Pages

Wednesday, September 11, 2019

केरल का खास पर्व है ओणम

केरल का खास पर्व है ओणम


उत्सवों की श्रृंखला के बीच रविवार को ओणम महोत्सव की शुरुआत हुई। उत्सव का विभिन्न स्थानों पर फूलों की आकर्षक रंगोली बनाकर स्वागत किया गया। लोगों का विश्वास है कि तिरुओणम वह अवसर है जब सम्राट महाबली की आत्मा केरल की यात्रा करती है। इस उपलक्ष्य में स्थान-स्थान पर सहभोज और उत्सव का आयोजन होता है। केरल में बड़े पैमाने पर इस पर्व को मनाते हैं।


केरल के प्रसिद्ध त्योहार 'ओणम' के माध्यम से नई संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा आकर्षक 'ओणमपुक्कलम' (फूलों की रंगोली) बनाई जाती है। और केरल की प्रसिद्ध 'आडाप्रधावन' (खीर) का वितरण किया जाता है। ओणम के उपलक्ष्य में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इन प्रतियोगिताओं में लोकनृत्य, शेरनृत्य, कुचीपु़ड़ी, ओडि़सी, कथक नृत्य प्रतियोगिताएँ प्रमुख हैं।
पुराणों में ओणम : ओणम त्योहार सम्राट महाबली से जु़ड़ा है। यह पर्व उनके सम्मान में मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार 'वामन' ने चिंगम मास के इस दिन सम्राट महाबली के राज्य में प्रकट होकर उन्हें पाताललोक भेजा था।
इतिहास की नजर में : माना जाता है कि ओणम पर्व का प्रारंभ संगम काल के दौरान हुआ था। उत्सव से संबंधित अभिलेख कुलसेकरा पेरुमल (800 ईस्वी) के समय से मिलते हैं। उस समय ओणम पर्व पूरे माह चलता था।

ओणम केरल का महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार फसलों की कटाई से संबंधित है। शहर में इस त्योहार को सभी समुदाय के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। ओणम मलयालम कैलेंडर के पहले माह 'चिंगम' के प्रारंभ में मनाया जाता है। यह पर्व चार से दस दिनों तक चलता है जिसमें पहला और दसवाँ दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।

Friday, September 6, 2019

क्यों आए भगवान शिव, महाकाली के पैरों के नीचे?

क्यों आए भगवान शिव, महाकाली के पैरों के नीचे?


भगवती दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली। जिनके काले और डरावने रूप की उत्पति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एक मात्र ऐसी शक्ति हैं जिन से स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आ कर लेट गए थे। इस संबंध में शास्त्रों में एक कथा वर्णित हैं जो इस प्रकार है-

दैत्य रक्तबिज ने कठोर तप के बल पर वर पाया था की अगर उसके खून की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उस से अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्दोष लोगों पर करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोकों पर मचा दिया। देवताओं ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। भयंकर युद्ध का आगाज हुआ। देवता अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबिज का नाश करने को तत्पर थे मगर जैसे ही उसके शरीर की एक भी बूंद खून धरती पर गिरती उस एक बूंद से अनेक रक्तबीज पैदा हो जाते।

सभी देवता मिल कर महाकाली की शरण में गए। मां काली असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिए ही हुई थी। महाकाली ने देवताओं की रक्षा के लिए विकराल रूप धारण कर युद्ध भूमी में प्रवेश किया। मां काली की प्रतिमा देखें तो देखा जा सकता है की वह विकराल मां हैं। जिसके हाथ में खप्पर है,लहू टपकता है तो गले में खोपड़ीयों की माला है मगर मां की आंखे और ह्रदय से अपने भक्तों के लिए प्रेम की गंगा बहती है।

महाकाली ने राक्षसों का वध करना आरंभ किया लेकिन रक्तबीज के खून की एक भी बूंद धरती पर गिरती तो उस से अनेक दानवों का जन्म हो जाता जिससे युद्ध भूमी में दैत्यों की संख्या बढ़ने लगी। तब मां ने अपनी जिह्वा का विस्तर किया। दानवों का एक बूंद खून धरती पर गिरने की बजाय उनकी जिह्वा पर गिरने लगा। वह लाशों के ढेर लगाती गई और उनका खून पीने लगी। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब तक महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर हर कोई उनके समीप जाने से भी डर रहा था।

सभी देवता भगवान शिव के पास गए और महाकाली को शांत करने के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान् शिव ने उन्हें बहुत प्रकार से शांत करने की कोशिश करी जब सभी प्रयास विफल हो गए तो वह उनके मार्ग में लेट गए। जब उनके चरण भगवान शिव पर पड़े तो वह एकदम से ठिठक गई। उनका क्रोध शांत हो गया। आदि शक्ति मां दुर्गा के विविध रूपों का वर्णन मारकण्डेय पुराण में वर्णित है।





Thursday, September 5, 2019

शिक्षक का महत्व

बुद्धिमान को बुद्धि देती और अज्ञानी को ज्ञान
शिक्षा से ही बन सकता हैं मेरा देश महान..||


आज बस लोग शिक्षक दिवस पर भाषण देते है और शिक्षकों को भूल जाते है। सोशल मीडिया पर शिक्षकों के बारे में कुछ पोस्ट डालते है और भूल जाते है। लोग शिक्षकों से सीखने के बजाय उन्हें भूल जाते हैं।

स्कूल में छात्र शिक्षक दिवस के अवसर का खूब जश्न मनाते है और शिक्षकों का सम्मान करते है, बहुत अच्छी बात है पर इससे भी अच्छा शिक्षकों के पाठों का पालना करना।

शिक्षकों को खुशी तब मिलती है जब एक छात्र अच्छा इंसान बन जाता है और अपने कैरियर और बिज़नस में सफल हो जाता है। वैसे सभी शिक्षक शिक्षा में समान नहीं है और सभी छात्र भी आधुनिक युग में शिष्य और गुरू की तरह नहीं है। जबकि कुछ शिक्षक महान होते है जो हमेशा अपने छात्रों के दिलों में रहते हैं।

छात्र सलाह और मार्गदर्शन के लिए शिक्षकों पर निर्भर रहते है। छात्र न केवल अकादमिक पाठों में बल्कि वे अपने जीवन के पाठों का पालन करने में भी रूचि रखते हैं की कैसे उन्हें जीवन में आगे निकलना है। यही कारण है की शिक्षकों के लिए छात्रों को अच्छी आदतों का पालन करने के लिए उत्साह करना बेहद जरूरी है।

हर किसी के जीवन में शिक्षा जरूरी है क्योंकि शिक्षा जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न भूमिका निभाती है। इसलिए यह जरूरी है की लोग शिक्षकों के महत्व को जानें और उनके सबक का पालन करें।

हमें जीवन के हर कदम पर शिक्षकों की जरूरत है। शिक्षक ने केवल छात्रों के लिए बल्कि समाज के लिए महत्वपूर्ण है। किसी भी बैठक और सामाजिक गतिविधियों में शिक्षकों की उपस्थिति नैतिकता को बढ़ावा देती है और समय को और अधिक मूल्यवान बनाती हैं।

माँ-बाप भी शिक्षक कहलाते है जब उनके बच्चे वो बन जाते है जो उन्हें वे बनाना चाहते थे। शिक्षक ने केवल इंसान है बल्कि वे प्राकृतिक पौधों की तरह है। ऐसे ही एक नेता भी एक शिक्षक होता है क्योंकि वो सिखाता है की कैसे कंपनी का नेतृत्व करना हैं।

शिक्षक हमें एक अच्छा इंसान बनने में मदद करते है। अच्छा इंसान समाज के विकास में योगदान दे सकता है। अच्छे लोगों के साथ एक विकसित समाज दूसरों को सफल और खुश होने में मदद करता हैं। इसलिए हमें स्कूलों में उन शिक्षकों की आवश्यकता है जो देश के भविष्य के बारे में सोचते है।

एक शिक्षक एक महान नेता बनने में मदद करता है और महान नेता एक महान राष्ट्र बनाता है। नेता एक व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास में एक बाद भूमिका निभाता है। एक महान नेता हजारों लोगों को सही दिशा पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है। सभी अच्छे नेता इस बात से इंकार नहीं करेंगे की यह कौशल उन्होंने शिक्षकों से सिखा हैं।

कुछ छात्र महान है ऐसा नहीं है की वे महानता के साथ पैदा हुए है। वे महान बने है क्योंकि शिक्षकों ने उन्हें आज बनने में मदद की है। यही कारण है की हमारे जीवन में शिक्षक महान इंसान है जो भविष्य के बारे में जानते हैं।

एक छात्र शिक्षकों के हाथों में गीली मिट्टी की तरह है जिसको वे कोई भी आकार दे सकते है। अगर एक छात्र को अच्छी तरह से पढ़ाया जाता है तो वह समाज के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन जाता है। अगर गलत सिखाया जाता है तो वो विनाश का हथियार बन सकता है।

लेकिन सभी कॉलेजों और शिक्षकों को छात्रों के नैतिक मूल्यों को बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं है। जिन कॉलेजों में शिक्षक छात्रों को सिर्फ पैसे के लिए शिक्षा दे रहे है।

इस तरह के पैसों के प्रेमी शिक्षक छात्रों के कैरियर को गलत रास्ते पर चला रहे है। इस प्रकार के शिक्षक भ्रष्ट नेताओं, डॉक्टरों, नौकरशाहों का उत्पादन करते है।

इसलिए शिक्षक के महत्व को समझने के साथ साथ छात्रों के माता-पिता को यह भी ध्यान में रखना चाहिए की उन्हें अपने बच्चे को एक ऐसे स्कूल में सौंपना चाहिए जहाँ महान शिक्षक, पेशेवर, व्यक्तिगत और सामजिक व्यवहार वाले शिक्षक हों।

यह भी जरूरी है की सभी शिक्षकों को सरकार की तरह से सामाजिक और आर्थिक मदद मिलनी चाहिए। क्योंकि अगर वे पैसे, खराब वित्तीय स्थितियों के बारे में चिंतित रहेंगे तो उनके लिए छात्रों को पढ़ाना मुश्किल हैं। इसलिए किसी भी राष्ट्र के लिए जरूरी है की वे शिक्षकों के लिए पर्याप्त सुविधाएँ और केंद्रित शैकक्षणिक विकास कार्य प्रदान करें।

आज हमें शिक्षकों का साम्मान और उनके प्रयास और योगदान की सराहना करने की आवश्यकता है। शिक्षकों को सरकार से सुरक्षा की जरूरत है। शिक्षको छात्रों को शिक्षित करने के लिए बुनियादी ढांचों की आवश्यकता है।

गुरू ब्रम्हा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा, गुरू साक्षात परम्ब्रम्ह तस्मय श्री गुरूवनमः
#हैप्पीटीचर्सडे

Tuesday, September 3, 2019

ऋषि पंचमी मासिक धर्म से जुड़ी है इस व्रत की कथा

ऋषि पंचमी व्रत की कथा:-




आज है ऋषि पंचमी। शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत किया जाता है। यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति के लिए रखा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी खास महत्व होता है।

विदर्भ देश में एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र और एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?

ब्राह्मण ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।

धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।

पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।

Source :- https://bit.ly/2lwAqaj