बछ बारस
को गौवत्स द्वादशी
और बच्छ दुआ भी
कहते हैं। बछ
बारस भाद्रपद महीने
की कृष्ण पक्ष
की द्वादशी को
मनाई जाती है।
बछ यानि बछड़ा,
गाय के छोटे
बच्चे को कहते
है । इस
दिन को मनाने
का उद्देश्य गाय
व बछड़े का महत्त्व
समझाना है। यह
दिन गोवत्स द्वादशी
के नाम से
भी जाना जाता
है। गोवत्स का
मतलब भी गाय
का बच्चा ही
होता है।
बछ बारस
का यह दिन
कृष्ण जन्माष्टमी के
चार दिन बाद
आता है ।
कृष्ण भगवान को
गाय व बछड़ा
बहुत प्रिय थे
तथा गाय में
सैकड़ो देवताओं का वास
माना जाता है।
गाय व बछड़े
की पूजा करने
से कृष्ण भगवान
का , गाय में
निवास करने वाले
देवताओं का और
गाय का आशीर्वाद
मिलता है जिससे परिवार में
खुशहाली बनी रहती
है ऐसा माना
जाता है।
इस दिन
महिलायें बछ बारस
का व्रत रखती
है। यह व्रत
सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति
और पुत्र की
मंगल कामना के
लिए व परिवार
की खुशहाली के लिए
करती है। गाय
और बछड़े का
पूजन किया जाता
है। इस दिन
गाय का दूध
और दूध से
बने पदार्थ जैसे
दही , मक्खन , घी आदि
का उपयोग नहीं
किया जाता। इसके
अलावा गेहूँ और
चावल तथा इनसे
बने सामान नहीं
खाये जाते ।
भोजन में
चाकू से कटी
हुई किसी भी
चीज का सेवन
नहीं करते है।
इस दिन अंकुरित
अनाज जैसे चना
, मोठ , मूंग , मटर आदि
का उपयोग किया जाता
है। भोजन में
बेसन से बने
आहार जैसे कढ़ी
, पकोड़ी , भजिये आदि तथा
मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि
की रोटी तथा
बेसन से बनी मिठाई
का उपयोग किया
जाता है।
बछ बारस
के व्रत का
उद्यापन करते समय
इसी प्रकार का
भोजन बनाना चाहिए।
उजरने में यानि
उद्यापन में बारह
स्त्रियां , दो चाँद
सूरज की और एक
साठिया इन सबको
यही भोजन कराया
जाता है।
शास्त्रो के अनुसार
इस दिन गाय
की सेवा करने
से , उसे हरा
चारा खिलाने से
परिवार में महालक्ष्मी
की कृपा बनी
रहती है तथा
परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना
समाप्त होती है।
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