हनुमान जी शक्ति और बुद्धी के देवता कहे जाते हैं, किसी भी मुसीबत में लोग उन्हीं को याद करते हैं। भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। बाल्मिकी की रामायण के अनुसार इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। ऐसा अनुमान है कि हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़े में हुआ था।इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं| वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
कुछ पौराणिक कथाओं में हुनमान जी को वानर का वंशज कहा गया है जिसके कारण ही विराट नगर (राजस्थान) के वज्रांग मन्दिर में उनके वानर रूप की पूजा की जाती है।परन्तु गोभक्त महात्मा रामचन्द्र वीर ने एक ऐसा मंदिर बनावाया जिसमें हनुमान जी की बिना बन्दर वाले मुख की मूर्ति स्थापित की है। रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी जाति वानर बताई है, शरीर नहीं।वीर के हिसाब से हुनुमान जी ने लंका-दहन करने के लिए वानर रूप धरा था।
ठुड्डी यानी हनु टूट गई
हनुमान जी को गुस्सा नहीं आता है इसलिए जो लोग बहुत ज्यादा गुस्सा करते हैं उन्हें हनुमान जी की उपासना करने को कहा जाता है। पुराणों के मुताबिक सूर्य को फल समझकर जब हनुमान जी खाने जा रहे थे तो इंद्र ने उन पर वज्र से पहाड़ किया जिसके कारण उनकी ठुड्डी यानी हनु टूट गई इस कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाता है। कुछ पुराणों में उल्लेख है कि भगवान हुनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी नहीं थे, उनकी पत्नी का नाम सुवरचला (Suvarchala) था जो कि सूर्य की पुत्री थी, क्योंकि सुवरचला ने योनी से जन्म नहीं लिया था इसलिए उनके स्वरूप का वर्णन कहीं नहीं मिलता।
वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष
रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेउ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पुँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
कुछ पौराणिक कथाओं में हुनमान जी को वानर का वंशज कहा गया है जिसके कारण ही विराट नगर (राजस्थान) के वज्रांग मन्दिर में उनके वानर रूप की पूजा की जाती है।परन्तु गोभक्त महात्मा रामचन्द्र वीर ने एक ऐसा मंदिर बनावाया जिसमें हनुमान जी की बिना बन्दर वाले मुख की मूर्ति स्थापित की है। रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी जाति वानर बताई है, शरीर नहीं।वीर के हिसाब से हुनुमान जी ने लंका-दहन करने के लिए वानर रूप धरा था।
ठुड्डी यानी हनु टूट गई
हनुमान जी को गुस्सा नहीं आता है इसलिए जो लोग बहुत ज्यादा गुस्सा करते हैं उन्हें हनुमान जी की उपासना करने को कहा जाता है। पुराणों के मुताबिक सूर्य को फल समझकर जब हनुमान जी खाने जा रहे थे तो इंद्र ने उन पर वज्र से पहाड़ किया जिसके कारण उनकी ठुड्डी यानी हनु टूट गई इस कारण ही उन्हें हनुमान कहा जाता है। कुछ पुराणों में उल्लेख है कि भगवान हुनुमान जी आजीवन ब्रह्मचारी नहीं थे, उनकी पत्नी का नाम सुवरचला (Suvarchala) था जो कि सूर्य की पुत्री थी, क्योंकि सुवरचला ने योनी से जन्म नहीं लिया था इसलिए उनके स्वरूप का वर्णन कहीं नहीं मिलता।
वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष
रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेउ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पुँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है।
Source :- https://bit.ly/2IiX1g8
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