एक बार गणेश जी एक बालक का रूप धर कर पृथ्वी लोक आते है और भक्तों की परीक्षा लेने की सोचते है। एक चुटकी चावल और एक चम्मच में दूध लेकर लोगों के पास जाते है और उनसे दूध एवं चावल की खीर बनाने के लिए कहते है। एक चुटकी चावल और थोडे से दूध की खीर बनाने की बात सुनकर लोग उन पर हंसने लगे। बहुत भटकने के बाद भी किसी ने खीर नहीं बनाई। आखिर एक गांव में एक बुढ़िया को उन पर दया आ गई और वह बोली— ला बेटा मैं बना देती हूं खीर। ऐसा कह कर वह एक छोटी कटोरी ले आई। यह देख बालक बोला अरे मां! इस कटोरी से क्या होगा कोई बड़ा बर्तन लेकर आओ। बच्चे का मन रखने के लिए बुढिया बड़ा बर्तन ले आती है। अब बालक उसमें चावल और दूध उडैलता है। देखते ही देखते वह बर्तन भर जाता है उसके बाद भी चुटकी भर चावल और चम्मच भर दूध खत्म नहीं होता। बुढिया एक—एक कर घर के सारे बर्तन ले आती है। सब भर जाते है लेकिन, चुटकी भर चावल और चम्मच भर दूध खत्म नहीं होता। तब बालक बुढिया से कहता है कि वह खीर बनाने के लिए सामग्री को चूल्हे पर चढ़ा दे तथा गांव में जाए और सबको खाना खाने का निमंत्रण देकर आए। जब खीर बन जाए तो उसे भी बुला लेना। बुढिया वैसा ही करती है। सारा गांव आता है और खीर खाकर चला जाता है लेकिन, उसके बाद भी खीर बच जाती है। बुढ़िया पूछती है कि वह इसका क्या करें? तब बालक ने कहा कि— इस खीर को घर के चारों कौनों में बर्तन सहित उलट कर ढक दे और सुबह तक ऐसे ही रहने दे। सुबह बुढिया बर्तन उठाकर देखती है तो हीरे जवाहरात नजर आते है। इस तरह जैसे भगवान गणेश ने बुढ़िया पर कृपा बनाई, वैसे ही वह सब भक्तों पर कृपा बनाए रखें। बोलो, गणेश जी महाराज की जय।
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