शिव जी ने एक न्याय का उदहारण दिया था जो समझने के बहुत आवश्यक है।।
जब गणेश का सर काटा गया उस समय गणेश ने अपनी माता के कहे अनुसार अपने कर्तव्य का पालन किया, परन्तु उस समय गणेश को अपनी क्षमता और शक्ति पर अहंकार था कि उसको माता शक्ति ने अपने शरीर के हल्दी चन्दन के अंश से बनाया तो जिस शक्ति और शिव के तप और संतुलन(मीज़ान) से आकाशगंगाएं अपनी धुरी पर केन्द्रित रहती हैं वो सबसे बलशाली है और जब शंकर जी कैलाश आये तब शंकर जी को अपने अहंकार के वश में होने के कारणवश गणेश के द्वारा अभद्र व्यव्हार हुआ।। जो उस समय एक बहुत ही चिंता का विषय थी क्योंकि जो स्वयं में इतनी शक्ति का अलौकिक सूत्र होने के बाद भी अपने अहंकार के कारण शंकर के उस रूप को ना पहचानता हो तब नंदी और बाकी शिवगणों ने गणेश को शिव का रास्ता रोकने से मना किया तब भी गणेश ने अपने अहंकार के कारण रास्ते से हटने की बजाय शिवगणों को ये कहकर ललकारा था कि अगर आपमें शक्ति है तो मुझे हटाकर दिखाओ और गणेश से सभी शिवगणों को परास्त कर दिया था।। उसके पश्चात् इतने सारे शिवगणों को परास्त करने के कारण गणेश में अहंकार और बढ़ा, वे सोचने लगे कि जब इतने सारे शिव भक्त खुद सब मिलकर भी मुझे नहीं हटा पाए तो मुझसे बड़ा बलशाली और कोई नहीं।।
जिस कारण शंकर जी को गणेश का अहंकार तोड़ने हेतु उनसे युद्ध करना पड़ा और गणेश के धड़ से उनके सर को अलग करके उन्होंने ये बताया कि शक्ति के शरीर से जन्मा बालक तो बहुत बलशाली है किन्तु उसके अहंकार को नष्ट करना अतिआवश्यक है क्योंकि अहंकार सभी नाशों का जनक होता है।।
और जब पार्वती के पुनः अनुग्रह पर शंकर जी ने गणेश को पुनः जीवित करने का निर्णय इसलिए लिया था कि पार्वती एक पूर्ण स्त्री थीं।। उनमे स्त्रियों के सभी गुण और अवगुण थे।।
शंकर जी ने गणेश को जीवित करने के लिए हाथी का सर मंगाया, वो इसलिए कि हाथी का शरीर तो बड़ा होता है और साथ ही उसको अपने शरीर पर कभी अहंकार नहीं होता क्योंकि वो कभी खुद अपने शरीर की विशालता को नहीं देख पाता और उसकी आँखें छोटी होने के कारण बाकी श्रृष्टि उसको हमेशा द्रष्टि में बड़ी ही दिखाई देती हैं जो उसके अहंकारहीन होने का सबसे बड़ा कारण है।।
लेकिन अब सवाल ये था कि गणेश एक बालक है और गणेश को एक बालक का ही सर लगाया जा सकता है तो उन्होंने एक हाथी के बच्चे को लाने के लिए अपने गणों को भेजा और ये भी बताया कि जो नवजात हाथी अपनी माँ के पास लेटा हो पर उसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके लेटी हो उसी हाथी के सर को लाना है।। इससे हाथी की माँ को भी अपनी गलती का अहसास होगा जो आज भी एक मिसाल है कि माँ अपने बच्चे को सीने से लगाकर सोती है कभी पीठ करके नहीं सोती।। क्योंकि वो जानती है कि पीठ पीछे उसके बच्चे की रक्षा कौन करेगा।।
जब गणेश को हाथी का सर लगाया गया तब वो जीवित हुए और उनके शरीर पर हाथी का सर होने के साथ उनका अहंकार क्षीण हो गया और पार्वती के आग्रह पर सभी देवताओं ने उनको आशीर्वाद भी दिया कि वे सदैव अपने ऊपर अहंकार ना करें हमेशा ये सोचकर रहे कि उनके पास जितनी शक्तियां हैं वे सभी देवताओं के कारण हैं।।
तब से गणेश में कभी अहंकार नहीं आया।। और शिव ने गणेश के धड़ पर हाथी का सर लगाकर ये भी उदाहरण दे दिया कि कभी भी अहंकारी व्यक्ति कभी देव नहीं हो सकता।।
अब सवाल है कि वापस गणेश का ही सर क्यों नहीं लगाया?
यदि शंकर जी भी गणेश के शरीर पर उनका खुद ही सर लगाते तो अहंकार का नाश कैसे होता।।
हर उस अहंकारी को उसकी सज़ा मिलती है जो अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को कमजोर समझता है।।
अगर वे भी ऐसा ही करते तो उनमे और असुरों में क्या फर्क रह जाता।।
उसमे हाथी के बच्चे की गलती नहीं थी वो पार्वती के लिए ऐसा किया गया था।।
क्योंकि जब पार्वती बाहर आयीं थी तो उन्होंने जो बर्ताव किया था वो एक माँ के लिए सही नहीं था क्योंकि वे अपने पुत्र के अहंकार को उसकी मौत की वजह मानने की बजाय सभी शिव गणों को उसकी वजह बताकर कोस रही थीं कि उन्होंने एक बालक के साथ युद्ध किया जो कि शर्मनाक है कि इतने सारे शिवगण मिलकर एक बच्चे के साथ युद्ध किये।।
उन्होंने गणेश को जन्म तो दिया पर उनको ये ज्ञात करा नहीं पायीं कि जीवन में अपने अहंकार की बजाय दूसरों के साथ उचित व्यव्हार ही सही मार्ग है।।
हाथी के जिस बच्चे का सर मंगाया गया तभी शिव ने कहा था कि जो माँ अपने बच्चे की ओर पीठ करके सोई हो उसका ही सर लाना।। जिससे पार्वती को भी ये एहसास हो गया कि पुत्र को जन्म देने के बाद अनदेखा नहीं करना चाहिए बल्कि उसको उचित और अनुचित में अंतर समझाए और उसके समझदार होने तक खुद से अलग नहीं करना चाहिए।।
वो हाथी का बच्चा कोई आम नहीं था बल्कि एक समय एक व्यक्ति ने बरसों तपस्या करके ब्रम्हा जी से वरदान माँगा था कि वह संसार का सबसे बुद्धिमानी व्यक्ति हो, तब ब्रम्हा ने उन्हें वरदान दिया था, और समय आने पर उनको गणेश का स्थान मिला जिसको पार्वती ने बनाया था उसका तो अहंकार के कारण महादेव ने नाश कर ही दिया था और उस हाथी के बच्चे को गणेश का स्थान मिला था।।
जिसने अपनी शक्तियों पर अनुचित अहंकार किया उससे जग को खतरा उत्पन्न हुआ है, और महादेव ने अति होने पर उन शक्तियों का नाश किया है, चाहे वो पार्वती पुत्र ही क्यों ना हो।।
वो भगवन हैं पर अगर वे भी अनैतिक कार्य करने लगे तो उनमे और शैतान में क्या अंतर रह जाता।।
चमत्कार का अर्थ ये नहीं है कि कुछ करो चाहे वो गलत हो।।
सुर और असुर में कुछ अंतर है वो समझना होगा।।
जो व्यक्ति धर्म कार्यो मे ध्यान दे सात्विक भोजन ग्रहण करे दया हो अंदर वह सुर है
निर्दोष को सताये अभक्ष भोजन ग्रहण करे क्रूर क्रौधी असुर है।।
जैसा कि पोस्ट में है कि पार्वती पूर्ण स्त्री थीं उनमे सभी गुण और अवगुण थे।।
जिस कारण उनका शिव से मिलन हेतु कई बार जन्म हुआ।। सती पारवती सभी शक्ति के रूप हैं।।
आर्यसमाज एवं नास्तिको का पर्दाफाश
नास्तिको एवं आर्यसमाज का पर्दाफाश
Copywrite:- http://bit.ly/2whbS5q