Tuesday, February 19, 2019

बुद्धि के देव श्री गणेश जी ने किया था 'कावेरी अम्मा' का नामकरण


बुद्धि के देवता श्री गणेश जी से जुड़ी हर कथा, प्रेरक सीख देती है। ऐसी ही कथा है श्री गणेश और कावेरी नदी की।

हम जानते हैं गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है। हमारी वैदिक परंपरा और शास्त्रों में गंगाजल को अमृत की तरह माना गया है।

इसी तरह कावेरी भी भारत की पवित्र नदियों में एक है। यह 'दक्षिण की गंगा' नदी भी कहलाती है। आलम यह है कि दक्षिण भारत में कावेरी नदी को 'कावेरी अम्मा' के नाम से भी पुकारते हैं। कावेरी नदी का 'कावेरी अम्मा' नाम भगवान गणेश ने रखा था।

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार धरती पर कावेरी नदी की उत्पत्ति गणेश जी के कारण हुई। कहते हैं एक बार ऋषि अगस्त्य ब्रह्माजी के पास दक्षिण भारत में जल की समस्या को लेकर पहुंचे।

ब्रह्माजी ऋषि की बात सुनकर बोले, 'अगस्त्य आपको इस समस्या के निराकरण के लिए भगवान शिव के पास जाना चाहिए।'

ऋषि अगस्त्य को उम्मीद थी कि भगवान शिव उनकी इस समस्या को सुनकर जरूर मदद करेंगे। ब्रह्माजी ने ऋषि अगस्त्य को जाते समय एक कमंडल (तांबे, पीतल, कांसे का पात्र) दिया, और कहा यह कमंडल आप भगवान शिव को दे देना। देवाधिदेव कैलाश पर्वत पर रहते हैं।

अगस्त्य भगवान शिव की आराधना करते हुए उनके धाम की ओर चल निकले। वह कैलाश पर पहुंचे तो देवाधिदेव ने उनसे पूछा, 'हे ऋषिवर आप क्या चाहते हैं। तब ऋषि अगस्त्य ने अपनी समस्या को सुनाया। तब भगवान शिव ने ऋषि को अपनी जटा में से गंगा जल की कुछ बूंद दीं। और वह कमंडल भी ऋषि को दिया जिसमें उन्होंने गंगाजल की बूंद रख लीं।'

ऋषि हैरान थे कि इतना कम जल कैसे लोगों की प्यास और सूखे से बचा पाएगा। तब शिव ने कहा, 'यदि आप मुझ पर विश्वास रखते हैं तो यह संभव है कि आपकी इस समस्या का निराकरण जल्द हो जाएगा। उन्होंने ऋषि से कहा गंगा जल की इन तीन बूंद को आप सूखी भूमि में विसर्जित कर देना। आपकी समस्याएं दूर हो जाएंगी।'

तब ऋषि अगस्त्य ने दक्षिण भारत की यात्रा पर लौट गए। ऋषि असमंजस में थे। वह तय नहीं कर पा रहे थे कि गंगाजल की कमंडल में रखी बूंदें कहां विसर्जित करें। तभी उन्हें वहां एक युवा बालक मिला।

ऋषि अगस्त्य लंबी यात्रा से बहुत थक चुके थे। इसलिए उस कमंडल में रखीं गंगाजल की बूंदों की सुरक्षा के लिए उन्होने उस राहगीर बालक से प्रार्थना की। दरअसल वह राहगीर बालक और कोई नहीं भगवान गणेश थे।

उन्होंने कहा, 'में आपकी मदद के लिए ही आया हूं। वैसे यह बिल्कुल सही जगह है। जहां आप अपने कमंडल से जल प्रवाहित कर सकते हैं। तभी गणेश जी ने अपनी माया से एक पक्षी बनाया। पक्षी आया और उसने जमीन पर ही रखे कमंडल को गिरा दिया। ऐसे में जल बहुत तेजी से प्रवाहित होने लगा। और धीरे-धीरे विशाल नदी का रूप धारण कर लिया।

तब राहगीर बालक अपने मूल रूप यानी गणेश जी के रूप में अवतरित हुए और उन्होंने ऋषि अगस्त्य से कहा कि आज से इस नदी का नाम कावेरी नदी होगा। यह दक्षिण की गंगा भी कहलाएगी।

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