इतिहास
केदारनाथ मन्दिर के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ का दर्शन करना अधूरा माना जाता है। इसके दर्शन करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और मुक्ति मिलती है। यह मंदिर कब बना इसे लेकर विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए हैं। प्रमुख साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह 12वीं- 13वीं शताब्दी में बना होगा। दूसरे मत के अनुसार इस मंदिर को आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में बनवाया था।
ग्वालियर के राजा भोज स्तुति के अनुसार यह मंदिर 1076 – 1099 ई० के दौरान बनाया था। यह मंदिर 400 सालों तक पूरी तरह बर्फ में ढका रहा, उसके बाद यह प्रकाश में आया। यह मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के बीच में स्थित है। मंदिर के अंदर प्राचीन काल मैं बनी देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां हैं।
कहानी
इस मंदिर से जुड़ी अनेक कहानियां हैं। मुख्य कथा के अनुसार केदारपर्वत की चोटी पर महातपस्वी नर और नारायण ऋषि भगवान शिव की तपस्या करते थे। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने दर्शन दिए और केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में सदैव के लिए वास करने का वरदान दिया।
दूसरी कथा के अनुसार पांडवों ने यह मंदिर बनाया था। अपने ही भाई बंधुओं की युद्ध में हत्या करने के कारण पांडव बहुत ही हताश और आत्मग्लानि से भरे हुए थे। वे भगवान शिव से मिलना चाहते थे जिससे उनको मुक्ति का मार्ग मिल सके। परंतु महाभारत के युद्ध के कारण भगवान शिव पांडवों से रुष्ट थे और उनसे नहीं मिलना चाहते थे। भगवान शिव की खोज में पांडव काशी गए जहां पर उन्हें दर्शन प्राप्त नहीं हुआ। शिव की खोज करते करते पांडव केदारनाथ पर्वत आ गए। भगवान शिव ने वृषभ बैल का रूप धारण कर लिया।
पांडवों में सबसे बलशाली भीम ने भगवान शिव को खोजने की अनोखी युक्ति निकाली। उन्होंने अपना आकार बड़ा किया और विशाल रूप धारण करके दो पहाड़ों पर पैर रख दिया। भगवान दूसरे जानवरों के साथ बैल रूप में थे। ऐसा होने पर सभी जानवर तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए परंतु भगवान शिव नहीं निकले। भीम समझ गये कि यह बैल कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव हैं।
भीम उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गये। अंत में भीम ने भगवान शिव को खोज लिया। अपनी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पांडवो को दर्शन दिया और पाप मुक्ति का मार्ग बताया।
केदारनाथ मंदिर की बनावट और वास्तुशिल्प
इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। यह मंदिर 6 फुट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। 3593 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा आश्चर्य है। इतनी ऊंचाई पर इसे कैसे बनाया गया होगा इस बात की कल्पना करना भी कठिन है। इसे कत्यूरी शैली में बनाया गया है। इसे बनाने में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी से बनाई गई है।
शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाहरी परिसर में भगवान शिव का सबसे प्रिय नंदी की विशाल प्रतिमा बनी हुई है। यह मंदिर तीन भागों में बटा हुआ है – गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप (जहां पर भक्त एक प्रांगण में खड़े होकर पूजा करते हैं) और तीसरा भाग सभामंडप का है जहां पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं।
Source: https://bit.ly/2LEg6wV
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