माँ दुर्गा के 9 रूप हैं जिनकी कहानियाँ आप इस पोस्ट में पढ़ सकते हैं –
शैलपुत्री Shailaputri
शैलपुत्री देवी दुर्गा का प्रथम रूप है। वह पर्वतों के राजा – हिमालय की पुत्री हैं। राजा हिमालय और उनकी पत्नी मेनाका ने कई तपस्या की जिसके फल स्वरुप माता दुर्गा उनकी पुत्री के रूप में पृथ्वी पर उतरी। तभी उनका नाम शैलपुत्री रखा गया यानी (शैल = पर्वत और पुत्री = बेटी)। माता शैलपुत्री का वाहन है बैल तथा उनके दायें हाँथ में होता है त्रिशूल और बाएं हाँथ में होता है कमल का फूल।
दक्ष यज्ञ में पवित्र माँ ने सती के रूप में अपने शरीर को त्याग दिया। उसके पश्चात माँ दोबारा भगवान शिव जी की दिव्य पत्नी बनी। उनकी कहानी बहुत ही प्रेरणा देती है।
ब्रह्मचारिणी Brahmacharini
(ब्रह्म = तपस्या), माता दुर्गा इस रूप में वह अपने दायें हाथ में एक जप माला पकड़ी रहती है और बाएं हाथ में एक कमंडल। नारद मुनि के सलाह देंने पर माता ब्रह्मचारिणी ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या किया। पवित्र माता में बहुत ही ज्यादा शक्ति है।
मुक्ति प्राप्त करने के लिए माता शक्ति ने ब्रह्म ज्ञान को ज्ञात किया और उसी कारण से उनको ब्रह्मचारिणी के नाम से पूजा जाता है। माता अपने भक्तों को सर्वोच्च पवित्र ज्ञान प्रदान करती हैं।
चन्द्रघंटा Chandraganta
यह माता दुर्गा का तीसरा रूप है। चंद्र यानी की चंद्र की रोशनी। यह परम शांति प्रदान करने वाला माँ का रूप है। मा की आराधना करने से सुख शांति मिलता है। वह तेज़ स्वर्ण के समान होता है और उनका वाहन सिंह होता है। उनके दस हाँथ हैं और कई प्रकार के अस्त्र -शस्त्र जैसे कडग, बांड, त्रिशूल, पद्म फूल उनके हांथों में होते हैं।
माँ चन्द्रघंटा की पूजा आराधना करने से पाप और मुश्किलें दूर होती हैं उनकी घाटियों की भयानक आवाज़ से राक्षस भाग खड़े होते हैं।
कुष्मांडा Kushmanda
कुष्मांडा माता दुर्गा का चौथा रूप है। जब पृथ्वी पर कुछ नहीं था और हर जगह अंधकार ही अंधकार था तब माता कुष्मांडा ने सृष्टि को जन्म दिया। उस समय माता सूर्य लोक में रहती थी। ऊर्जा का सृजन भी उन्ही ने सृष्टि में किया।
माता कुष्मांडा के आठ हाँथ होते हैं इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। उनका वाहन सिंह है और माता के हांथों मैं कमंडल, चक्र, कमल का फूल, अमृत मटका, और जप माला होते हैं।
माता कुष्मांडा शुद्धता की देवी हैं, उनकी पूजा करने से सभी रोग और दुख-कष्ट दूर होते हैं।
स्कंदमाता Skandamata
स्कंदमाता माता दुर्गा का पांचवा रूप है। माँ दुर्गा ने देवताओं को सही मढ़ और आशीर्वाद देने के लिए भगवान् शिव से विवाह किया। असुरों और देवताओं के युद्ध होने के दौरान देवताओं को अपना एक मार्ग दर्शक नेता की जरूरत थी। शिव पारवती जी के पुत्र कार्तिक जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है देवताओं के नेता बने।
कार्तिक/स्कंदा को माता पारवती माता अपने गोद में बैठा के रखती हैं अपने वाहन सिंह पर बैठे हुए इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से पूजा जाता है।उनके 4 भुजाएं हैं, ऊपर के हाथ में माता कमल का फूल पकड़ी रहती है और नीचे के एक हाथ से माँ वरदान देती हैं और दुसरे से कार्तिक को पकड़ी रखती है।
स्कंदमाता के पूजा से भक्तों के सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
कात्यायनी Katyayani
माँ कात्यायनी, दुर्गा माता के छटवां रूप हैं। महर्षि कात्यायना एक महान ज्ञानी थे जो अपने आश्रम में कठोर तपस्या कर रहे थे ताकि महिषासुर का अंत हो सके। एक दिन भगवान ब्रह्मा,विष्णु, और महेश्वर एक साथ उनके समक्ष प्रकट हुए। तीनो त्रिमूर्ति ने मिलकर अपनी शक्ति से माता दुर्गा को प्रकट किया। यह आश्विन महीने के 14वें दिन पूर्ण रात्रि के समय हुआ।
महर्षि कात्यायना वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने माता दुर्गा की पूजा की थी इसलिए माता दुर्गा का नाम माँ कात्यायनी कहा जाता है और आश्विन माह के पूर्ण उज्वाल रात्रि सातवें, आठवें और नौवे दिन नवरात्री का त्यौहार मनाया जाता है। दसवें दिन को महिषासुर का अंत मानया जाता है।
माता कात्यायनी को शुद्धता की देवी माना जाता है। माता कात्यायनी के चार हाथ हैं, उनके उपरी दाहिने हाथ में वह मुद्रा प्रदर्शित करती हैं जो डर से मुक्ति देता है, और उनके नीचले दाहिने हाथ में वह आशीर्वाद मुद्रा, उपरी बाएं हाथ में वह तलवार और नीचले बाएं में कमल का फूल रखती है। उनकी पूजा आराधना करने से धन-धन्य और मुक्ति मिलती है।
कालरात्रि Kalaraatri
माँ कालरात्रि, दुर्गा का सातवां रूप हैं। उनका नाम काल रात्रि इसलिए है क्योंकि वह काल का भी विनाश हैं। वह सब कुछ विनाश कर सकती हैं। कालरात्रि का अर्थ है अन्धकार की रात। उनका रैंड काला होता है उनके बाद बिखरे और उड़ते हुए होते हैं। उनका शरीर अग्नि के सामान तेज़ होता है।
उनका वहां गधा है और उनके ऊपर दायिने हाथ में वह आशीर्वाद देती मुद्रा में होती हैं और निचले दायिने हाथ में माँ निडरता प्रदान करती है। उनके ऊपर बाएं हाथ में गदा और निचले बाएं हाथ में लोहे की कटार रखती हैं।
उनका प्रचंड रूप बहुत भयानक है परन्तु वह अपने भक्तों की हमेशा मदद करती है इसलिए उनका एक और नाम है भायांकारी भी है। उनकी पूजा करने से भूत, सांप, आग, बाढ़ और भयानक जानवरों के भय से मुक्ति मिलती है।
महागौरी Maha Gauri
माँ दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी। देवी पारवती का रंग सावला था और इसी कारन महादेव शिवजी उन्हें कालिके के नाम से पुकारा करते थे। बाद में माता पार्वती ने तपस्या किया जिसके कारन शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा के पानीको माता पारवती के ऊपर डाल कर उन्हें गोरा रंग दिया। तब से माता पारवती को महागौरी के नाम से पूजा जाने लगा।
उनका वाहन बैल है और उनके उपरी दाहिने हाथ से माँ आशीर्वाद वरदान देती है, और निचले दायिने हाथ में त्रिशूल रखती है। उपरी बाएं हाथ में उनके डमरू होता है और निचले हाथ से वह वरदान और अशोर्वाद देती हैं।
महागौरी की पूजा आराधना करने वाले भक्तों को भ्रम से मुक्ति, जीवन में दुख कष्ट का अंत होता है।
सिद्धिदात्री Siddhidaatri
माता दुर्गा के नौवे रूप का नाम सिद्धिदात्री है। उनका ना ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें सिद्धि प्रदान करने की माता कहा जाता है। माता सिद्धिदात्री के अनुकम्पा सेही शिवजी को अर्धानारिश्वार का रूप मिला। उनका वाहन सिंह है और उनका आसन है कमल का फूल।
उनके उपरी दायिने हाथ में माता एक गदा और निचले दायिने हाथ में चक्रम रखती है। माता अपने उपरी बाएं हाथ में एक कमल का फूल और निचले बाएं हाथ में एक शंख रखती हैं। माता सिद्धिदात्री अपने भक्तों की सभी मनोस्कम्नाओं की सिद्धि देती हैं।
Source:http://bit.ly/2YBY431
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