चाहे जितने लोग आये, चाहे जितना खाए पेट भर के | माता का प्रसाद है ये | एक बात बताऊ?" यह तनिक धीमे स्वर में बोला, "बहुत से लोग तो इसी लालच में घसे चले आते है की चलो, बढ़िया भोजन तो मिलेगा | " "सत्संग की तरफ ध्यान दो" तभी एक सुन्दर सा युवक मेरे निकट से गुजरते हुए बोला "प्लीज़! बाते मत करो" मैंने उसकी पीठ घूरते हुए अनिल से पूछा, "यह बंदा कौन है, भैया? "..."इसका नाम ......." अनिल एकदम धीमे स्वर में बोला, 'संजीव गुप्ता है" देवी माँ के चरणों का सेवादार | निरंतर.........
बोरीवली पश्चिम में रेलवे स्टेशन से अगर आप पैदल चले तो मुश्किल से १० मिनिट लगेंगे और आप पूज्य 'राधे देवी माँ' भवन पहुच जायेंगे. में वही पर उस समय ग्राउंड फ्लोर स्थित हॉल में बड़े धूम धाम से हो रही 'माता की चौकी' में उपस्थित था जहा सुप्रसिद्ध गायक सरदूल सिकंदर बड़ी तन्मयता से 'मेरी गुडिया जैसी राधे माँ' के भजन प्रस्तुत कर रहे थे | एक सेवादार ने फिर एक पोस्टर पब्लिक में लेहराया जिस पर अगले दर्शनार्थियों के नंबर लिखे थे | थोड़ी हलचल हुई | जिन लोगो को पोस्टर में लिखे नंबर की पर्चियां मिली थी, बड़ी श्रद्धा और उल्हास मगर शांति के साथ सीढियों की तरफ बढ़ने लगे| तभी दर्शन करके लौट रहे एक सज्जन को देखकर मैंने अपनी कोहनी अनिल से हटाकर पूछा, वो लम्बा सा आदमी मुझे जाना पहेचाना सा लग रहा है| "कौनसा?" अनिल ने उस" तरफ देखा, जिधर मेरी दृष्टी थी. "वो .... वो यहाँ के बहुत बड़े डॉक्टर है | देवी माँ के अनन्य सेवक है |" "किसकी बात कर रहे हो?" मैंने अनिश्चित स्वर में कहा, "वो चश्मेवाले?" वो नहीं प्रभुजी, वो लम्बी चोटी वाले... जो दरबार की तरफ जा रहे है| "अच्छा वो?" अनिल ने भावो को नचाया, "उसको नहीं पहेचाना?" वो अरविंदर है|" अरविंदर सिह| सूफी गायक, उनकी बहुत से एल्बम निकले है| आपने उनको जरूर टीवी पे देखा होगा| "हा.. हा ...हा... !" मैंने सहमती में तिन बार सर हिलाया. "याद आया, बहुत बार देखा है टीवी पर" यहाँ तो बहुत बहुत पहोची हुई हस्तियाँ देवी माँ के दर्शनों के लिए आते है| क्या बात है| "चमत्कार को नमस्कार है, भाईजी" अनिल श्रद्धा और विश्वास भरे स्वर में बोला| आज सायंस और मीडिया का जमाना है| पढ़े लिखे समजदार लोग है| कुछ देखते है, तभी तो यहाँ आते है| कुछ मिलता है तभी तो यहाँ आते है| हर पन्द्रह रोज बाद यहाँ होनेवाली 'माता की चौकी' में हजारो भक्तो की भीड़ और वह भी ऐसे भक्तो की भीड़ जो एक बार 'देवी माँ' के दर्शन हो जाने के बाद भी बार-बार अनेक बार उनके दर्शनों की चाह रखते है| यह देवी माँ का चमत्कार है| तभी प्रवेश द्वार में एक पंद्रह साल की लड़की ने भीतर प्रवेश किया| उसके हाथ में गुलाब का फूल था| उसके चहेरे पर उत्सुकता के भाव थे| आगे रास्ता नहीं होने के कारण वह मेरी बगल में खड़ी हो गई| "तुम्हारा क्या नाम है, बिटिया? मैंने सहज स्वर में पूछा| "वैशाली" वह एकदम बाल सहज स्वर में बोली| "वैशाली मोरे" महाराष्ट्रियन हु| आप भी देवी माँ के दर्शनों के लिए आये है? मैंने तनिक रुक कर पूछा. "पहेले कितनी बार दर्शन हुए?" एक बार भी नहीं| . उसने इंकार में सिर हिलाया| में तो फर्स्ट टाइम आई हु| वो भी माँ की कृपा हुई तो| "वेरी गुड" क्या करती है बेटा? मैंने प्रशंशात्मक द्दृष्टी से देखा | "बी कॉम फर्स्ट इयर के फॉर्म भरे है |" वो मेरी तरफ देखकर बोली, "अंकल, मेरे साथ जो चमत्कार हुआ है, उस पर मुझे खुद्कोभी यकीं नहीं हो रहा | बताऊ क्या हुआ | " "बताओ" मैंने व्यग्र स्वर में पुछा | " में कल .... उसने कल स्वर पर जोर दिया. बांद्रा वेस्ट गई थी, एडमिशन के लिए | यहाँ से ट्रेन पकड़ी, बांद्रा उतरी और दो अन्य लड़कियों के साथ शेयर रिक्शा लिया | कॉलेज के सामने उतरकर में जल्दी जल्दी लाइन में लगने की हडबडाहट में अपना फ़ोन रिक्शा में भूल गई | अंकल, हम साधारण परिवार के लोग है | मैंने बड़ी कंजूसी करके, कई जगह छोटी मोटी सर्विस करके जैसे तैसे पैसे जमा करने बाद, अपनी पसंद का मोबाइल ख़रीदा था | अभी दस दिन पहेले तो लिया था और वह रिक्शा में छुट गया | " वह गंभीर निगाहों से मेरी तरफ देख रही थी | उसने होठो पर जीभ फिराई और फिर बोली, अपना पसंद का मोबाइल गुम हो जाने के कारण में बड़ी निराश थी | मैं एकदम ख़राब मूड और टेंशन में वापिस घर लौट रही थी तभी मैंने बैनर पर राधे देवी माँ का फोटो देखा | मैंने मन ही मन प्रार्थना की, हे देवी माँ मेरा मोबाइल वापिस मिल जाए तो मैं आपके दर्शनों के लिए आउंगी | वह सास लेने के लिए रुकी और फिर श्रद्धा भरे स्वर में बोली, मुझे रात को नींद में भी मोबाइल के सपने आते रहे | आज सुबह जब में बोरीवली स्टेशन पर पोह्ची तो, अंकल वही रिक्शावाला, सोचो कहा बांद्रा और कहा बोरीवली! वही रिक्शावाला मिल गया | मैंने जैसेही उसकी तरफ देखा, उसने मेरा मोबाइल मेरे हाथ में थमा दिया | मैंने पूछा भी आपको कैसे मालूम यह मेरा मोबाइल है, तो वह मुस्कुराकर बोला की उसने मुझे उस मोबाइल पे बातें करते देखा था | अंकल, मोबाइल लौटने के बाद भाडा लेकर तुरंत रवाना हो गया | मैं उसका अच्छी तरह से धन्यवाद् भी नहीं कर पाई | वैशाली मोरे ने अपने फूल वाले हाथ को तनिक ऊपर उठाया | मैं देवी माँ का धन्यवाद् करने आई हूँ | तभी हॉल में जोर का जयकारा गूंजा | बोल साचे दरबार की जय |
Part 6
Part - 5
बारिश से भीगने से बचने के प्रयास में, मै न जाने किस डोर से बंधा श्रधालुओ की कतार में लगकर श्री राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोअर स्थित हॉल में पहुँच गया | इस दौरान लाइन में मेरे आगे खड़े लुधिअना के 'अर्जुन सचदेवा' ने बताया की किस प्रकार श्री राधे शक्ति माँ की दया दृष्टि से उनके यहाँ ११ वर्ष के बात लड़का हुआ और वह 'देवी माँ' के प्रति कृत्यज्ञता प्रकट करने यहाँ आया था | उसके बाद मुझे हॉल में अनिल नाम का युवक मिला जो फगवाडा से आया था | उसीने मुझे दर्शनों के लिए पर्ची लाकर दी | हॉल में आगे बढ़ने को रास्ता नहीं होने के कारण हम प्रवेश द्वार के निकट दीवार से सट कर खड़े हो गए |
"अनिल! मैंने उसके कान के निकट अपना चेहरा किया, "तुम तो एकदम नौजवान हो ! इस उम्र में भक्ति - पूजा - पथ? क्या उम्र होगी तुम्हारी? यही कोई २५-२६ साल?" "करेक्ट!" वह मुस्कुराया , " ठीक जजमेंट ! इस महिने २५ पुरे करके 26 वे साल में प्रवेश करुन्ग्सा| इसी 15 जुलाई को मेरा जन्मदिन है ! और कितना भाग्यशाली हूँ मै ! मालूम है आपको 15 जुलाई को क्या है?" "क्या है?" मैंने तनिक भवो को ऊपर किया| "गुरु पोर्णिमा है!" वह एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोला, "उस दिन श्री राधे माँ अपने सभी शिष्योंको विशेष दर्शन देने वाली है ! मै धन्य हो जाऊंगा जब देवी माँ के आशिर्वाद के साथ अपना जन्म दिन सेलिब्रेट करूँगा !" उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा| "तुमने बताया नहीं ?", मैंने अनिल को टोका, "तुम इस खाने पीने की उम्र में ये पूजा पथ भक्ति और सेवा में जुटे हो ! क्यों?" "मत पूछो यार!", वह तनिक गंभीर होकर सजिंदा स्वर में बोला, "दरअसल, मैंने चंडीगढ़ युनिवेर्सिटी से अपनी graduation पूरी की| इस दौरान गलत सांगत के कारण उलटे-सीधे कामो में पद गया | आवारागर्दी, जुआ-शराब, लढाई-झगडा, और न जाने क्या क्या ? घर से अनाप -शनाप पैसे आते थे जेब खर्च और पढाई के लिए| बुरी सोहबत ने मुझे एक गैर जिम्मेदार और जिद्दी लड़का बना दिया | रोजाना की मारपीट और गलत हरकतों के कारण घर शिकायते पोछने लगी| पेरेंट्स ने फगवाडा वापिस बुला लिया | वह में थोडेही सुधेरेने वाला था?, बुरी हरकतों के कारण मै पुरे फगवाडा में बदनाम हो गया था |"
मैंने सहानभूति भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा | "फिर एक बार फगवाडा में किसी भक्त के घर 'देवी माँ' का आगमन हुआ|", वह शुन्य में ताकते हुए बोला, " मेरे माँ-बाप जबरदस्ती से अपने साथ दर्शनों के लिए ले गए| इसी प्रकार भक्तों की भीड़ में हम कतार बध 'देवी माँ' के सामने पहुंचे| मेरी माँ आखों में आसू लिए बहुत देर तक मान ही मान न जाने क्या प्रार्थना कर रही थी | कापते होठों से न जाने क्या बुदबुदाते हुए वह निरंतर हाथ जोड़े जा रही थी| हम देवी माँ के संमुझ पहुंगे| देवी माँ ने पहले मेरे पिता की तरफ देखा उनके चेहरे पर छाये निराशा के भावों को पढ़ा | फिर मेरी माँ के झरते आसुंओं को निहारा| तब देवी माँ ने एक नज़र मुझ पर डाली | मेरे अंतर की आत्मा को जैसे किसी ने झकझोर कर रख दिया.....में एकदम उनके क़दमों में गिर गया| मेरे मुह से बोल नहीं फुट रहे थे, मगर मेरे चेहरे पर पश्चाताप और क्षमायाचना के भाव उम्र आये थे | 'देवी माँ' ने अपना त्रिशूल वाला हाथ तनिक उठाया और आशिर्वाद की मुद्रा में मुस्कुराई |" वह सांस लेने के लिए रुका| 
Part - 4
श्री राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोअर स्थित बड़े से हॉल में माता की चौकी के उस कार्यक्रम में श्रधालुओ की उस भीड़ में मुझे अलग अलग स्थानों से आये श्रधालुओ के चेहरे नज़र आ रहे थे | मैंने चारो तरफ निगाह दौड़ाने के बाद साथ बैठे सज्जन से धीमे स्वर में पुछा, "देवी माँ किधर बैठे है?" 'वो तोह पाचवे मेल पर विराजमान है|" उसने गौर से मेरी तरफ देखा, " आपको दर्शनों के लिए नंबर पर्ची मिली?" "नहीं" मैंने इंकार में सिर हिलाया "मुझे कोई पर्ची -वरची मिली नहीं है|" "कोई बात नहीं|" उसने आश्वस्त भाव से मेरे हाथ को थपथपाया "में ला देता हूँ|" "में भी आपके साथ चलता हूँ|" मैंने उसे उठाते देखकर कहा, "कहासे मिलती है पर्ची?" उसने इशारे से आने का संकेत दिया| में उसके पीछे-पीछे हाल में प्रवेश करने वाले गेट तक पहुंचा | वह एक सेवादार के कम में कुछ कहने के बाद बहार गया और तुरंत लौट आया | "ये लो........" उसने एक पर्ची मेरे हाथ में थमाई,"आपका नंबर है 825 |" "इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने पहले पर्ची और फिर उसकी तरफ देखा | "अभी समझाता हूँ|" वह हॉल में एक साइड में खड़े कुछ लोगो की तरफ देखने लगा | तभी एक सेवादार ने एक सूचना देने वाला पोस्टर पब्लिक की और दिखाया | उसपर लिखा था '551 to 600' "देखो!" वह श्रद्धालु बोला, अभी यह लोग जिनको '551 to 600' नंबर तक की पर्ची मिली है, वह श्रद्धालु सीढियों के रास्ते चढ़ते हुए पाचवे माला तक जायेंगे | वही पर देवी माँ के दर्शन होंगे |" हॉल में बैठे कुछ श्रद्धालु पुरुष, महिलाये, बच्चे, नौजवान सीढियों की तरफ बड़े अनुशासनात्मक भाव से बढे | "देखो, अभी ' 600 श्रधालुओं को दर्शन का बुलावा आया है |" मेरे साथ खड़े सज्जन बोले " वोह क्या है ! जैसे पहले ५० दर्शनार्थी दर्शन करके निचे उतरेंगे, आगे की पर्ची वाले पचास लोगोंको ऊपर भेजा जायेगा | अभी कुछ समय बाद फिर पचास श्रधालुओं को दर्शन के लिए भेजा जायेगा | आपका नंबर क्या है ?" "825" मैंने पर्ची में देख कर कहा | "समझो आधा पौन घंटा और लगेगा |" वह मुस्कुराया, "तब तक आप भजनों का आनंद लो |" "आपका नाम क्या है भगतजी?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीरे से पुछा| "अनिल", वह हौले से मुस्कुराया, " में फगवाडा का रहने वाला हूँ " "फगवाडा?" मैंने जिज्ञासु भाव से पुछा, "यह कहा है?" "फगवाडा पंजाब में है |", अनिल ने बताया, "लुधियाना का नाम सुना है?" "हाँ" मैंने सहमती में सिर हिलाया | "बस लुधिअना के पास ही है|" अनिल ने सिर हिलाया, "में यहाँ देवी माँ की सेवा की लिए आया हूँ| मुझे बड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ी, बहुत हजारी लगनी पड़ी | तब जाकर सेवा का आदेश हुआ |" "क्या सेवा करते हो?" मैंने सहज भाव से पुछा | "जो मिल जाये ......" वह आत्मविभोर स्वर में बोला, "यह भवन में जो भी सेवा मिलती, में उसे अपना सौभाग्य मनाता हूँ |" "जैसे?" मैंने प्रश्न किया| "जैसे... " वह तनिक सोच कर बोला, "जैसे कुछ भी | अभी जब सभी श्रद्धालु दर्शने करने के बाद चले जायेंगे तोह पांचवे माला तक सीढियों की सफाई, ऊपर हॉल में सफाई करना, यहाँ हाल के दरी गद्दे उठाना, हॉल में एक-दम साफ़ सफाई करना वैगेरह वैगेरह .......!" "तुम तो बहोत ही किस्मत वाले हो अनिल " मैंने मुग्ध निगाहों से उसे देखा, " मुझे भी ऐसी कोई सेवा मिल जाएगी क्या?" "अभी से?" अनिल ने हैरानी के साथ कहा, पता है?" में पिछले ३ साल से यहाँ लगातार हर दुसरे तीसरे शनिवार को आ रहा हूँ | लगातार आरजी लगाने के बाद 'देवी माँ ' ने मुझ पर यह मेहेरबानी की है | मेरा फगवाडा मैंने बहोत बड़ा कपड़ो का शो-रूम है | में पिछले १६ दिनों से यही 'देवी माँ 'की सेवा में हूँ | "वापिस कब आयोगे? " मैंने कौतुहल से पुछा | अनिल श्रद्धाभाव से बोला , " जब 'देवी माँ' का हुकुम होगा !" (निरंतर ...)
कतार में लगे श्रधालुओं में से एक ने बुलंद स्वर में जयकारा लगाया "जयकारा मेरी सच्ची सरकार श्री राधे शक्ती माँजी का ...." "बोल सांचे दरबार की जय..." उत्तर में पूरी कतार ने दोनों हाथ उठाकर जयकारा पूरा किया | तभी बूंदा बांदी ने तेज बोछार के साथ बरसात का रूप ले लिया | कतार जो धीमे धीमे आगे सरक रही थी, एकदम से तेज रफ़्तार में आगे बढ़ने लगी | एक गहिरे नीले सफारी सूट पहने सेवादार ने मुझे लाल रंग का रुमाल दिया | रुमाल पर अलग अलग तरह से "श्री राधे माँ" का नाम प्रिंट किया हुआ था | मैंने रुमाल को सर पर बांधने की कोशिश की | मेरे पिच्छे वाले सज्जन ने मदत करते हुए रुमाल को सही तरीके से बाँध दिया | मैंने अपने आगे वाले पंजाब से ए अर्जुन सचदेवा की कहानी को गौर से सुना | उस आदमीं के स्वर में जो विश्वास, जो आशा, जो श्रध्हा, जो पूर्ण समर्पण की भावना चालक रही थी, में बिना दर्शन किये ही श्री राधे शक्ती माँ को अपने आस पास महसूस करने लगा | अर्जुन सचदेवा ने बता की शादी के लगभग 11 साल बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और यह सब 'देवी माँ' की असीम अनुकम्पा और आशीर्वाद से ही संभव हुआ | अर्जुन सचदेवा अकेला ही देवी माँ का धन्यवाद् करने आया था |उसकी दादी की तबियत थोड़ी नरम थी, इसलिए अपनी पत्नी को उनकी सेवा के लिए छोड़कर आया था | में कतार के साथ जैसे ही ग्राउंड फ्लोर पर स्थित बड़े से हॉल में पहुंचा, मेरे सामने अद्भुत नजारा था | हॉल माता के भक्तों से खचाखच भरा था | अनेक सेवादार और सेवादारिया बड़े विनम्र और श्रद्धाभाव से भक्तो को अनुशानात्मक तरीके से बिठा रहे थे | सामने भगवती माँ की चौकी का कार्यक्रम चल रहा था | सुन्दर दरबार सजा था | साजिन्दे बड़े कलात्मक ढंग से अपने अपने इंस्ट्रूमेंट बजा रहे थे | में जैसे ही दरबार के निकट पहुंचा, मैंने गौर से भजन गा रहे कलाकार की तरफ देखा | बड़े ही मधुर और निपुण अधेस्वरों में बह गा रहा था | "मेरे भोले बाबा, राधे माँ का रूप क्या सजा दिया ......" एक सज्जन ने थोडा सरक कर मेरे लिए बैठने की जगह बनाई | मेंने कृतज्ञता पूर्वक उसकी तरफ मुस्कुराकर बैठते हुए हाल में नज़र दौड़ाई| श्रधालुओं में ठसाठस भरे हॉल में सभी को बड़े व्यवस्थित ढंग से बैठाया गया था | अलग अलग जगहों से आये सभी श्रद्धालु भक्ति भाव तालिया बजाते, झूमते हुए भजन में लीन थे | "बहुत बढ़िया गा रहे है भाई !" मैंने प्रशंसामत स्वर में बाजू में बैठे व्यक्ति से पुछा, " इन भाईसाहब का नाम क्या है?" "आप नहीं जानते ?" उस व्यक्ति ने अत्यंत गर्व भरे स्वर में कहा, " ये पंजाब से आये है | हिंदुस्तान ही नहीं पुरे विश्व में इनकी गायकी की तारीफ होती है | ये 'सरदूल सिकंदर' है|" में आश्चर्य चकित रह गया| एक मुसलमान गायक 'श्री राधे शक्ति माँ' का गुणगान कर रहा था और वोह भी अत्यंत भक्ति भाव से !
धन्य श्री राधे शक्ति माँ !!
(निरंतर...) Part 2
'मेरा नाम अर्जुन सचदेवा है... मेरे आगे खड़ा व्यक्ति थोड़ी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर बोला ' में लुधिअना का रहनेवाला हूँ | हमारा सायकलों के पार्ट्स बनाने का कारखाना है | यह हमारा पुश्तेनी बिज़नस है | देवी माँ का दिया सब कुछ है | सच पूछो तो कोई कमी नहीं थी..."
लाइन धीरे धीरे आगे सरक रही थी | उसने तनिक रुकने के बाद बोलना शुरू किया, " शानदार बंगला, बड़ा सा कारखाना, ढेरो वर्कर्स, घर में नौकर - चाकर ! एकदम खुशहाल परिवार | मेरे माता पिता और मेरी दादी .... अभीतक जिंदा है | ....उसकी उम्र बताओ तो आपको हैरानी होंगे .... 92 साल .....अभी भी जिंदा है |"
" घर में धन -दौलत, मोटर गाड़ी, सुख आराम की कोई कमी नहीं ...." अर्जुन सचदेवा गंभीर स्वर में बोले, " बस एक ही कमी खटकती थी .. मेरी शादी को 11 साल हो गए थे मगर ...कोई औलाद नहीं थी | पहले 2 -3 साल तो हसी ख़ुशी गुजर गए | उसके बाद हमारे घर में.... रिश्तेदारों में खुसुर - फुसुर शुरू हो गई | मेरी दादी की हर घडी एक ही रट रहती, 'पोता चाहिए | पोते को गोद में खिलाना है | मेरी श्वासों का क्या भरोसा ! अर्जुन पुतर.. पोता चाहिए ! "
उसने जेब से रुमाल निकालकर अपने सर पर विशिष्ठ तरीके से बांधा |
"फिर क्या हुआ ??" मैंने उत्कंठा भरे स्वर में पुछा|
मेरी पत्नी माधुरी ने अनेक डॉक्टरों, वैद्यों से राय-मशवरा किया ! दवाओं से लेकर दुआओं का दौर शुरू हो गया | जिसने जो बोला वही करते ?... पीरों की दरगाहों पर मन्नते मांगी | मंदिरों में नारियल चढ़ाये | धागे बांधे | यहाँ से वहां पता नहीं कहाँ कहाँ के धक्के खाये | अब तो हम दोनों भी निराश होने लगे | घर में अजीब सी चिंता ने आकर डेरा दाल लिया | दादी की 'पोता चाहिए' रट अब धीमी पड़ने लगी | उसके चेहरे पर निराशा और उदासी की ज़ुरियां और भी गहरी हो उठी |"
'भगत जी ... " एक और सेवादार पार्थना भरे स्वर में टोका .."थोडा जल्दी चलिए और हाँ अपना सर ढक लीजिये |"
मैंने आगे पीछे देखा | सभीके सिरों पे रुमाल बंधे थे |
"लेकिन ,,,, " मैंने अपनी जेबें टटोलते कहाँ "मेरे पास तोह सर ढकने का रुमाल नहीं नहीं |"
"थोडा आगे चलिए " सेवादार ने मेरा कन्धा थपथपाया, " आगे एक जगह रुमाल रखे है | वहां से लेकर सर पे बांध लेना|"
"जब हम एकदम निराशा के समुन्दर में गोते लगा रहे थे, " अर्जुन सचदेवा ने आगे कहा, "तभी किसीने हमें सुझाव दिया की आप एक बार पूज्य श्री राधे शक्ती माँ की शरण में जाकर तो देखिये | उसने हमें यहाँ का एड्रेस दिया | पहले तो मैंने लापरवाही से टाल दिया | मगर मेरी पत्नी माधुरी ने कहा, एक बार ही जाने में क्या हर्ज़ है | हम दोनों यहाँ आये | पहली बार जब हमने श्री राधे शक्ती माँ के दर्शन किये तो हम दोनों के दिलों में आशा की किरण जैसे फुट पड़ी | हम निरंतर आते रहे | 'देवी माँ' के चरणों में माथा टिकाते रहे | फिर्याद करते रहे !... और फिर जैसे चमत्कार हो गया | 'देवी माँ' ने हमारे बहते आसुओं पर तरस खाया| "
"जैसे हमारे सोये भाग्य जाग उठे | 'देवी माँ' की कृपा जैसे अमृत बनकर हम पर बरसने लगी |"
"फिर क्या हुआ?" .. मैंने उतावले स्वर में पुछा...
"फिर वही हुआ जो देवी माँ की कृपा से होता है ".. अर्जुन सचदेवा चेह्कते स्वर में बोला....'दादी को पोता मिल गया"...
(निरन्तर..... )
Part 1
एक शनिवार /
उस समय रात्रि एक लगभग ९.३० बजे थे / में रात्रि का भोजन करने के बाद यूँही टहलने के लिए निचे उतर आया और धीमे धीमे कदमो से चलता हुआ सोडावाला लेन की तरफ निकल आया / बोरीवली पश्चिम में चंद्रावरकर रोड पर स्थित सोडावाला लेन मेरी पसंदीदा गली है/ जहाँ में अक्सर टहलने के लिए निकल आया करता हूँ /
अचानक हलकी हलकी बूंदा बांदी होने लगी /
मैंने भीगने से पहले बचेने के लिए जगह तलाश करते हुए इधर उधर झाका / तभी मुझे एक बिल्डिंग के सामने कुछ लोगो का हुजूम दिखाई दिया / मैंने तनिक कदम तेज किये मगर मुझे आश्चर्य हुआ / वहां लगी कतार में कोई भी सज्जन बारिश से बचने के लिए चिंतित दिखाई नहीं दे रहा था/ कतार में लगे बच्चे , बूढ़े, जवान, बुजुर्ग, महिलाये, लडकिया, बढे आराम से धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे /
यह लाइन कैसी है ? इस वक़्त इन लोगो को कतार बद्ध होकर कहाँ जाता है ? मेरा जिज्ञासु मान उत्सुकता से भर उठा / में कतार के निकट पहुंचा / एक सज्जन ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर मुझसे कहा 'भगत जी ! कृपया लाइन में आईये /
में जब तक कुछ समझ पाता मेरे पीछे दस-बारह सज्जन कतार में लग चुके थे / कुछ लोगो के हाथों में फुल के गुलदस्ते, कईओंके हाथ में नारियल चुनरी और अन्य पूजा अदि का सामान था / शायद प्रशाद वैगेरह/
मैंने उत्सुकता से अपने आगे खड़े लगभग चालीस वर्षीय व्यक्ति से पुछा ''भाई, हम लोग कहा जा रहे है?''
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुई सवाल किया, "पहली बार आये हो क्या? "
मैंने सहमती में गर्दन हिलाई!
"आज शनिवार है/" , वह भावविभोर स्वर में बोला, "आज भाग खुल जायेंगे / देवी माँ के दर्शन होंगे/"
"देवी माँ?" मैंने उत्सुकता से पुछा "यहाँ कोई मंदिर है?"
"मंदिर से भी बढ़कर ...... " वह एकदम श्रद्धा भरे स्वर में बोला, "यह राधे माँ भवन है.... " वह मंत्रमुग्ध निगाहों से भवन की पाचवी मंझिल की तरफ निहारने लगा, " देखो भगतजी .... जगतजगनी माँ भगवती एक है, मगर उसके करोडो करोडो उपासक है / अब जब सभी लोग माँ को पुकारेंगे तो माँ का एक साथ सभी के पास पहुचना तो संभव नहीं होगा ना / तब साक्षात् माँ अपने स्वरुप को किसी दूत के माध्यम से सबके पास पहुचती है / ऐसी ही माँ भगवती की दूत हमारी देवी माँ है / सभी उनको राधे शक्ति माँ के नाम से पुकारते है /
"आप कहाँ से पधारे है, भैया?" मैंने प्रश्न किया ?
"में..?"उसने मेरी तरफ देख कर कहा, "लुधिआना, पंजाब से ! और क्यों आया हूँ सुनोगे?"
"सुनाओ, !" मैंने सर हिलाया / वह गंभीर स्वर में बोला, "सुनो ...."